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ग़ज़ल -निलेश "नूर" लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,

२१२२/१२१२/२२ 
.
लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,
देखना कोई हादसा होगा.
.

ख़ूब ईमानदार बनता है,
नौकरी पर नया नया होगा.    
.

जब कहा, सिर्फ़ सच कहा उसने,
वो कभी आईना रहा होगा.
.

जिसकी सुहबत सुकून देती थी,
कैसे मानें कि बेवफ़ा होगा. 
.

एक मुद्दत के बाद धड़का दिल,
ज़ख्म-ए-दिल आज फिर हरा होगा. 
.

टूटता दिल भी एक नेमत है,
शायरी का चलो भला होगा.
.

शक्ल पर कुछ नहीं लिखा उसने,
कौन कैसा है, कौन क्या होगा. 
.

इक सितारे सा ख़ूब चमका “नूर”,
टूटकर अब कहीं गिरा होगा.
.
निलेश "नूर"

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 766

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 18, 2014 at 7:44am

प्रवास में था अत: पोस्ट पर न आ सका.
आपकी विस्तृत टिप्पणी और भरपूर दाद बहुत हिम्मत देती है.
बहुत बहुत धन्यवाद आ. सौरभ जी  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 10:12pm

आदरणीय नीलेशभाई,

आप ग़ज़लगोई में धमाल करते है यह तो हमें खूब मालूम है. लेकिन इस बार की ग़ज़ल के कई शेर मुझे चमत्कृत करते लगे. कितने ही शेरों को मैं बार-बार पढ़ा और आपकी अनुभवी दृष्टि के प्रति बार-बार नम होता रहा. क्या दाद दूँ जब इन सभी को मैंने स्वीकार ही कर लिया है.

लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,
देखना कोई हादसा होगा... .   .. ..   ग़ज़ब ! ग़ज़ब का मतला साहेब !!
 
ख़ूब ईमानदार बनता है,
नौकरी पर नया नया होगा. .. . ...  .. कहने को बड़ी सामान्य सी बात लगती है. लेकिन दो मिसरों में व्यावसायिक जीवन के बीस-पच्चीस साल क्या खूब बयां हो गये !
 
जिसकी सुहबत सुकून देती थी,
कैसे मानें कि बेवफ़ा होगा. .. .. ... ... अय-हय ! अय-हय !! अय-हय !!!.. भइया, ई करेजवा काढ़ लिहिस !!
 
एक मुद्दत के बाद धड़का दिल,
ज़ख्म-ए-दिल आज फिर हरा होगा. ... पर, इस बरसते दर्द में भीगने का कहीं कोई सानी भी है क्या ?
 
टूटता दिल भी एक नेमत है,
शायरी का चलो भला होगा... ............. कई उस्ताद झट से इसे भर्ती का शेर कह सकते हैं लेकिन शायरी का लिहाज बात की बात में कह गये आप, साहेब !
 
शक्ल पर कुछ नहीं लिखा उसने,
कौन कैसा है, कौन क्या होगा. .. ....  हम्म्म ! मगर कहते हैं कि कई भाई लोग खत का मज़मून महज लिफ़ाफ़ा देख कर ही भांप लेते हैं ..  :-)))
 
इक सितारे सा ख़ूब चमका “नूर”,
टूटकर अब कहीं गिरा होगा. .............  इस मकते के हो जाने पर विशेष बधाई, आदरणीय.

इस क़ामयाब और रवां-दवां ग़ज़ल के लिए बार-बार नमन.. .
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 9:29pm

शुक्रिया आ. केवल जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2014 at 8:18pm
आ0 नीलेश भाई जी, अतिसुन्दर गजल हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:49pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:49pm

शुक्रिया आ. गोपाल नारायण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:48pm

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:48pm

शुक्रिया आ. विनय कुमार जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:48pm

शुक्रिया आ. नादिर खान साहब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 10, 2014 at 7:50pm

आदरणीय नीलेश भाई , एक और लाजवाब गज़ल पढ़वाने केलिये आपको धन्यवाद । बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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