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GHazal-3

तुमने अत्याचार का कैसे समर्थन कर दिया
मौन रह कर दुष्ट का उत्साहवर्धन कर दिया

धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया

जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया

चेतना की बिजलियों ने रोशनी तो दी मगर
एक मरुस्थल की तरह से मन को निर्जन कर दिया

मन तथा मस्तिष्क के इस द्वंद मे व्यवहार ने
कर दिया इसका कभी उसका समर्थन कर दिया.

Added by fauzan on May 19, 2010 at 12:14am — 9 Comments

एक प्रेमिका की अभिव्यक्ति

अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .

दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .

जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .

देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .

प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .

दिल का -------------------------------------------

शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .

सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .

आज भी याद है कल की बातें, क्यों इससे इनकार करूँ .

दिल का… Continue

Added by satish mapatpuri on May 17, 2010 at 11:29am — 4 Comments

खवाहिश

न जीने की खवाहिश ज़हर चाहता हू
तुमाहरे ही हातों मगर चाहता हू

वो मिल जाए मुझको है जिसकी तमन्ना
मै अपनी दुआ में असर चाहता हू

कही मर न जाऊ यह लेकर तमन्ना
तुम्हरी झलक एक नज़र चाहता हू

है मुद्दत से कतए ताल्लुक हमारा
तुझे आज भी मै मगर चाहता हू

तेरा साथ काफी ए मेरे अलीम
न माल और दौलत न घर चाहता हू

katye means ------chod dena

Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 4:03pm — 5 Comments

हमसफ़र

है कयामत या है बिजली सी जवानी आपकी
खूबसूरत सी मगर है जिंदगानी आपकी

तीर आँखों से चलाना या पिलाना होंठ से
भूल सकता हु नहीं मैं हर निशानी आपकी

आप मोहसिन है हमारे आपका एहसान है
हमसफ़र हमको बनाया मेहेरबानी आपकी

रूठ कर नज़रें चुराना मुस्कुराना फिर मगर
याद है सब कुछ मुझे बातें पुरानी आपकी

तुमसे वाबस्ता है मेरी जिंदगानी का हर वरक
ज़िन्दगी मेरी है कहानी आपकी

Added by aleem azmi on May 16, 2010 at 1:42pm — 4 Comments

लड़की / अमरजीत कौंके

लड़की / अमरजीत कौंके



बचपन से यौवन का

पुल पार करती

कैसे गौरैया की तरह

चहकती है लड़की



घर में दबे पाँव चलती

भूख से बेखबर

पिता की गरीबी से अन्जान

स्कूल में बच्चों के

नए नए नाम रखती

गौरैया लगती है लड़की

अभी उड़ने के लिए पर तौलती



और दो चार वर्षों में

लाल चुनरी में लिपटी

सखिओं के झुण्ड में छिपी

ससुराल में जाएगी लड़की



क्या कायम रह पायेगी

उसकी यह तितलिओं सी शोखी

यह गुलाबी मुस्कान

गृहस्थ की… Continue

Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 9:22am — 7 Comments

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके



कंजक कुँआरी कविताओं का

एक कब्रिस्तान है

मेरे सीने के भीतर



कविताएँ

जिनके जिस्म से अभी

संगीत पनपना शुरू हुआ था

और उनके अंग

कपड़ों के नीचे

जवान हो रहे थे

उनके मरमरी चेहरों पर

सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी



तभी अतीत ने

उन्हें क्रोधित आँखों से देखा

वर्तमान ने

तिरछी नज़रों से घूरा

और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई



इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर

मैंने उन कविताओं को

अपने मन… Continue

Added by DR. AMARJEET KAUNKE on May 16, 2010 at 6:34am — 5 Comments

मन की पतंग

पतंग सा शोख मन

लिए चंचलता अपार

छूना चाहता है

पूरे नभ का विस्तार

पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं

अनदेखी कर

सब बाधाएं

पग आगे ही आगे बढाएं



ज़िंदगी की थकान को

दूर करने के चाहिए

मन की पतंग

और सपनो का आस्मां

जिसमे मन भेर सके

बेहिचक,सतरंगी उड़ान



पर क्यों थमाएं डोर

पराये हाथों मैं

हर पल खौफ

रहे मन मैं

जाने कब कट जाएँ

कब लुट जाएँ



चंचलता,चपलता

लिए देखे मन

ज़िन्दगी के… Continue

