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Sushil Sarna's Blog – June 2016 Archive (13)

ज़िंदगी को छलने लगी .....

ज़िंदगी को छलने लगी .....

गज़ब हुआ

एक चराग़ सहर से

शब की चुगली कर बैठा

एक लिबास

अपने ग़म की

तारीकियों से दरयाफ़्त कर बैठा

कोई करीबियों से

फासलों की बात कर बैठा

मैंने तो

तमाम रातों के चांद

उस पर कुर्बान कर दिए थे

अपने ग़मग़ीन पैरहन पर

हंसी के पैबंद सिल दिए थे

अपनी आंखों के हमबिस्तर को

मैं चश्मे साहिल पे ढूंढती रहा

नसीमे सहर से

उसका पता पूछती रही

उम्मीदों की दहलीज़

नाउम्मीदी की…

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Added by Sushil Sarna on June 30, 2016 at 8:35pm — 4 Comments

जीने का अंदाज़ ....

जीने का अंदाज़ .....

अचानक क्या हुआ

हम बेआवाज़ हो गए

हमारे ही लम्हे

हमसे नाराज़ हो गए

कुछ भी तो न था

हमारे दरमियाँ

फिर भी सीने में

हज़ारों राज़ हो गए

हसरतें

लबों की दहलीज़ पर

दम तोड़ती रही

गर्म सांसें

लावे की तरह

राहे उल्फ़त में

एक जुगनू सी उम्मीद लिए

दौड़ती रहीं

हम दोनों के बीच में

क्या है शेष

जो हमको बांधे है

क्यों हम दोनों की आंखें

सागर में नहाई हैं

देखो ! उन…

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Added by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 4:27pm — 6 Comments

पथरीली ज़मीन ....

पथरीली ज़मीन ....

जाने क्यूँ

आजकल आईना

ख़फ़ा ख़फ़ा रहता है

चुपके चुपके

अजनबी सूरत से

जाने क्या कहता है

अब ख़ुद से मुझे

इक दूरी नज़र आती है

दूर कोई परछाईं

अधूरी नज़र आती है

कभी ये नज़र का धोखा

नज़र आता है

कभी कोई जा जा के

लौट आता है

क्यों ये बेसब्री ओ बेकरारी है

किसके लिए आँखों ने

तारे गिन गिन रात गुज़ारी है

मैं अपने साथ

कहां कुछ लाया था

उसकी याद

उसी मोड़ पे छोड़ आया था

किसे देखता मुड़ के…

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Added by Sushil Sarna on June 25, 2016 at 4:46pm — 10 Comments

हम के अस्तित्व से ....

हम के अस्तित्व से ....

बड़ा लम्बा सफर

तय करना पड़ता है

अंतस की व्यथा को

अधरों तक आने में

स्मृतिकोष के

पृष्ठों से किसी की

याद को मिटाने में

अनकहा

कुछ नहीं रहता

अवसाद के पलों में

अभिव्यक्ति

पलकों के पालने से

कपोलों पर

हौले हौले सरकती

किसी स्पर्श के इंतज़ार में

ठहर जाती है

शायद कोई

अपनत्व का परिधान ओढ़ कर

इक बूंद में समाये

विछोह के लावे को

अपनी उंगली के पोरों से उठा…

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Added by Sushil Sarna on June 21, 2016 at 5:16pm — 4 Comments

पुरानी तस्वीर ...

पुरानी तस्वीर ...

ये तुंद हवायें
रहम न खाएंगी
खिड़की के पटों पर
अपना ज़ोर अजमाएंगी
किसी के रोके से भला
ये कहां रुक पाएंगी
अाजकल की हवा
बेरोकटोक चलती है
इनको क्या गरज
इनकी बेफिक्री
किसी के
पांव उखाड़ सकती है
किसी खिड़की के
सामने की दीवार पर
सांस लेती नींव की
पुरानी तस्वीर
गिरा सकती है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 20, 2016 at 9:52pm — 10 Comments

चेहरा ...

चेहरा ...

एक चेहरा एक पल में

लाखों चेहरे जी रहा

कौन जाने कौन सा चेहरा

हंस के आंसू पी रहा

एक चेहरा लगता अपना

एक क्यों बेगाना लगे

कौन दिल की बात कहता

कौन होठों को सी रहा

कत्ल होता रोज इक चेहरा

रोज इक जन्म हो रहा

एक जागे किसी की खातिर

आगोश में इक सो रहा

एक चेहरा ख्वाब बन के

ख़्वाबों में बस जाता है

एक चेहरा अक्स बन के

नींदें किसी की पी रहा

एक चेहरा अपनी दुनिया

चेहरों में बसाता है

एक चेहरा दुनिया…

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Added by Sushil Sarna on June 16, 2016 at 2:59pm — 6 Comments

मायाजाल ...

