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हास-परिहास (कविता)

टेढ़ा-मेढ़ा हास्य-रस
बड़बोलापन, बस!
सुबुद्धि हुई कुबुद्धि
धन-सिद्धि हो, बस!

तेरा-मेरा हास्य-रस
जीवन जस का तस
बुद्धियांँ हो रहीं ठस!
बच्चे-युवा हैं बेबस!

भोंडा-ओछा हास्य-रस
टीवी टीआरपी तेजस!
हास्यास्पद लगती बहस
सेल्फ़ी रहस्य दे बरबस!

स्वच्छ, स्वस्थ हास्य-रस
स्वाभाविक बरसता बस!
बाल-बुज़ुर्ग-मुख के वश
या फ़िर दे कार्टून, सर्कस!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Hariom Shrivastava on May 8, 2019 at 9:44pm

वाह,बहुत सुंदर। सही कहा, आजकल दूरदर्शन पर बहुत ही भोंडा हास्य परोसा जा रहा है।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2019 at 3:58am

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढिया रचना लिखी आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।

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