For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanjay Mishra 'Habib''s Blog (12)

धनाक्षरी

भोर को निशा बना दे, अंधकार ही घना दे।
हो सके तो श्वांस ना दे, आदमी को आदमी।

लोभ के गुणों को जापे, हर्ष के लिए विलापे।
स्वार्थ में कठोर शापे, आदमी को आदमी।

भाग में रहा बदा है, जोड़ता यदा कदा है।
बांटता चला  सदा है, आदमी को आदमी।

शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा।
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।

_____मौलिक/अप्रकाशित______

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:39pm — 10 Comments

डेवलपमेंट्स

“सर! निगम के सी. ई. ओ. के घोटालों की पूरी रिपोर्ट मैंने फायनल कर दी है। प्रिंट में जाये उससे  पहले आप एक नज़र डाल लीजिए...” एडिटर इन चीफ ने रिपोर्ट पर सरसरी निगाह डाली और लापरवाही से उसे टेबल के किनारे रखे ट्रे पर डालते हुये कहा – “इसे छोड़ो, इस केस में कुछ नए डेवलपमेंट्स पता चले हैं... उन सब को एड करके बाद में देखेंगे... बल्कि तुम ऐसा करो कि नए आर॰ टी॰ ओ॰ से संबन्धित रिपोर्ट को जल्दी से फायनल कर दो, उसे कल के एडिशन में देना है...”



वह अपने चेम्बर में बैठ कर  आर॰ टी॰ ओ॰ से संबन्धित…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 10:00am — 8 Comments

चाबी

राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी गर्दन मरोड़ दी... “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय जयकार करती हुई सहर्ष अपने अपने कामों में लग गई।

 

उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था... हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूंजी... “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकाल कर अन्यत्र छुपा दी है...  प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई... राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on October 4, 2013 at 9:36am — 22 Comments

अध्यादेश

शरीर पर बेदाग पोशाक, स्वच्छ जेकेट, सौम्य पगड़ी एवं चेहरे पर विवशता, झुंझलाहट, उदासी और आक्रोश के मिले जुले भाव लिए वे गाड़ी से उतरे... ससम्मान पुकारती अनेक आवाजों को अनसुना कर वे तेजी से समाधि स्थल की ओर बढ़ गए... फिर शायद कुछ सोच अचानक रुके, मुड़े और चेहरे पर स्थापित विभिन्न भावों की सत्ता के ऊपर मुस्कुराहट का आवरण डालने का लगभग सफल प्रयास करते हुये धीमे से बोले- “मैं जानता हूँ, जो आप पूछना चाहते हैं... देखिये, आप सबको, देश को यह समझना चाहिए... और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on October 2, 2013 at 9:08am — 25 Comments

कुण्डलिया

किंचित तो गुरुता नहीं, अन्तरमन में शेष।
लेकिन बैठे छद्म कर, धारण गुरु का वेश॥  
धारण गुरु का वेश, विषयरत कामी–लोभी।
लेकर प्रभु का नाम, लूट लेते प्रभु को भी॥
करुणाकर भी सोच, सोच कर होंगे चिंतित।
रच कर मानुष-वर्ण, भूल कर बैठा किंचित!!


_______मौलिक / अप्रकाशित________

- संजय मिश्रा 'हबीब'

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on September 3, 2013 at 9:30am — 15 Comments

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया

वाह! तरही मुशायरा के इस अंक में क्या ही शानदार, एक से बढ़कर एक गजलें पढने को मिली...आनंद आ गया... सभी गजलकारों को तहेदिल से मुबारकबाद देते हुए मुशायरा के दौरान व्यस्तता की वजह से पोस्ट नहीं हो सकी 'मिसरा ए तरह' पर गजल प्रयास सादर प्रस्तुत...

क्या पता अच्छा या बुरा लाया।

चैन दे, तिश्नगी उठा लाया।

 

जो कहो धोखा तो यही कह लो,

अश्क अजानिब के मैं चुरा लाया।

 

क्यूँ फिजायें धुआँ धुआँ सी हैं,

याँ शरर कौन है छुपा…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on May 28, 2013 at 5:21pm — 20 Comments

कह मुकरिया

कह मुकरने की कुछ कोशिशें...

(1)

वो डोले दुनिया मुसकाए।

पवन बसन्ती झूमे गाये।

बिन उसके जग खाली खाली,

क्या सखी साजन? ना हरियाली।

 …

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on July 31, 2012 at 3:30pm — 5 Comments

गजल

छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.

सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.

राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,

रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.

देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,

इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments

आल्हा - एक प्रयास

दुनिया यही सिखाती हरदम, सीख सके तो तू भी सीख।  

आदर्शों पर चलकर हासिल, कुछ ना होगा, मांगो भीख।

 

तीखे कर दांतों को अपने, मत रह सहमा औ…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on May 24, 2012 at 4:00pm — 20 Comments

होली की शुभकामनाएं... (अनुष्टुप)

बज उठे नगाड़े हैं, फाग फगुन गा रहा |

सज गया पलासों से, कानन इठला रहा ||

 

रस भरे नज़ारे हैं, फूल महकते सभी,

भँवरे अकुलाए हैं, बाग उन्हें बुला रहा ||

 

गगन में गुलालों का, इंद्रधनुष भी खिला,

कारवां खुशहाली का, मंगलमय छा रहा ||

 

रंग बिरंग राहें भी, भूल बैर गले मिलीं,

भोर मगन वीणा ले, गीत गुनगुना रहा ||

 

मन मयूर नाचे है, झूम कर बसंत सा,

हबीब मस्त नैनों से, रंग है बरसा रहा…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on March 9, 2012 at 2:24pm — 7 Comments

अनुष्टुप में एक प्रयोग

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १०  में आदरणीय सौरभ बड़े भईया द्वारा अनुष्टुप छंद के विषय मे दी गयी बहुमूल्य जानकारी के आधार पर यह व्यंग्य प्रयोग प्रस्तुत है...

|

समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे |

राम युग बसाएंगे,…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 22, 2012 at 11:30am — 8 Comments

छन्न पकैया

सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से  -

.

छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,

छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||

.…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service