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सालिक गणवीर's Blog – April 2020 Archive (3)

ग़ज़ल ( बेच कर ज़मीर उसको ....)

(212 1222 212 1222)

बेच कर ज़मीर उसको फ़ायदा हुआ होगा

ज़िंदगी में फिर उसके जाने क्या हुआ होगा

क़त्ल तो यक़ीनन था पर बयान आया है

फिर बहस छिड़ी है कि हादसा हुआ होगा

बदहवास पत्ते फिर ज़र्द पड़ गये सारे

कल ख़िज़ाँ के मौसम पर फैसला हुआ होगा

रौशनी में जंगल भी जगमगा रहा होगा

चांँद पेड़ की टहनी पर टंँगा हुआ होगा

बोझ से मांँ तसले के दोहरी हुई होगी

पीठ पर कोई बच्चा भी बंँधा हुआ…

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Added by सालिक गणवीर on April 22, 2020 at 9:30am — No Comments

एक ग़ज़ल

आज आंखें नम हुईंं तो क्या हुआ

रो न पाए हम कभी अर्सा हुआ



आपबीती क्या सुनाऊंगा उसे

आज भी तो है गला बैठा हुआ



ढूंढता हूँ इक सितारे को यहाँ

दूर तक है आसमां फैला हुआ



क्यों  क़रीने से रखें सामान को

घर को रहने दीजिये बिखरा हुआ



नींद  पलकों  पर  कहीं ठहरी हुई

ख़्वाब आंखों में वहीं सहमा हुआ



जी  रहा  हूँ  बस  इसी उम्मीद से

लौट  आएगा  समय  बीता हुआ



हादसे  ऐसे   भी  तो   होते   रहे…

Continue

Added by सालिक गणवीर on April 6, 2020 at 8:29pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल

सुन  रहे  हैं  कि  वो  इक ऐसी दवाई देगा

जिससे  अंधे  को भी रातों में दिखाई देगा



प्यार  से  उसने  बुलाया है मुझे मक़्तल में

जानता हूँ   मैं जो  दावत   में  क़साई देगा



ऐसे चिल्लाओ कि आवाज़ वहाँ तक जाए

एक  दिन  तो  सभी  बहरों को सुनाई देगा



पास  रहता  हूँ  तो मुंह फेर के चल देता है

दूर  जाऊँगा  तो   आने   की   दुहाई  देगा



क़ैदख़ाने   में  उसी  ने  ही रखा सालों तक

जिसने   उम्मीद  जताई   थी   रिहाई  देगा



घुप   अंधेरे  से …

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Added by सालिक गणवीर on April 1, 2020 at 12:00pm — 5 Comments

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