For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

द्वंद्व-प्रतिद्वंद्व (लघुकथा)

बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी तीन रंगमंचीय कलाकार थिएटर में फुरसत में मज़ाकिया मूड में बैठे हुए थे।


"तुम दोनों धृतराष्ट्र की तरह स्वयं को अंधा मानकर अपनी आंखों में ये चौड़ी और मोटी काली पट्टियां बांध लो!" उनमें से एक ने शेष दो साथियों से कहा, "पहला अंधा सुबुद्धि और दूसरा अंधा कुबुद्धि कहलायेगा! ... ठीक है!"


दोनों ने अपनी आंखों में पट्टियां सख़्ती से बंधवाने के बाद उससे पूछा, " ... और तुम क्या बनोगे, ऐं?"


"मैं! .. मैं बनूंगा तुम्हारी और आम लोगों की 'दृष्टि'! देखते हैं हम तीनों को क्या-क्या दिखाई देता है!"


"क्या मतलब?" सुबुद्धि ने कुबुद्धि का कंधा हिला कर कहा।


"चलो आज यही खेलते हैं!" कुबुद्धि ने उसका हाथ दबा कर कहा।


"तो शुरू करते हैं अपनी लघु-नाटिका!" तीसरे यानि 'दृष्टि' ने अपने दोनों हाथ सीने पर बांधकर कहा, "तो तुम दोनों अपनी अंतर्दृष्टि से अपने देश के ताज़े परिदृश्य को देख-समझ कर कोई लघु-टिप्पणी करो बारी-बारी से!"


कुछ ही पलों में सुबुद्धि ने बताया, "मुझे कुख्यात आतंकी दल और तमाम लुटेरे-भगोड़े आत्मसमर्पण कर देश-भक्त-रक्षक बनते दिख रहे हैं और हमारा विकसित देश दुनिया का नेतृत्व करता दिख रहा है!"


"जय हो! ... और कुबुद्धि तुम्हें क्या दिख रहा है?" दृष्टि ने पूछा।


"मुझे शांतिप्रिय श्वेत वस्त्रधारी अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रधारी साधु-साध्वियां, बाबा-बुरकेवालियां अपने देश पर शासन करती दिख रहीं हैं भाई!" कुबुद्धि ने अपनी कुर्सी पर डमरू सी ताल बजाते हुए कहा।


"जय हो!" दृष्टि ने अपने दोनों नेत्र फाड़कर कहा।


"अब तुम बताओ, तुम्हारी असली दृष्टि क्या देख रही है?" दोनों पट्टीधारियों ने एक साथ पूछा।


"अंधे बंधुओ! मैं देख रहा हूंँ कि अपने देश के अधिकतर लोगों के अनमोल ज़मीर और रिश्ते बिक चुके हैं! स्वार्थ और पदलोलुपता अस्त्र-शस्त्र युक्त व यंत्र-तंत्र-मंत्र युक्त हो गई है!" दृष्टि ने सुबुद्धि और कुबुद्धि दोनों के कंधे सहलाते हुए कहा, "लोगों में अंधापन, नंगापन और अंधानुकरण इतना बढ़ रहा है कि धनलोलुपता और दुनियावी चकाचौंध के संग देश में उन्हीं का प्रभुत्व और नेतृत्व है बंधुओं!"


" ... और लोगों की बुद्धियां?" दोनों पट्टीधारियों ने अपनी आंखों से पट्टियां झटके से हटाकर पूछा।


"बुद्धियां ही तो भ्रष्ट-पथभ्रष्ट हो गईं हैं न! ... जो स्वयं को बुद्धिजीवी मानते हैं या कहलाते हैं उनकी चेष्टाएँ-कुचेष्टाएँ आपस में द्वंद्वयुद्ध कर रही हैं!" दृष्टि ने पुनः अपनी आंखें फाड़कर कहा।


"तो ये कहो न कि हर देशवासी में  'सत्य, रज और तम' - इन त्रिगुणों में द्वंद्व और प्रतिद्वंद्व चरम पर है!" सुबुद्धि बने रंगकर्मी ने अपने दोनों साथियों के कंधे सहलाते हुए कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 412

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2019 at 10:50am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2019 at 4:00am

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन, वाह वाह वाह वाह, बहुत बढिया लघुकथा लिखी आपने , आपको इस प्रस्तुति पर बधाई। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service