मायाजाल ...

ये मकड़ी भी

कितनी पागल है

बार बार गिरती है

मगर जाल बुनना

बंद नहीं करती

बहुत सुकून मिलता है उसे

अपने ही जाल के मोह में

स्वयं को उलझाए रखने में

वो स्वयं को

वासनाओं के जाल में

लिप्त रखना चाहती है

शायद वो जानती है

जिस दिन भी वो

अपना कर्म छोड़ देगी

वो अपनी पहचान खो देगी

पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी

लेकिन इस तरह का मोक्ष

कभी उसकी पसंद नहीं होता

उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है…

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Added by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 3:35pm — 12 Comments

एक गुंचा ...

एक गुंचा ...
(२१२ x ३ )
क्यूँ हवा में ज़हर हो गया
हर शजर बेसमर हो गया !!१ !!


एक लम्हा राह में था खड़ा
याद में वो खंडर हो गया !!२!!


भर गया ज़ख्म कैसे भला
किस दुआ का असर हो गया !!३!!


आँख से जो गिरा टूट कर
दर्द वो एक सागर हो गया !!४!!


गुमशुदा था शहर आज तक
जल के वो इक खबर हो गया !!५!!


एक गुंचा क्या खिला बाग़ में
ख्वाब का वो एक घर हो गया !!६!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 10, 2016 at 2:55pm — 2 Comments

अपना मकां बना जाता है ....

अपना मकां बना जाता है ....

कितना अजीब होता है

उससे अपनापन निभाना

जो न होकर भी

सबा की मानिंद

करीब होता है

ये दिल

अपने रूहानी अहसास को

बड़ी निर्भीकता से

उस अदृश्य देह को कह देता है

जिसे देह की उपस्थिति में

व्यक्त करने में

इक उम्र भी कम होती है

हम उसे कह भी लेते हैं

और उसकी

अदैहिक अभिव्यक्ति को

बंद किताबों में

सूखते गुलाबों की

गंध की तरह

पढ़ भी लेते हैं

वो न…

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Added by Sushil Sarna on June 6, 2016 at 1:09pm — 2 Comments

टूटे पैमाने ....

टूटे पैमाने   .... 

२२ २२ २२ २ 

कुछ टूटे पैमाने हैं
कुछ रूठे दीवाने हैं 


कुछ हैं सपनों में डूबे
कुछ खुद से अंजाने है

 

यादों के तहखानों में
बंद कई अफ़साने हैं 

सोये शानों पर मेरे
टूटे ख़्वाब पुराने हैं 

सहमे सहमे आँखों से
छलके दर्द दीवाने हैं 

मुझको उसकी नज़रों से
बहते ज़ख्म चुराने हैं 


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 6:40pm — 12 Comments

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

कुछ भी तो नहीं बदला

नसीम-ऐ-सहर

आज भी मेरे अहसासों को

कुरेद जाती है

मेरी पलकों पे

तेरी नमनाक नज़रों की

नमी छोड़ जाती है

कहाँ बदलता है कुछ

किसी के जाने से

बस दर्द मिलता है

गुजरे हुए लम्हात के मरकदों पे

यादों के चराग़ जलाने में

और लगता है वक्त

लम्हा लम्हा मिली

अनगिनित खराशों को

जिस्म-ओ-ज़हन से मिटाने में

अपनी ज़फा से तुमने

वफ़ा के पैरहन को

तार तार कर दिया…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 3, 2016 at 9:00pm — 8 Comments

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

कुछ भी तो नहीं बदला

नसीम-ऐ-सहर

आज भी मेरे अहसासों को

कुरेद जाती है

मेरी पलकों पे

तेरी नमनाक नज़रों की

नमी छोड़ जाती है

कहाँ बदलता है कुछ

किसी के जाने से

बस दर्द मिलता है

गुजरे हुए लम्हात की मरकदों पे

यादों के चराग़ जलाने में

और लगता है वक्त

लम्हा लम्हा मिली

अनगिनित खराशों को

ज़िस्म-ऐ-ज़हन से मिटाने में

अपनी ज़फा से तुमने

वफ़ा के पैरहन को

तार तार कर दिया

आरज़ू के हर अब्र…

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Added by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 1:55pm — 6 Comments

मुलाकातें....

(22 22 22)

छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें

.

छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें

.

भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें

.

दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें

.

तेरे मेरे सपने

दिल से दिल की बातें

.

आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें

.

याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

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