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उसे ज़िन्दगी की वो ताल दे (ग़ज़ल)...//डॉ.प्राची

11212 ,11212 ,11212 ,11212

हो भले कठिन मेरी हर डगर, मुझे चाहे कोई भी हाल दे।
मेरा हर कदम यूँ सधा पड़े, कि जहान जिसकी मिसाल दे।

न किसी किताब के प्रश्न हों, न जवाब उनकेे कहीं मिलें
मेरी नज़्र ही हो जवाब हर, तू उसे ज़रा वो सवाल दे।

वो घुला है मुझमे कुछ इस कदर, कि न हो सके कोई वापसी
मेरा चीर दिल, मेरे होश ले, मेरी जान चाहे निकाल दे।

मैं चलूँ चले, मैं थमूँ थमे, जो हँसू हँसे, मेरे साथ ही
मेरा प्यार छू ले हर इक ज़हन, मेरी शख्सियत में कमाल दे।

मुझे हर तरफ दिखे गम ही गम, दिखी आँसुओं से हर आँख नम
जो हरे हृदय से हर एक तम, मेरे हाथ में वो मशाल दे।

न चुभन रहे, न घुटन रहे, न ही आँसुओं का हो सिलसिला
जो बदल सके मेरी ज़िन्दगी, मेरे रक्त में वो उबाल दे।

मैं कदम न उससे मिला सकी, उसे मुझसे ये ही गिला रहा
वही नाच ले मेरी ताल पर, उसे ज़िन्दगी की वो ताल दे।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Rahul Dangi Panchal on March 13, 2016 at 9:56pm
आदरणीय आपने एक कठिन बह्र पर अच्छा प्रयास किया है बधाई
Comment by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 6:58pm
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:49pm

हो भले कठिन मेरी हर डगर, मुझे चाहे कोई भी हाल दे।
मेरा हर कदम यूँ सधा पड़े, कि जहान जिसकी मिसाल दे।

.... वाह आ. डॉ प्राची सिंह जी बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं आपने। इस बहर पर इतनी खूबसूरत ग़ज़ल की पेशकश काबिले तारीफ़ है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Ravi Shukla on March 10, 2016 at 12:59pm

आदरणीया प्राची जी सुन्‍दर गजल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई कम समय में ही इस बह्र पर भी आपकी गजल मंच पर गजलों के लिये शुभ संकेत है पुन: बधाई ।

दूसरे शेर के सानी मिसरे में नज्र और चौथे शेर के सानी मिसरे में इक जहन लफ्ज के मूल स्‍वरूप के अनुसार उपयोग पर विद्वत जनों की राय की प्रतीक्षा होगी जिससे जानकारी बढे हमारी

सादर ।

Comment by ram shiromani pathak on March 10, 2016 at 10:48am
आदरणीया प्राची जी आपको ग़ज़लो पर काम करते देख बहुत ख़ुशी हुई।।बहुत बहुत बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 10:37am

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह!बेहतरीन गज़ल!

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