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ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1543

Comment

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Comment by Manan Kumar singh on May 6, 2017 at 9:24am
आदरणीय नीलेश जी,जैसा मैंने लिखा है उससे मतलब साफ है।फिर भी आपकी शंका,आपका समाधान समीचीन रहेगा,सादर।
Comment by Ravi Shukla on May 6, 2017 at 8:54am
आदरणीय नीलेश जी वाह वाह क्या कहने कमाल की ग़ज़ल कही आपने । मतले से मक्ते तक हर शेर उम्दा दिली बधाई लीजिये । और एक शेर का ज़िक्र करना हो तो
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना हमें ये
जियादा पसंद आया । पसंद अपनी ख्याल अपना । सादर

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 6, 2017 at 7:01am
आ. निलेश भाई.कमाल की बात कही है, वाह बरगद और अवतार वाले शे'र का जवाब नहीं बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 11:44pm
बेहतरीन ग़ज़ल हुई आदरणीय..मतला और पहले शेर के लिए बिशेष बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 10:05pm

आ. मनन जी...
महाजना: (व्यापारी) या महा... जना:( ज्ञानी)..
निर्णय आप पर छोड़ता हूँ 
.
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 10:01pm

आ. डॉ साहब शुक्रिया 
.
निलेश भाई कहेंगे तो ठीक लगेगा 

Comment by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 10:00pm
हाहाहा,महा जना: येन गत:सा पंथा:।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 9:54pm
आदरणीय नूर जी आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी सर्वाधिक पसंद ग़ज़लों में एक लगी पहले और दुसरे शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:37pm

और भी...
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब 
हम ने दश्त-ए-इम्काँ  को  एक नक्श -ए-पा पाया 
.
मिर्ज़ा असद उल्लाह खां "ग़ालिब"

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:29pm

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