For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२ २१२

बात करते हो वफ़ा की सोच लो
इश्क होता है सजा भी सोच लो


ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो


लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो


जाति मजहब रंग के ही नाम पर
बाँट दी जनता बिचारी सोच लो


फिर मसीहा आयें तो मंजिल मिले
झूठ है हर सम्त पापी सोच लो


ख्वाब में जब यम मिले बोले यही
रह गए दिन चार बाकि सोच लो


क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो


मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 6:08pm

क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो
----------वाह साहब

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 12, 2015 at 5:50pm
आप सभी दोस्तों का हार्दिक आभार ,,,,,,,,,,, आप लोग सराहते हैं तो एक नई ऊर्जा मिलती है धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 11:53am


 क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो------------बेहतरीन गजल i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 11:26am

ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो-----बहुत खूब 

लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो----उम्दा शेर 

अच्छी ग़ज़ल लिखी है गुमनाम जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 12:48am

ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो


लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो

आदरणीय गुमनाम सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार लासानी है |ढेरों ...ढेरों दाद |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2015 at 9:54pm

बात करते हो वफ़ा की सोच लो
इश्क होता है सजा भी सोच लो........ बेहतरीन मतला 

ये सफ़र तो इश्क का दुश्वार है
राह में है रात काली सोच लो............. वाह वाह 


लक्ष्य से भटके युवा हर ओर हैं
बन न जाएँ ये मवाली सोच लो...... क्या खूब कहा है!


जाति मजहब रंग के ही नाम पर
बाँट दी जनता बिचारी सोच लो..... वाह 


फिर मसीहा आयें तो मंजिल मिले
झूठ है हर सम्त पापी सोच लो...........अच्छा शेर 


ख्वाब में जब यम मिले बोले यही
रह गए दिन चार बाकि सोच लो.............. बहुत उम्दा शेर 


क्यों ग़ज़ल कहने लगे तुम भी भला
बह्र गम है काफिया भी सोच लो......... वाह वाह .... बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गुमनाम सर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:32pm

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी  जी सुन्दर  ग़ज़ल, हार्दिक बधाई आपको !

Comment by maharshi tripathi on February 11, 2015 at 7:47pm

बहुत उम्दा गजल आ. गुमनाम जी ....हार्दिक बधाई आपको |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 4:21pm

आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत प्यारी गज़ल हुई है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥ बाकि को बाक़ी कर लीजियेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 11, 2015 at 3:04pm

आदरणीय गुमनाम जी इस सुंदर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें  सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
12 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service