For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वजूद बनाम सरहदें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सुनो, मैं वक़्त पर ही और भी ज़्यादा पैसे भेज दिया करूँगा, तुम्हें नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है अब, अम्मी और अब्बूजान को ख़ुश रखने में ही हमारी और तुम्हारी ख़ुशी है , वरना....!"

सेल फोन पर सरहद से सरहदें फिर तय की जा रही थीं, तो ग़ुस्से में शबाना ने फोन बिस्तर पर फैंक दिया ! फिर वही बातें, मैं ज़ल्दी ही छुट्टी पर आऊँगा , ये मत करना, वो मत करना , यहाँ मत जाना, वहां मत जाना !! शबाना ने कभी सोचा न था कि पढ़ा लिखा सैनिक भी मज़हब के मामले में इतना कठोर व कट्टर हो सकता है ! काश वह भी अपने माँ-बाप की बनाई सरहदों में रहती तो रोशन से प्यार-मुहब्बत के झमेले में न पड़ती ! वह सोचने लगी कि किस तरह उसने माँ-बाप को राजी करके रोशन से ही शादी कर के सैनिक की बीवी होने का अपना सपना पूरा किया था।

तभी सास के कर्कश स्वर सुनाई दिए- "बहू, नमाज़ अदा नहीं करोगी क्या आज भी ? अरे, हमारी फिक्र नहीं है नौकरी की वज़ह से, तो कम से कम अल्लाह पाक को तो ख़ुश कर लो !"

"अम्मी , मैं आप लोगों की ख़िदमत में क्या कमी रखती हूँ जो रोशन से आप हमारी शिक़ायतें करती हो ? आज तो हद हो गई, उन्होंने तलाक़ की धमकी तक दे डाली !"

"धमकी ही दी है न अभी ? सोचना तुम्हें है, उसे तो और भी मिल जायेंगीं ! " - सास का यह ताना सुनकर आज शबाना भी बोल पड़ी -

"मिल तो मुझे भी जाएंगे, अम्मी ! मेरी पढ़ाई लिखाई घर में क़ैद रहने के लिए नहीं है, मैं नौकरी हरग़िज़ नहीं छोड़ूंगी, ये नये ज़माने में मेरे वजूद का सवाल है, सरहदों का नहीं !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 9, 2016 at 1:47pm
संदेश सम्प्रेषण में रचना सफल हुई जानकर बहुत संतुष्टि मिलती है। समय देकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 9, 2016 at 1:26pm

जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब ,   बेहतर सन्देश देती हुई लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 9, 2016 at 1:25pm

जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब ,   बेहतर सन्देश देती हुई लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 8, 2016 at 3:02am
जी, बिलकुल सही कहा आपने, रचना पर उपस्थित हो कर समीक्षात्मक टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 9:04pm

आदरनीय शेख शहज़ाद भाई , कथा का बेहतरीन अंत किसी के जीवन की एक बेहतरीन शुरुवात हो सकती है , प्रेरक कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2016 at 3:43pm
समीक्षात्मक टिप्पणियाँ प्रेषित करते हुए मुझे स्नेहिल प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय तेज वीर सिंह जी, आदरणीय सुशील सरना जी व आदरणीया नीता कसार जी ।
Comment by Nita Kasar on January 5, 2016 at 8:32pm
कथा आपकी महिला को वजूद तलाशने में सहायक होगी आखिर वह बंदिनी कब तक ।कितना कुछ सामंजस्य बनाकर चलती है फिर भी उसके खाते में तारीफे नही शिकायतें ही आती है प्रेरक व सार्थक कथा के लिये बधाई आद०शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Sushil Sarna on January 5, 2016 at 7:44pm

वाह बहुत सुंदर आदरणीय उस्मानी साहिब , नारी स्वाभिमान को दर्शाती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 5, 2016 at 7:25pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी  जी!लघुकथा के माध्यम से सामाज़िक कुरीतियों पर गहरा कटाक्ष किया है!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 5:22pm
जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथाएँ लिखते हैं आप,ये रचना भी अच्छा सन्देश दे रही है,बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service