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ग़ज़ल नूर की -खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

२१२२/२१२२/२१२
.
खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर
सब को जाना है ये मेला छोड़ कर. 
.
एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया
अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.
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था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं
अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.
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मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद
याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.
.
उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता  
जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.
.
बात मेरी मान कर तो देखिये
आप अपना ये रवैया छोड़ कर.
.
चाँद तारों में लो वापस आ गये
“नूर साहब” जिस्म जलता छोड़ कर.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:51am

धन्यवाद आ डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:50am

धन्यवाद आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:50am

धनयवाद आ. तस्दीक अहमद साहब 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 23, 2018 at 11:17am
आदरणीय निलेश भाई जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हमेश की तरह हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by नाथ सोनांचली on February 23, 2018 at 4:01am

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। हरेक शैर दमदार। मुबारकवाद कुबूल करें। सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 7:53pm

जनाब नीलेश नूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 22, 2018 at 7:45pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 22, 2018 at 7:44pm

शुक्रिया आ वर्मा जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 22, 2018 at 7:44pm

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ साहब 

Comment by Samar kabeer on February 22, 2018 at 6:20pm

जनाब निलेश'नूर' साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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