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तू इस देश का वासी है.

ताजा सिर्फ सियासी है.

बाकी सब कुछ बासी है.
दौलत के चरणों की तो,
दुनिया सारी दासी है.
आम-आदमी तन्हा है,
उसके संग उदासी है.
शपथ देश की खा लेंगे,
ये तो बात जरा सी है.
भ्रष्ट रास्तों पर चलिए,
आमद अच्छी-खासी है.
बहु-बेटियां बिकती है,
माँ की गोद रुआंसी है.
बूँद-बूँद से भरा कलश,
मछली फिर भी प्यासी है.
गंगा-जल हांथों में ले,
तू इस देश का वासी है.
अविनाश बागडे. 

 

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Comment by AVINASH S BAGDE on November 7, 2011 at 7:58pm

आशीष यादव..satish mapatpuri..Subhash Trehan...Aapki sadbhawnao k prati aabhar.

Comment by आशीष यादव on November 6, 2011 at 10:20pm
बहुत अच्छी रचना है| बिलकुल सही लिखा है आपने| आज की स्थिति ही कुछ ऐसी हो गयी है|

बधाई स्वीकार करें|
Comment by satish mapatpuri on November 5, 2011 at 5:10pm
शपथ देश की खा लेंगे,
ये तो बात जरा सी है.
बेहतरीन ...... दाद कुबूल करें अविनाश जी
Comment by Subhash Trehan on November 3, 2011 at 4:02pm
भ्रष्ट रास्तों पर चलिए,
आमद अच्छी-खासी है.

बहुत उम्दा साहिब।

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