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रावण को तू राम बता

२२/२२/२२/२ 
.
रावण को तू राम बता,
और सहाफ़त काम बता. ...सहाफ़त-पत्रकारिता 
.

बिकने को तैयार हैं सब,
तू भी अपने दाम बता.
.

सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता. 
.

झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.   
.

चाहे काट हमारा सर,
पर पहले इल्ज़ाम बता.    

.

क़ातिल ख़ुद मर जाएगा,
बस मक़्तूल का नाम बता. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 12:45pm

कंप्यूटर ख़राब होने के चलते उपलब्ध नहीं हो सका .. क्षमा प्रार्थी हूँ ..
सभी की सराहना के लिए धन्यवाद. आ. सौरभ  सर.. याद रखते रखते भी चूक ही जाता हूँ कई बार..मूल प्रति में सुधार कर रहा हूँ. 
सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2014 at 6:33pm

किस-किस शेर पर दाद दी जाय ? पूरी ग़ज़ल सीधी और सधी हुई है. दिल से बधाई.

झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता..  .. .इस शेर ने तो हर तरह से वो कुछ कहा है, जो समझ में आ रहा है.... .  हर जगह. .. ;-)

हाँ, तकाबुले रदीफ़ पर कुछ पारखी आँखें असहज हो सकती हैं.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 10:59am

छोटी बहर पर बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने नीलेश जी मजा आ गया पढ़ के 

बिकने को तैयार हैं सब, -----बिकने को तैयार सभी ---करें तो ज्यादा अच्छा लगेगा 
तू भी अपने दाम बता.

सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता. ----हाहाहा बहुत सही 
.

झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.   -----जी बार बार रगड़ने से लोहा भी कट जाता है ,झूठ को सुब्हो शाम कहेंगे तो सच मानना ही पड़ेगा :)))

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...दाद कबूलें 
.

Comment by वीनस केसरी on July 29, 2014 at 11:53pm

सीख ज़माने वाला फ़न,
धूप कड़ी हो, शाम बता. 
.

झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता.   


वाह क्या कहने ...

Comment by सूबे सिंह सुजान on July 29, 2014 at 11:18pm

वाह वाह , वर्तमान की सच्चाई तो यही है लेकिन इसे बदलने का प्रयास भी तो हो रचनाओं में


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 29, 2014 at 11:07pm

वाह वा !! छोटी बहर में बहुत सुन्दरता से बाते  कहीं है , बधाई इस ग़ज़ल के लिए |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 12:11pm

झूठ भी सच हो जाएगा,
बस तू सुब्हो शाम बता...........बहुत सही कहा, बार-बार कहा झूठ शायद सच के सामान ही हो जाता है

लाजवाब गजल हुई आदरणीय निलेश जी, बधाई स्वीकार करें  
.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 11:00am

सुन्दर गजल कुछ व्यंग रूप में | बहुत खूब ! बधाई श्री निलेश नूर जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 4:59pm

वाह ..आदरणीय नूर जी ..ये तो कमाल की ग़ज़ल है ..हर शेर बेहतरीन ..ताना मारती शानदार ग़ज़ल ..इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 2:38pm
बहुत बढ़िया , हर पंक्ति सुन्दर , स- अर्थ , याद रखने वाली है। अच्छी रचना है , बधाई.

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