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एक प्रेमिका की अभिव्यक्ति

अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .
दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .
जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .
देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .
प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .
दिल का -------------------------------------------
शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .
सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .
आज भी याद है कल की बातें, क्यों इससे इनकार करूँ .
दिल का -------------------------------------------
कोई गिला ना- शिकवा कोई, ना तुम पर कोई तोहमत है .
ज़ख्म मिला जो प्यार में हमको,अब उससे ही उल्फत है .
दर्द ही मर्ज़ है -दर्द दवा है, दूजा क्या उपचार करूँ .
दिल का -------------------------------------------
समाप्त
गीतकार -सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2010 at 8:31pm
कोई गिला ना- शिकवा कोई, ना तुम पर कोई तोहमत है .
ज़ख्म मिला जो प्यार में हमको,अब उससे ही उल्फत है ,
वाह सतीश भइया वाह , ग़ज़ब की ये लाइन है, बहुत सही, यही तो सच्चा प्यार है, प्यार मे मिले जख्म भी सिने से लगाने को जी चाहता है, शायद यही प्यार है, एक अच्छीरचना दिया है सतीश भाई, बहुत बढ़िया,
Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:13pm
अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .
दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .
जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .
देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .
प्यार भी अपना -गम भी अपना ,क्यों इसका इज़हार करूँ .
Aek achhi rachna hai, mapatpuri jee ka open books par aayey pahaley ki bhi rachnayey mainey padha hai sabhi achhi rachnayey hai,
Comment by Admin on May 18, 2010 at 12:21pm
शीशा जैसे टूट गए जो, माना की वो सपने थे .
सच है आज पराये हो गए, पर कल तक तो अपने थे .

सतीश जी, बहुत ही खूबसूरती से इस रचना को आप ने सजाया है, एक प्रेमिका की अभिव्यक्ति , बहुत सुंदर है, सब समय की बात है, कभी बेगाने भी अपने हो जाते है और कभी अपने भी बेगाने हो जाते है,बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिये,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 17, 2010 at 10:46pm
अब क्यूँ अपना रूप सजाऊं ,किसके लिए सिंगार करूँ .
दिल का गुलशन उजड़ गया तो ,फिर से क्यूँ गुलज़ार .
जब से गए -तन्हाई में मैं ,तुमको ही सोचा करती हूँ .
देख न ले कोई अश्क हमारा ,छिप -छिप रोया करती हूँ .
bahut hi badhiya rachna hai satish jee......is rachna par main jyada kuch nahi likh sakta isliye bas itna hi kahunga ki bahut hi badhiya hai...........

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