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गार्गी की बार्बी (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। दरअसल उन तीनों यानि राजन, रंजीता और गंगा का भी यही हाल था।

ख़ैर, गंगा अपने मालिक राजन और मालकिन रंजीता की वर्षों से वफ़ादार नौकरानी तो थी, लेकिन उस परिवार की सदस्य माफ़िक़ थी। राजन को एक सुंदर बेटी की चाहत थी; तो रंजीता को एक चंचल होशियार बेटे की। लेकिन ये दोनों चाहतें गंगा की भी तो थीं। 

ख़ैर, मालिक और मालकिन का सुंदर चंचल इकलौता बेटा जैक (जैकी) नौकरानी गंगा की देखरेख में अब जवाँ हो चुका था। लेकिन उसके बेडरूम में कुछ सालों से जितना जैक का हक़ था, उतना ही बार्बी और गार्गी का। बड़ा ही दिलचस्प नज़ारा होता था। दरअसल वफ़ादार किंतु अपने बेरोज़गार कमज़ोर पति से पीड़ित नौकरानी गंगा की इकलौती बिटिया गार्गी को राजन और रंजीता अपनी बेटी बार्बी जैसा मानते थे। गार्गी बेहद सुंदर, चंचल और प्रतिभाशाली लड़की थी। गंगा भले पढ़-लिख न पायी थी, लेकिन अपने मालिक और मालकिन की बदौलत उसकी बिटिया ने सातवीं कक्षा पास कर ली थी। गार्गी और जैक सगे भाई-बहिन जैसे रहते थे, सो जब गंगा घर में काम करने आती, तो गार्गी का अधिकतर समय जैक के बेडरूम में और उसकी लायब्रेरी और कम्प्यूटर पर ही गुजरता था।

बार्बी को यह सब देख कर जितनी ख़ुशी होती थी, उतनी ही ईर्ष्या भी गार्गी से होती थी। बार्बी के हक़ में जिन खिलौनों और फैंसी पोषाकों को होना चाहिए था, उन सब पर गार्गी का ही हक़ था।

तभी एक महीना ऐसा भी आया था कि बार्बी ने उन सब से बारी-बारी अकेले में अपने दिल की बातें कह डालीं। 

एक रात बार्बी राजन के सपने में आकर बोली थी, "पप्पा, आप एक सुंदर बेटी चाहते थे, पहली संतान के रूप में। जब मैं मम्मी के पेट में मात्र पाँच महीने की थी, तभी आपने मेरा नामकरण कर दिया था। मुझे बार्बी नाम दिया। उन नौ महीनों में मुझे मेरी मम्मी ने जितने प्यार--दुलार से सँभाला; उतने ही प्यार से आपने भी। रोज़ रात को सोने से पहले आप मम्मी के पेट से सटकर मुझसे बातें करते थे। लोरियाँ और राइम्स सुनाते थे। मुझे मानो सब कुछ हासिल हो गया था।" ... इतना ही कह पायी थी कि राजन हड़बड़ा सा गया और फिर अपनी पत्नी रंजीता से सटकर सो गया था। सपना टूट गया था।

उसी माह एक रात बार्बी रंजीता के सपने में आकर बोली थी, "मम्मा, आपको तो एक बेटा चाहिए था पहली संतान के रूप में; लेकिन मैं आ गई। बेटा ही चाहने के सभी कारणों को, तुम्हारे साथ हुए व्यवहारों और तुम्हारी आप-बीती से, मैं भी समझ चुकी थी।" ... इतना ही कह पायी थी कि रंजीता ने बेचैनी से करवट ली और अपने पति से लिपट कर सो गई थी। सपना टूट गया था।

कुछ दिनों बाद एक रात बार्बी जैक के सपने में आकर उसका सिर बड़े प्यार से सहला कर बोली थी, "बहुत मेहनत करते हो जैकी भैय्या अपने और अपने मम्मी-पापा के सपने पूरे करने वास्ते। बहुत थक जाते हो! मम्मी-पापा भी तुम्हारा बहुत ख़्याल रखते हैं। तुम मेरे छोटे भाई हो, तुम्हें वह सब मिला जो एक भाई को मिलना चाहिए। मुझे बहुत ख़ुशी है कि तुम्हें मेरे हिस्से का भी सब कुछ मिला। तुमने गार्गी में मुझे देखा और उसके साथ वह सब साझा किया, जो एक सगी बड़ी बहिन के साथ तुम्हें करना चाहिए यानी जो तुम मेरे साथ शेयर करते! मम्मी-पापा और गार्गी का बहुत ख़्याल रखना। अपनी तरह उसे भी अपना बेहतर करिअर बनाने देना। उसकी मदद करना। जितना वह तुम्हें चाहती है, उतना ही मुझे और अपने मम्मी-पापा को और ख़ुद अपनी माँ गंगा को भी!" ... इतना ही कह पायी थी कि जैक ने अपने तक़िये को छाती से चिपका लिया था और करवट बदल कर गहरी नींद में सो गया था। यह सपना भी टूट गया था।