Added by rajni chhabra on May 15, 2010 at 2:00pm — 8 Comments

Ghazal-1

जब अपने वश मे अहंकार कर लिया मैने
तब अपनी हार को स्वीकार कर लिया मैने

उसे घमंड कि उसने मुझे मिटा डाला
मुझे ये गर्व कि एक वार कर लिया मैने

तुम्हे भी याद रहे मेरा सुर्खरु होना
लो अपने रक्त से श्रृगार कर लिया मैने

जो मेरे मित्र ने भेजा था प्यार से तोहफा
उसी कफ़न हि को दस्तार कर लिया मैने

बड़े ही प्रेम से जीवन के हर मरुस्थल को
तुम्हारा नाम लिया पार कर लिया मैने

Added by fauzan on May 14, 2010 at 9:16pm — 9 Comments

Ghazal-2

धनी बहुत थे मगर अब फ़क़ीर कितने हैं
हमारे युग मे बताओ कबीर कितने हैं

जो युध भूमि मैं छाती को ढाल करते हों
तुम्हारे पास बताओ वो वीर कितने हैं

सती प्रथा पे करो टिप्पणी वरन सोचो
बिना चिता के सुलगते शरीर कितने हैं

जो देखीं सिलवटें मुख पर युवा भिखारॅन के
समझ गया हूँ यहाँ दानवीर कितने हैं

मिले हैं बन के अपरिचित सदा इसी कारण
उन्हे पता ना चले हम अधीर कितने हैं

Added by fauzan on May 14, 2010 at 9:19pm — 10 Comments

ग़ज़ल

तुम्हारे नाम की ऐसी हंसी एक शाम कर देंगें .

रहोगे बेखबर कैसे तुम्हें बदनाम कर देंगें .

मोहब्बत में दिलों को हारने वाले बहुत होंगे .

मगर दिल चीज़ क्या हम ज़िन्दगी तेरे नाम कर देंगें .

तेरा दावा है तेरा संग दिल हरगिज़ ना पिघलेगा .

हमारी जिद्द है की एक दिन तुम्हें गुलफाम कर देंगे .

सुना है प्यार से मेरा नाम लेतो हो अकेले में .

यकीं होता नहीं की आप भी ये काम कर देंगें .

वफ़ा मापतपुरी मिलती है अब ग़ज़लों में शेरों में .

मगर हम बेवफा कैसे तुम्हें ऐलान कर… Continue

Added by satish mapatpuri on May 14, 2010 at 4:20pm — 6 Comments

आत्म हत्या के नयाब तरीका ,

आत्म हत्या के नयाब तरीका ,

कोई केश नहीं बनेगा ,

पकडे जाने पर मुकदमा नहीं चलेगा ,

अब तो आप जानना चाहेंगे ,

आत्म हत्या के नयाब तरीका ,

दोस्ती से सुरु होती हैं,

आन बान शान तक जाती हैं ,

कभी जान कर ,

तो कभी अनजाने में ,

लोग अपनाते हैं ,

आत्म हत्या के नयाब तरीका ,

आइये आपकी इंतजार ख़तम करे ,

तो सबसे पाहिले ,

तम्बाकू सेवन करे ,

इससे काम न बने तो ,

शराब को अपनाये ,

साथ में सिगरेट या ,

सिंगर जलाये ,

और जल्दी हो तो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 13, 2010 at 5:13pm — 8 Comments

ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,

ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,

ओपन बुक्स ऑनलाइन तो आप का अपना घर है ,

सुबह से साम तक रहता आपका इंतजार हैं ,

ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,

गजले योगराज प्रभाकर, आशा पाण्डेय, अलीम के ,

इनका भी जबाब कहा भाई विवेक, सतीश मपतपुरी हैं ,

आइये ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,

कविता पे राज करे बहन रजनी छाबरा ,

संग राजू की रचना बिरेश, अर्पण की मस्ती हैं,

आइये ओपन बुक्स ऑनलाइन पे आपका स्वागत हैं ,

लेख रतनेश और अभिषेक , अमरेंदर… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 13, 2010 at 3:46pm — 4 Comments

इस देश का संबल बनो

नव पीढी तुम इस देश का संबल बनो

माहौल कीचड़ है तो क्या तुम कमल बनो

जो जलना चाहता है उसके लिए अंगार बनो

चैन-सुकूं जो चाहे उसके लिए जलधार बनो

चंड-प्रचंड ज्वाला कहीं, कहीं गंगाजल बनो

नव पीढी तुम .......

माहौल कीचड़ ........

वतन की खुशहाली तेरी आँखों का सपन हो

दिल में हो वतन परस्ती,सर पर कफ़न हो

हर क़दम हो दृढ़ता भरा,कभी न विचल बनो

नव पीढी तुम ......

माहौल कीचड़ ........

तोड़ दो उन हाथों को जो छीनते ग़रीब का निवाला

वतन से जो करते… Continue

Added by asha pandey ojha on May 13, 2010 at 11:46am — 13 Comments

SAANJH KE ANDHERE MAIN

सांझ
के झुटपुट
अंधेरे मैं
दुआ के लिए
उठा कर हाथ
क्या
मांगना
टूटते
हुए तारे से
जो अपना
ही
अस्तित्व
नहीं रख सकता
कायम
माँगना ही है तो मांगो
डूबते
हुए सूरज से
जो अस्त हो कर भी
नही होता पस्त
अस्त होता है वो,
एक नए सूर्योदय के लिए
अपनी स्वर्णिम किरणों से
रोशन करने को
सारा ज़हान

