For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुला आकाश तेरा है ..... (विश्व महिला दिवस पर) //डॉ. प्राची

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।
सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।

तुझे जो रोकती है वो
हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,
ज़रा झंझोड़ हर बंधन,
कहाँ तकदीर रूठी है ?
उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?
सलाखें तोड़.....

ज़माने के तराजू पर
न अपने पंख अब तू तोल,
'खुले अम्बर' की परिभाषा
जो सच समझे, वही तू बोल।
ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।
सलाखें तोड़.....

तुझे छूना है चन्दा को
तुझे किरणों पे चढ़ना है,
रवानी भर परों में खुद
तुझे ही लक्ष्य गढ़ना है।
तेरी हर साँस ने पलकों पे ये सपना उकेरा है।
सलाखें तोड़.....

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amita tiwari on March 27, 2016 at 6:11pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 15, 2016 at 3:31am

//ज़माने के तराजू पर
न अपने पंख अब तू तोल,
'खुले अम्बर' की परिभाषा
जो सच समझे, वही तू बोल।
ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।
सलाखें तोड़.....//

आदरणीया प्राची जी, आपने इन पंक्तियों में भावनाओं की जो होली खेली है वह अतुलनीय है....इतने रंग !! अद्भुत !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 10, 2016 at 10:43am

आदरणीया प्राची जी ..मंत्रमुग्ध कर देने वाला ..उत्साहित करने वाला ..बुलबुल के माध्यम से सुंदर सन्देश संप्रेषित करता यह शानदार गीत आपकी शानदार रचनाओं की एक माला की सुंदर कड़ी है ..ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:22pm
आदरणीय प्राची जी, बहुत ही सुन्दर ओजपूर्ण रचना के लिए बधाई आपको।।
Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:29pm
बहुत बहुत बधाई आदरणीया।।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:30am

बहुत ही सुंदर सार्थक गीत के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ...आ० प्राची बहन l

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2016 at 5:53am
" ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है। "
वाह ! बहुत ही सुन्दर , बधाई , आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:46pm

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।
सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।

तुझे जो रोकती है वो
हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,
ज़रा झंझोड़ हर बंधन,
कहाँ तकदीर रूठी है ?
उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?
सलाखें तोड़.....

वाह बहुत ही सुंदर, प्रेरक सकारात्मकता को लक्ष्य कर आपने ये गीत लिखा है। उस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ. डॉ. प्राची सिंह जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 8, 2016 at 3:55pm
सुंदर सार्थक भावों को लिए अनुपम गीत!हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:17pm

बहुत सुन्दर सार्थक गीत ...महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service