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ग़ज़ल-निलेश "नूर"-न कोई कशिश है न कोई में ख़ला है

१२२/१२२/१२२/१२२
.
न कोई कशिश है न कोई ख़ला है,
ये दिल बावला था ये दिल बावला है.
.

गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम,
वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.   
.

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है.....  आबला- छाला 
.

चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.         
.

उठाऊंगा मुद्दा क़यामत के दिन ये,
मेरे हक़ का हर फ़ैसला क्यूँ टला है.  

.

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है.
.

जिसे ले गए सब, वो था ‘नूर’ जैसा,
कोई तो बताए कि क्या मामला है.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 4:55pm

आदरणीय नूर जी ..कई बार पढ़ा बहुत लुत्फ़ आया ..चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा, 
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.         
.ये शेर दूरियां तय करके जिगर तक पहुंचा है ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 15, 2014 at 10:54am
बस जुबाँ पे आते ही ग़ज़ल गुनगुनाने लगी। वाह्ह्ह
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 14, 2014 at 8:31pm

गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम, 
वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.   ..बहुत खूब आदरणीय निलेश जी!

Comment by hemant sharma on July 13, 2014 at 2:26pm
Bahut hi sundar gazal aadarniy nileshji
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:57am

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है..... ...........दिल को छूओ गया, दिली बधाई आपको आदरणीय निलेश जी
.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 4:26pm

आदरनीय नीलेश भाई , उम्दा ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें॥

चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.    -  बहुत खूब भाई , बधाई ॥

आदरणीय , शीर्षक  मे , में लफ्ज़ अधिक लिखा गया है  , निकाल दीजियेगा ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:38am

बहुत  बहुत शुक्रिया आ. डॉ. गोपाल नारायण जी ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 12, 2014 at 11:04am

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है

नूर भाई ---- यह आपकी एक और बेहतरीन प्रस्तुति है i  बधाई हो i

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 7:35pm

शुक्रिया आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब ..

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 11, 2014 at 4:34pm

टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया, 
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है.

समझना है मुश्किल हुआ क्या अचानक,
यहाँ जिस्म रख कर किधर वो चला है.

waah sir ji khoob kamaal gazal hui hai badhai ............................

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