किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।
प्रश्न खड़ा हर द्वार पर, आजादी के बाद।।
*
कहने को तो भर गये, अन्नों से गोदाम।
फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।
गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।
हर चौराहे लुट रही, बहुत आज भी नार।।
अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।
चोर उचक्के हो गये, खुशियों में तल्लीन।।
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हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
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देशभक्ति अब गौंण है, गद्दारी भरमार।
अर्थव्यवस्था इसलिए, रहती नित बीमार।।
निर्धन मरता जा रहा, सर पर लिए उधार।
मँहगाई की बात पर, चुप रहती सरकार।।
पहले सी जनता बहुत, पीड़ित रहती खूब।
शासन दुख देखे नहीं, अपने मद में डूब।।
*
सत्ता भोगी सिर्फ हैं, सकल देश दिलशाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
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सेवक बस निज स्वार्थ पर, देते हैं नित जोर।
कब जनहित के काम को, संसद मचता शोर।।
ध्वनिमत से चुपचाप जो, बढ़ा रहे तनख्वाह।
कुर्सी खातिर रच रहे, भूल दुश्मनी ब्याह।।
लोक लुभावन घोषणा, करके पाते वोट।
नाली में सब फेंक फिर, स्वयं छापते नोट।।
*
भ्रष्ट आचरण की बहुत, पैदा करते गाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर आपकी उपस्थिति और स्नेह पा लेखन सफल हुआ। हार्दिक आभार..
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा दोहा गीत हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। गीत पर आपके अनुमोदन से मन आस्वस्त हुआ। स्नेह के लिए आभार।
ध्वनिमत से चुपचाप जो, बढ़ा रहे तनख्वाह।
कुर्सी खातिर रच रहे, भूल दुश्मनी ब्याह।।...........बढ़िया मुहावरा रचा है.
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, देश के सामान्य नागरिक की पीड़ा को मुखर करता सुन्दर दोहागीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
बेहतरीन 👌 प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।हार्दिक बधाई
वाह वाह बेहतरीन गीत हुआ दोहा के रूप में आ धामी सर
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