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ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२ २


हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से


है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से


जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से


ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से


है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से


हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 1:28am

आदरणीय गुमनाम सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे. इन दो अशआर के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाए -

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से

है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म 
ये नहीं मिटते मै पीने से

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 5, 2015 at 9:37pm

अजय जी खुर्शीद जी हरी प्रकाश जी राजेश जी आप सभी का शुक्रिया राजेश कुमारी जी आपकी सलाह का शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:33pm

हो गयी है कोफ़्त जीने से 
जा निकल भी ऐ जां सीने से----जाँ निकल भी  जा ए सीने से----इसे इस तरह कर लें 

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से-----दिल तक पंहुचता शेर वाह्ह्ह्ह 

मक्ता भी बहुत खूब 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने दिली दाद कबूलिये 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 4:04pm

 गुमनाम भाई, बस अब तो  गुमनाम ना रहिये 

असल नाम ,क्या है भाई , जनाब कुछ तो कहिये !

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 11:25am

ख़त किताबों में मुड़ा पाया 
लग गए वो लम्हे सीने से

है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म 
ये नहीं मिटते मै पीने से

आदरणीय गुमनाम साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:07pm

हो गयी है कोफ़्त जीने से 
जा निकल भी ऐ जां सीने से..............wah sher hua hai ,......aah nikal gayi ...

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 4, 2015 at 5:56pm

धन्यवाद गिरिराज जी बागी जी विजय जी बहुत धन्यवाद

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 4, 2015 at 5:55pm
धन्यवाद गिरिराज जी बागी जी विजय जी बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 3:23pm

है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से         --- बढ़िया शे र , वाह ! बहुत बहुत बधाइयाँ , गज़ल के लिये , आ. गुमनाम भाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2015 at 10:56am

"वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने … हार्दिक बधाई।"

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