अब बारी थी गार्गी की। आज तेज बारिश की वजह से अपनी माँ गंगा के साथ अपने मालिक-मालकिन की इच्छा अनुसार उनके ही घर पर रुक कर आज रात जब गार्गी जैक के बेड पर सो रही थी, बार्बी गार्गी के सपने में आकर बोली, "आज मैं बहुत ख़ुश हूँ कि जब मेरा छोटा भाई जैक एक एक्ज़ाम देने बाहर गया हुआ है, तुम उसके बैड पर सो रही हो। ऐसा लग रहा है कि मानो मैं ख़ुद सो रही हूँ। तुमने जैक को वही प्यार दिया है, जो एक सगी बहिन देती है। जैक भी तुम्हारा बहुत ख़्याल रखता है। मैं तुम सब लोगों के साथ हर रूप में मौजूद हूँ। भले मेरी उम्र सिर्फ़ नौ महीने की रही अपनी मम्मी के ही पेट में! भले ही मैं जीवित दुनिया में न आ सकी; लेकिन अपने ढेर सारे बार्बी-डॉल-मॉडल्स रूप में और बार्बी-ड्रेसेस और खिलौनों के रूप में, डायरी, कैलेंडर, पोस्टर्स व स्टीकर्स वगैरह के रूप में इतने सालों से यहाँ मौजूद हूँ। तुम सबका ढेर सारा प्यार ही तो यूँ मिल रहा है मुझे, है न!" इतना कहकर सपने में बार्बी भी गार्गी के बगल में लेट गई और गार्गी का हाथ थाम कर बोली, "बड़ा अच्छा लगता है जब तुम बार्बी-ड्रेसेज पहनती हो और उन सब खिलौनों से खेलती हो और जैक के कम्प्यूटर पर उसकी ही तरह मेरी तस्वीरें, पोस्टर्स, मूवीज़ डाउनलोड कर सहेज कर रखती हो।... देखो जैकी भैया के बैडरूम की दीवारों पर मैं ही मैं छायी हुई हूँ।... तुम सबका ख़्याल रखती रहना। हाँ, पढ़ाई मत छोड़ना। तुम्हें अपने, अपनी माँ और मेरे मम्मी-पापा के ख़्वाब हक़ीक़त में बदलने हैं। हाँ, तुम डॉक्टर बनना। मेरी मम्मी की पहली डेलिवरी की तरह किसी औरत का डेलिवरी केस मत बिगड़ने देना। ऑपरेशन की ज़्यादा फ़ीस मत माँगना ... ग़रीबों की मदद करती रहना।" बार्बी इतना ही गार्गी से कह पायी कि घड़ी का अलार्म तेज़ी से बजा ओर गार्गी की नींद खुल गई। बिस्तर से उठते ही उसने जैक के उस बैडरूम की दीवारों पर टंगी तस्वीरों और कैलेंडर्स को बारी-बारी से देखने लगी। सब में बार्बी मुस्कुरा रही थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by pratibha pande on November 21, 2020 at 9:35am

बहुत कुछ एक साथ कह देने के लोभ में रचना बिखर गई है आदरणीय उस्मानी जी। पात्र और घटनाएँ उलझ गई हैं। अंत में समझ नहीं आया कि रचना कहना क्या चाह रही है। जितना मैं समझी शायद बालिका सक्षक्तिकरण संदेश है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:58am

आ. भाई शेखशहजाद जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 10, 2020 at 8:21pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छी लघुकथा है,लेकिन तवील बहुत है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Chetan Prakash on November 10, 2020 at 6:23pm

आदाब,जनाब शहजाद उस्मानी !आपकी लघु कथा सम्पादन की आकाँक्षी है और बिखराव भी बहुत है। कथावस्तु का विकास यदि कार्य-कारण सम्बंध पर आधारित न हो तो सुखद परिणाम नहीं मिलता। साभार !

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