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लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

लालटेन / डॉ. अमरजीत कौंके

कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर

कविताएँ
जिनके जिस्म से अभी
संगीत पनपना शुरू हुआ था
और उनके अंग
कपड़ों के नीचे
जवान हो रहे थे
उनके मरमरी चेहरों पर
सुर्ख आभा झिलमिलाने लगी थी

तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई

इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन की धरती में
गहरा दबा डाला
अपनी तरफ से उन्हें
गहरी नींद सुला डाला
और कहा-
कि अभी कविताओं को
प्यार करने का समय नहीं

लेकिन टिकी रात के
ख़ौफनाक अँधेरे में
मेरे भीतर अब भी
उनकी भयानक हँसी गूँजती
दिल दहला देने वाली चीख़ें
विलाप की आवाज़
मेरे मन की दीवारों से
टकरा-टकरा कर लौटती
और पूछती-
कि हमारा गुनाह क्या था ?
आवाज़ पूछती
तो मेरे मन की मिट्टी काँपती
काँपती और तड़पती
और मैं
घर से छिपकर
समाज से छिपकर
पूर्वजों से छिपकर
हाथों में
स्मृतियों की लालटेन पकड़े
सारे कब्रिस्तान की परिक्रमा करता।

और कंजक कुँआरी
कविताओं की कब्रों पर
अपने लहू का
एक-एक चिराग
रोशन करता।
098142 31698
EMAIL...amarjeetkaunke@yahoo.co.in

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2010 at 11:33pm
तभी अतीत ने
उन्हें क्रोधित आँखों से देखा
वर्तमान ने
तिरछी नज़रों से घूरा
और भविष्य ने त्योरी चढ़ाई
bahut hi umdda kavita hai shandar abhivyakti hai,
Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:21pm
Aap ki kavitayey nihayat hi sunder lag rahi hai, aagey aur padhney ki eechha hai, I want more more n more,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 16, 2010 at 4:45pm
कंजक कुँआरी कविताओं का
एक कब्रिस्तान है
मेरे सीने के भीतर
bahut hi badhiya amarjeet bhai jee..............
Comment by Kanchan Pandey on May 16, 2010 at 2:34pm
Badhiya likha hai sir jee, achhi kavita hai,
Comment by Admin on May 16, 2010 at 10:59am
इन सुलगती हुई निगाहों से डर कर
मैंने उन कविताओं को
अपने मन की धरती में
गहरा दबा डाला
अपनी तरफ से उन्हें
गहरी नींद सुला डाला
और कहा-
कि अभी कविताओं को
प्यार करने का समय नहीं

आदरणीय अमरजीत साहब,
प्रणाम,
सर्वप्रथम तो मै ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहले पोस्ट का स्वागत और धन्यवाद करते है, बहुत ही सुंदर और उम्द्दा कविता आपने लिखा है, आपके कविता के ऊपर लिखे हुए अंश पर मै केवल इतना कहना चाहता हू की अब न तो किसी की निगाहों से डरने की जरूरत है,न ही मन की धरती मे गहरी दबाने की जरूरत है, अब आप अपनी कविताओ को गहरी नींद से जगा दीजिये, अब कविताओ को प्यार करने का समय आ गया है, आप सब की जरूरत और साहित्य से प्यार करने के लिये ही ओपन बुक्स ऑनलाइन का जन्म हुआ है |
आप की लेखन शैली, और अभिव्यक्ति निहायत ही खुबसूरत है, हम सब को आप की रचनाओ का तहे दिल से इन्तजार रहेगा, आप की ओपन बुक्स ऑनलाइन पर उपस्थिति और मार्गदर्शन हम सभी को सबल प्रदान करेगा, धन्यवाद |
आपका अपना ही
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