Added by rajni chhabra on May 13, 2010 at 9:09am — 6 Comments

आइना

काश मैं एक आइना होता
हर पल हर घडी
तुझे देखता रहता
काश मैं एक आइना होता
तेरे चेहरे पर क्या लिखा है
तुझे यह बता देता और
दिन भर तेरे घर की
दीवारों पर झूलता
तेरे चेहरे की मुस्कान को
देखकर मुस्कुराता खिलखिलाता
काश मै एक आइना होता
आखिर एक दिन
उंचाई से फर्श पर
गिर कर टुकड़े टुकड़े हो जाता
तेरे लिए कुछ कर पाता
और जब जब तू उन टुकडो को
एक एक करके उठाती तो
बड़ा मज़ा आता
काश मैं एक आइना होता

Added by aleem azmi on May 11, 2010 at 5:33pm — 6 Comments

पत्थर हो गया है दिल चोट खाते खाते...

पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते ,

असर नहीं करता है अब दर्द कोई आते जाते,

जिंदगी को जीना सिखागयी वो जाते जाते,

अहसान इतना है की मै मर जाऊंगा चुकाते चुकाते,

तनहइयां अब मित्र बन गयी है तडपाते-तडपाते,

यादे बन गयी है तस्वीर याद आते आते,

पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते



न समझ सकी वो मुझको कभी भी

थक गया मै उसका दिल पिघलाते-पिघलते

ऐसा बेहोश किया मेरे कातिल ने कि

अब तक होश न आया मुझे आते आते,

भुला न सकूँगा मै उसे कभी भी,

और क्या कहूँ मैं… Continue

Added by Biresh kumar on May 10, 2010 at 4:03pm — 6 Comments

कास मैं होता कुत्ता

कास मैं होता कुत्ता अयरा गैरा नहीं एलसिसियन ,

अयरे गैरे रोड पर मरे परे मिलते हैं ,

खाने के लिए रोटी नहीं मिलती ओ भी सुखी .

दूध मलाई मांस का टुकरा तो खाता,

अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,

चलने के लिए सायकल नहीं मिलती ओ भी टुट्टी,

कर के पिछले सिट पर आराम से जाता ,

अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,

सोने के लिए टाट नहीं मिलती ओ भी फट्टी,

मखमली गद्दे पर आराम से सोता ,

अगर होता मैं एलसिसियन कुत्ता ,

ये प्रभु इ गलती को फिर मत दुहराना ,

अगले जनम… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 10, 2010 at 3:33pm — 4 Comments

......... न करो !

......... न करो !



मेरी तक़दीर में लिखे नहीं हैं गीत कोई ,

फ़िज़ूल में ये संगीत बजाया न करो,

मुझे यूँ ही तनहाइयों में जीने दो,

मेरे चारो तरफ शोर मचाया न करो,

मैं खुश हूँ अपनी इस गुमनाम जिंदगी से ,

प्लीज़ मेरा और फ़साना बनाया न करो,

मेरे प्यार को बस प्यार ही रहने दो,

नाम कोई और देकर,यूँ तमाशा बनाया न करो,



मैं मुसाफिर हूँ और राह नहीं हैं मालूम,

कभी ये सोच कर ,मुझे रास्ता दिखाया न करो,

भटका हुआ सा मैं लगता हूँ जरुर,

खुद ढूंढ़… Continue

Added by Biresh kumar on May 10, 2010 at 11:47am — 5 Comments

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी!

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी

पूंछ ए खुदा,क्या चाहता हूँ मै लिखना

तेरे हाँथ थक गए होंगे मेरी कहानी लिखते लिखते



तो थमा दे मुझे मेरे जीवन की पुस्तक क्यूंकि

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी



कुछ शब्द है मेरे जेहन में,

कुछ चित्र है मेरे मन में,

कुछ रस्ते है इस वन में,

कई इरादे है अब मन में,

उन सबको मिलाकर लिखूंगा एक कहानी

जो होगी मेरी ही जुबानी,

जीयुंगा अब उसे ही मै,



अब बस यही एक तमन्ना रह गयी है,

कुछ बाते हैं मेरे… Continue

Added by Biresh kumar on May 9, 2010 at 8:14pm — 7 Comments

सहारा तेरा

डूब जाने की तलब दिल में उभर आई है

उसकी आँखों में अजब झील सी गहरे है



काश उसे भी मेरी हालत का पता हो जाता

रात है और गमे हिज्र की पुरवाई है



चाँद भी डूब गया बुझ गए तारे भी तमाम

मेरी आँखों में मगर नींद नहीं आई है



गम की तौहीन है इजहारे गमे दिल करना

और चुप रहने में शायद तेरी रुसवाई है



तेरी यादों ने दिया बढ़के सहारा ए दोस्त

जबकि कश्ती मेरी तूफ़ान से टकराई है



गमे जाना गमे दुनिया गमे हस्ती गमे दिल

ज़िन्दगी कितने मराहिल…
Continue

Added by aleem azmi on May 9, 2010 at 3:31pm — 3 Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
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"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
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"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
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"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
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