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AVINASH S BAGDE's Blog (80)

तीन कुंडलियां / अविनाश बागडे

(१)

शक्तिशाली खूब बनो,साहस हो भरपूर.

विनम्रता के भाव ही,मन में रहे प्रचूर.

मन में रहे प्रचूर ,सादगी का गहना हो.

अपनी जरुरत की सरहद में ही रहना हो.

कहता है अविनाश,बढ़ेगी तब खुशहाली.

जीवन अपना और बनेगा शक्तिशाली.

(२)

भाई से भाई टकरा के होते है बरबाद.

दुश्मन के सारे मंसूबे हो जाते आबाद.

हो जाते आबाद,सभी तुम पर हंसते है.

टूटा घर दिखलाकर सब फिकरे कसते हैं.

कहता है अविनाश रोकिये जगत हंसाई

घर का झगडा घर में…

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Added by AVINASH S BAGDE on February 5, 2012 at 1:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल...

ग़ज़ल...

पीले हुए हैं हाँथ जब से मेरे लाल  के,
आये समझ में भाव उसको आटे- दाल  के.
##
आना तू पूछने को जरा इंतजाम से,
दूंगा जवाब मै तुम्हारे हर सवाल के.
##
होते है ऐसे लोग भी अपने समाज में,
मारते हैं मखमली जूते निकाल  के.
##
हमको किसी सय्याद की बातों का डर नहीं,
पंछी चहकते हम सभी हैं एक डाल के.
##
कपड़ों…
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Added by AVINASH S BAGDE on February 2, 2012 at 4:30pm — 5 Comments

हाइकू.

हाइकू.

१-- चुनाव आया
नेताओं की बला से
    तनाव लाया!
***
२- ईमानदार
निभाना है मुश्किल
   ये किरदार!
***
३- ये गंगा-जल
हाँथ में रख कर
   सच उगल!
***
४- ये जिंदगानी
समय की नदी में
   बहता पानी.
***
५- विनाशकाले
विपरीत है बुद्धि
   जान बचा…
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Added by AVINASH S BAGDE on January 27, 2012 at 7:03pm — 5 Comments

उठो साथियों!

उठो साथियों!

उठो साथियों उठ के घर से चलो,
मोहब्बत के तुम अब मदरसे चलो.
अमन की नई  तुम रिसाले गढ़ो  ,
इल्मो-ईमान की तुम डगर से चलो.
बारूदों की जहां पर सुरंगे बिछें ,
साजिशों से भरे उस शहर से चलो.
ऐसी हस्ती बनो, लोग पूजा करें,
बढ़ के सजदा करें तुम जिधर से चल
फिर, फिरंगी तुम्हे बरगलाये नहीं,
साथ आओ, न ऐसे बिखर के चलो.
है बड़प्पन इसी में, इसी बात…
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Added by AVINASH S BAGDE on January 25, 2012 at 11:41pm — 3 Comments

पेंच जो लड़ी......

पेंच जो लड़ी......


चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.

होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.

उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.

वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.

कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,

कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.

                        अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on January 13, 2012 at 11:07am — 3 Comments

रामलू- लघु कथा.

मेरे गाँव का रामलू .बचपन से ही जरा आपराधिक प्रवृत्ति का था.बड़ा हुआ तो पुलिस यदा-कदा उसके पीछे रहती थी. कुछ दिनों बाद वह गायब हो गया.कालान्तर में एक घटना हुई .मै शहर किसी काम से गया.वहां किसी बाबा का प्रवचन चल रहा था.उत्सुकतावश ,भीड़ देख मै भी पंडाल में घुस गया.कड़ा पहरा था मंच के इर्द-गिर्द.बाबा पे मेरी नज़र पड़ी तो मै..अवाक्!!! अरे!ये तो अपना रामलू ही है!!!! इतना बदल गया!!
जो नहीं बदला वो ये कि-मंच पर पुलिस अब भी उसके पीछे थी.
--अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:00pm — 2 Comments

सामयिक दोहे

सामयिक दोहे:-
------------   ---------- 

कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!

एक गोद में सिसक रहा,उसपे भारी पांव.
------------   ----------   -----------------  --
फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
------------   ----------   -----------------  --
लोकपाल है शोक में,जोक मारते लोग.
खुद होकर पाले नहीं ,नेता कोई रोग.
------------   ----------  …
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Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments

तीन दोहे

जाने वो किस जनम का,भुगत रहा है पाप.

चन्दन का है पेड़ मगर ,लिपटाये है सांप!
.
जारी है हर हाल में,जीवन की ये जंग.
डोरी रहे तनाव में,उड़ती रहे पतंग.
.
बेटी को भेजा नहीं,पढने को श्रीमान!
बेटा आवारा हुआ,काट रहा है कान!!!!
.
अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on December 16, 2011 at 8:30pm — 2 Comments

तीन त्रिपदियाँ

ना कहीं उजला नज़ारा.

ना कहीं अंधेर है......!
सब समय का फेर है!! (1)
---------
साथ सोचो क्या चलेगा?
सब यहीं रह जायेगा!
मुफ्त में बँट जायेगा!!! (2)
--------
आस का पंछी गगन में.
दूर कितना जायेगा!
लौट ही तो आएगा!! (3)
----------
AVINASH BAGDEY.

Added by AVINASH S BAGDE on December 11, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

लोकतंत्र के दास !!!

