For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नई सदी का मर्द (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"देखो तो, कैसा इतरा-इतरा कर नाच रहा है!"
"हाँ, उस मोरनी को देखकर!"
"नहीं, हमें देखकर इतरा रहा है!" सारस ने अपनी टांगों को ज़मीन पर आड़े-तिरछे पटकतेे हुए हंस से कहा।

"बस कुछ ही महीने तो सुंदर दिखता है, फिर भी इंसानों के दिलों में राज करता है!" यह कहते हुए ईर्ष्यालू हँस ने नदी में गोता सा लगाया।

"हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, यह जानते हुए भी!" हंस की बात पर सारस ने कटाक्ष किया।

"आकर्षक तो हम भी हैं, लेकिन न तो हमारा मेकअप इस तरह होता है, न ही हमें ऐसा नृत्य आता है!" हंस ने गर्दन घुमा-घुमा कर अपने और सारस के शरीर का मुआयना सा किया।

"क्या इंसानों में भी मर्द ऐसे ही औरत को आकर्षित करता है?" सारस ने पूछा।

"नहीं, सुना है कि औरत मेकअप करके मर्द को रिझाती है, कुछ औरतें नाचती भी हैं!"

"कौन से ज़माने की बात कर रहे हो? सुनते हैं कि इस सदी में तो मर्द करता है यह सब औरत को रिझाने!".हंस की बात पर सारस ने कहा।

(मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित)

Views: 582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:33pm
रचना के अवलोकन, अनुमोदन , हौसला अफ़ज़ाई व महत्वपूर्ण विस्तृत जानकारी देने हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। यह जानकारी मुझे आधी अधूरी ही मिल पाई थी, जो सही तरह से आपने पूरी कर दी। हालाँकि मेरी रचना का भाव मात्र राष्ट्रीय पक्षी से अन्य दो पक्षियों की ईर्ष्या और आज के मर्दों के रिझाने संबंधी तौर-तरीक़ों पर केन्द्रित है। सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:26pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब व जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 3:37pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस्तेआरों में तंज़ भी अच्छे हुए हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक बात बताना चाहूँगा कि मोर अपनी मोरनी को रिझाने के लिये नहीं नाचता,ख़ास बारिश के मौसम में जब रिम झिम बारिश होती है और ठंडी पुरवाई चलती है तब वो मस्त होकर नाचने लगता है,और जब उस मस्ती के आलम में नाचते नाचते अपने पैरों की तरफ़ देखता है तो उनकी बदसूरती देख कर उसकी आँखों से आँसू टपकते हैं जिसे मोरनी अपनी चोंच से पी लेती है,और गर्भवती हो जाती है और कुछ दिन बाद अंडे देती है,कहते हैं कि ये वाहिद परिन्दा है जो अपनी मादा से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता,और क़ुदरत ने उनकी नस्ल बढ़ाने के लिये ये तरीक़ा रखा है,कि ये परिन्दा जन्नत का परिन्दा है जिसे हज़रत-ए-आदम अलैहिससलाम के साथ जन्नत से निकाला गया था ।
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 8:01am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी कटाक्षपूर्णा कथा । मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 5:21am
आद0 शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया कटाक्ष पूर्ण रचना, वाकई समय बदला है। बधाई आपको इस लघुकथा पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"उपयोगी सलाह के लिए आभार आदरणीय नीलेश जी। महत्वपूर्ण बातें संज्ञान में लाने के लिए धन्यवाद। एक शेर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ..मैं निजि रूप में दर्पण जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द को…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आ. अजय जी,अच्छे भावों से सजी हुई ग़ज़ल हुई है लेकिन दो -तीन बातें संज्ञान में लाने का प्रयत्न कर रहा…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service