शरीर पर बेदाग पोशाक, स्वच्छ जेकेट, सौम्य पगड़ी एवं चेहरे पर विवशता, झुंझलाहट, उदासी और आक्रोश के मिले जुले भाव लिए वे गाड़ी से उतरे... ससम्मान पुकारती अनेक आवाजों को अनसुना कर वे तेजी से समाधि स्थल की ओर बढ़ गए... फिर शायद कुछ सोच अचानक रुके, मुड़े और चेहरे पर स्थापित विभिन्न भावों की सत्ता के ऊपर मुस्कुराहट का आवरण डालने का लगभग सफल प्रयास करते हुये धीमे से बोले- “मैं जानता हूँ, जो आप पूछना चाहते हैं... देखिये, आप सबको, देश को यह समझना चाहिए... और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के पदचिह्नों पर, उनके दिखाये, बताए, सुझाए रास्तों पर चलना ही हमारी प्रथम प्राथमिकता एवं प्रतिबद्धता है...” कहकर वे मुड़े और तेजी से चलते हुये भीतर प्रवेश कर गए... शीघ्र ही वातावरण में ‘गांधीजी’ के प्रिय भजन की स्वरलहरियां तैरने लगीं.... “वैष्णव जन तो.... “
_________मौलिक/अप्रकाशित__________
Comment
आदरणीय संजय जी.
उस बेदाग पोशाक को धारण कारने वाले को इतना ही बोलने की इजाजत थी.
गांधी के पद चिन्हों पर चलते हुये वो इतना मशगूल है कि गांधी और ’जी’ की कहन और उन दोनों के कथन के अन्तर को समझना छोड़ दिया है...
सादर.
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेयी जी....
आदरणीय सौरभ बड़े भईया, पीठ पर आपकी थपकी न केवल उत्साह बढ़ाती है, सकारात्मक सृजन हेतु प्रेरित करती है बल्कि स्नेहपूर्वक उसका मार्ग भी प्रशस्त करती है... आपकी "एक बात" निसंदेह गांठ बांध कर रखने वाली है... दरअसल चाटुकारिता की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करने के लिए अतिशयोक्ति पूर्ण वाक्य विन्यास चाह रहा था, नतीजतन यह असंगत प्रयोग हो गया...
अनुज का सादर नमन/आभार स्वीकारें...
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय भाई ब्रजेश नीरज जी....
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय विजय मिश्र जी....
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय डा आशुतोष मिश्र जी....
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय भैया अरुण निगम जी...
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीया वंदना जी....
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय भाई सुशील जोशी जी....
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार स्वीकारें आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी...
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