संसद की सब कुर्सियां,  पूछ रही ये बात.

लोकतंत्र की हत्या में, किस-किस का है हाथ?
 
बेशर्मी से कर रहे, जन-धन का उपयोग.
जनता का चेहरा लिए, संसद में कुछ लोग.
 
मुखर सियासत हो गई, संसद भई उदास .
मालिक सारे  बन गए, लोकतंत्र के दास 
 
 
--अविनाश बागडे

Added by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:00pm — 1 Comment

क्षणिकाएँ!

क्षणिकाएँ



१) 
 
आदमी
जो भी गया
अदालत में.
लौटकर 
आया नही
गया था
जिस हालत में!!!! 
 
२)
 
महंगाई क़े
थप्पड़ 
खा कर
पब्लिक 
हलकान है.
आपने
एक थप्पड़ खाया
तो
परेशान…
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Added by AVINASH S BAGDE on December 5, 2011 at 8:00pm — 8 Comments

चलन

हुस्न मिल जायेगा पर नहीं सादगी.

उम्र कट जाएगी पर नहीं ज़िन्दगी.
बंद डिब्बों का ऐसा बढ़ा है चलन,
फल तो मिल जायेंगे पर नहीं ताजगी!!!!!
अविनाश बागडे.
 

Added by AVINASH S BAGDE on November 16, 2011 at 10:30am — No Comments

बचपन.

बचपन.

बचपन इतना मीठा जैसे हो कोई चाकलेट.
महँगी-सस्ती,लम्बी-छोटी,चाहे जो हो रेट
चाहे जो हो रेट,लगे है बस मनभावन.
याद करें इसकी तो मुह में आये सावन.
कहता है अविनाश,सुनो उनका भी क्रंदन!!
ख़त्म हो रहा चौराहों पे जिनका बचपन.
अविनाश बागडे.

 

Added by AVINASH S BAGDE on November 12, 2011 at 9:00pm — 4 Comments

तू इस देश का वासी है.

ताजा सिर्फ सियासी है.

बाकी सब कुछ बासी है.
दौलत के चरणों की तो,
दुनिया सारी दासी है.
आम-आदमी तन्हा है,
उसके संग उदासी है.
शपथ देश की खा लेंगे,
ये तो बात जरा सी है.
भ्रष्ट रास्तों पर चलिए,
आमद अच्छी-खासी है.
बहु-बेटियां बिकती है,
माँ की गोद रुआंसी है.
बूँद-बूँद से भरा कलश,
मछली फिर भी प्यासी है.
गंगा-जल हांथों में ले,
तू इस देश का…
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Added by AVINASH S BAGDE on November 2, 2011 at 9:00pm — 4 Comments

लांछन

पुरुषों की सत्ता बोलें या

कुंठित शासन लगता है.
नर क़े साथ बराबर नारी!
कोरा भाषण लगता है.
औरत तेरी हालत पे
क्या-क्या और लिखा जाये?
नामर्दों की बस्ती में भी,
बाँझ का लांछन लगता है.

अविनाश बागडे.

 

Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

कंदील नहीं मिलते

कभी रास्ते कभी निशाने-मंजिल नहीं मिलते.

 सफीने डूब जाते है उन्हें साहिल नहीं मिलते.…

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Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments

कैसा असर दोस्तों?

कैसा असर दोस्तों?

प्यार का है ये कैसा असर दोस्तों.
रब के आगे झुका मेरा सर दोस्तों.
मेरी धड़कन का हर तार गाने लगा,
उसकी धुन में ही चारों पहर दोस्तों.
एक रेला सा  आया  बहा ले  गया,
मेरे जज्बात की हर  लहर दोस्तों.
अब ख्यालों की बस्ती यूँ आबाद है,
चाहे घर हो या हो वो सफ़र दोस्तों.
प्यार की छल छलाती नदी हो गई,
ज़िन्दगी जो थी सूखी नहर दोस्तों.
उनकी आँखों को मै जाम कहने…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments

लड़ता रहा कबीर..

मन से फक्कड़ संत वह, तन से रहा फ़कीर.

खड़ीं सामने रूढ़ियाँ, लड़ता रहा कबीर..


तेरह-ग्यारह नाप के, रचे हजारों छंद.
दोहे संत कबीर के, करे बोलती बंद..


पूजे लोग कबीर को, ले अँधा विश्वास..
गड़े कबीरा लाज से, दोहे हुए उदास..


थोडा बोलो चुप रहो, सुनो लगा कर कान.
छोटे मुख मै क्या कहूं, कह गए लोग सुजान..


कथ्य कला काया कसक, कागज़ कलम किताब.
सब मिल कर पूरा करे, ज्ञानदेव का ख्वाब..

अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on October 5, 2011 at 3:30pm — 5 Comments

आती हमको लाज.

हिंदी को समर्पित दोहे.



मठाधीश सब हिंदी के,करते ऐसा काज.
हिन्दीभाषी कहलाते,आती हमको लाज.


हिंदी दिवस कहे या फिर सरकारी अवसाद.
अपने भाई-बन्दों  में,बंटता है परसाद. 


हिंदी का जिन सूबों में,होता गहन विरोध.
राजनीती सब छोड़ के,करिए इस पर शोध.


अंग्रेजी का हम कभी,करते नहीं…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 3, 2011 at 8:06pm — 7 Comments

सूखी नदी के सामने

(1)

मुकद्दर की बात.



कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल…

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Added by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

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