For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

......... न करो !

मेरी तक़दीर में लिखे नहीं हैं गीत कोई ,
फ़िज़ूल में ये संगीत बजाया न करो,
मुझे यूँ ही तनहाइयों में जीने दो,
मेरे चारो तरफ शोर मचाया न करो,
मैं खुश हूँ अपनी इस गुमनाम जिंदगी से ,
प्लीज़ मेरा और फ़साना बनाया न करो,
मेरे प्यार को बस प्यार ही रहने दो,
नाम कोई और देकर,यूँ तमाशा बनाया न करो,

मैं मुसाफिर हूँ और राह नहीं हैं मालूम,
कभी ये सोच कर ,मुझे रास्ता दिखाया न करो,
भटका हुआ सा मैं लगता हूँ जरुर,
खुद ढूंढ़ रहा हूँ राह अपनी,मुझे और भटकाया न करो,

मैं जो पी रहा हूँ स्वाद ले लेकर ,
मैं जानता हूँ ये ज़हर है,तुम बार बार बताया न करो,
याद आरही है मुझे मेरे कातिल की,
आखिरी वक़्त हैं, खलल पैदा न करो!
-बिरेश कुमार 'वीर' !!

Views: 385

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amrita Choudhary on May 29, 2010 at 7:56pm
aap gumnam nahi ho.... :)
nice thoughts....
keep it up...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2010 at 9:52am
मैं खुश हूँ अपनी इस गुमनाम जिंदगी से ,
प्लीज़ मेरा और फ़साना बनाया न करो,
मेरे प्यार को बस प्यार ही रहने दो,
नाम कोई और देकर,यूँ तमाशा बनाया न करो,
Biresj jee achhi rachna hai, Par ab aap ki jindgi GUMNAM nahi rah sakti quki aap ki rachna OBO par chhap gai hai, bahut badhiya likh rahey hai, ees jajbey ko banayey rakhaney ki jaroorat hai, thanks
Comment by Rash Bihari Ravi on May 10, 2010 at 3:19pm
bahut khub lage raho bhai,
Comment by Admin on May 10, 2010 at 2:30pm
मैं मुसाफिर हूँ और राह नहीं हैं मालूम,
कभी ये सोच कर ,मुझे रास्ता दिखाया न करो,
भटका हुआ सा मैं लगता हूँ जरुर,
खुद ढूंढ़ रहा हूँ राह अपनी,मुझे और भटकाया न करो,

वाह वाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , बिरेश जी, आप तो कमल का लिखते है भाई, बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति, धन्यवाद,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 10, 2010 at 12:50pm
bahut badhiya rachna hai biresh jee.........bahut acchha likh rahe hain...aise hi likhte rahe...
aapki agli rachna ka intezaar rahega..........keep it up biresh jee.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service