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ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

आप भी सोचिये और हम भी कि होगा कैसे,,

हर किसी के लिए माहौल ये उम्दा कैसे।।

 

क्या बताएं तुम्हें होता है तमाशा कैसे,,,

वास्ते इसके लिए होता दिखावा कैसे।।

 

लोग उलझन में मुझे देखके होते ख़ुश हैं,,,,

कुछ तो इस सोच में रहते हैं रहेगा कैसे

 

मैं भी कामिल हूँ यहाँ और हो तुम भी कामिल,

कोई आमिल ही नहीं तो मैं…

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Added by Mayank Kumar Dwivedi on April 20, 2025 at 1:30pm — 7 Comments


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एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है  

********************************

२१२२    २१२२     २१२२ 

'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'

पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है

 

एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको

एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है

 

बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे    

सच यही है बूंद कल बादल रही…

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Added by गिरिराज भंडारी on April 19, 2025 at 5:46pm — 15 Comments

दोहा सप्तक. . . उल्फत

दोहा सप्तक. . . .  उल्फत

याद अमानत बन गयी, लफ्ज हुए लाचार ।

पलकों की चिलमन हुई, अश्कों से गुलजार ।।

आँखों से होते नहीं, अक्स नूर के दूर ।

दर्द जुदाई का सहे, दिल कितना मजबूर ।।

उल्फत में रुसवाइयाँ, हासिल हुई जनाब ।

मिला दर्द का चश्म को, अश्कों भरा खिताब ।।

उलझ गए जो आँख ने, पूछे चन्द सवाल ।

खामोशी से ख्वाब का, देखा किए जमाल ।।

हर करवट महबूब की, यादों से लबरेज ।

रही सताती रात भर, गजरे वाली सेज ।।

हासिल दिल को इश्क में, ऐसी हुई किताब…

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Added by Sushil Sarna on April 18, 2025 at 5:29pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर

 

होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।

उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर ।।

भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर ।

बिना करम के जिंदगी, जैसे लगे फकीर ।।

बिना कर्म इंसान की, बदली कब तकदीर ।

श्रम बदले संसार में, जीने की तस्वीर ।।

चाहो जो संसार में, मन वांछित परिणाम ।

नजर निशाने पर करे, संभव हर संधान ।।

भाग्य भरोसे कब हुआ, जीवन का उद्धार ।

चाबी श्रम की खोलती, किस्मत का हर द्वार ।।

बिछा हुआ हर हाथ में,…

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Added by Sushil Sarna on April 11, 2025 at 2:30pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार

दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार

दृगजल से लोचन भरे, व्यथित हृदय उद्गार ।

बाट जोहते दिन कटा, रैन लगे  अंगार ।।

तन में धड़कन प्रेम की, नैनन बरसे नीर ।

बैरी मन को दे गया, अनबोली वह पीर ।।

जग क्या जाने प्रेम के, कितने गहरे घाव ।

अंतस की हर पीर को, जीवित करते स्राव ।।

विरही मन में मीत की, हरदम आती याद ।

हर करवट पर मीत से, मन करता संवाद ।।

बैठ अनमनी द्वार पर, विरहन देखे राह ।

मन में उठती हूक सी , पिया मिलन की चाह ।

नैन पिया की याद…

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Added by Sushil Sarna on March 20, 2025 at 8:48pm — 4 Comments

दोहे -रिश्ता

सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।

रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।

*

वह रिश्ते ही सच  कहूँ, पाते  लम्बी आयु

जहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।

*

तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोर

यह टूटा तो हो  गया, हर रिश्ता कमजोर।।

*

करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।

ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का आकाश।।

*

रिश्तों में  सब  ढूँढते, केवल स्वार्थ जुगाड़।

शेष बची है अब कहाँ, अपनेपन की आड़।।

*

सुख में सब वाचाल हैं, दुख में बेढब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2025 at 8:50pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . होली

दोहा पंचक. . . . . होली

अलहड़ यौवन रंग में, ऐसा डूबा आज ।

मनचलों की टोलियाँ, खूब करें आवाज ।।

हमजोली के संग में,  खेले सजनी रंग ।

चुपके-चुपके चल रहा, यौवन का हुड़दंग ।।

पिचकारी की धार से, ऐसे बरसे रंग ।

जीजा की गुस्ताखियाँ, देख हुए सब दंग ।।

कंचन काया का किया, पति ने ऐसा हाल ।

अंग- अंग रंग में ढला, यौवन लगे कमाल ।।

पारदर्शिता देख कर, दिलवाले हैरान ।

पिचकारी के रंग से , डोल उठा  ईमान ।।



सुशील सरना / 13-3-25

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on March 13, 2025 at 8:44pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . .

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

तार- तार रिश्ते हुए, मैला हुआ अबीर ।

प्रेम शब्द को ढूँढता, दर -दर एक फकीर ।1।

सपने टूटें आस के , खंडित हो विश्वास ।

मुरझाते रिश्ते वहाँ, जहाँ स्वार्थ का वास ।2।

देख रहा संसार में, अकस्मात अवसान ।

फिर भी बन्दा जोड़ता, विपुल व्यर्थ सामान ।3।

ऐसे टूटें आजकल, रिश्ते जैसे काँच ।

पहले जैसे प्रेम की, नहीं रही अब आँच ।4।

रिश्तों के माधुर्य में, झूठी हुई मिठास ।

मन से तो सब दूर हैं , तन से चाहे पास…

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Added by Sushil Sarna on March 3, 2025 at 4:32pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . . उमर

दोहा पंचक. . . . .  उमर

बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।

झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।

साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।

अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।

बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।

शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।

दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।

यादें बीती उम्र की, आँखों में दें  स्राव ।।

साथ उमर के हो गए, क्षीण सभी संबंध ।

विचलित करती है बहुत, बीते युग की गंध ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on February 28, 2025 at 6:02pm — 4 Comments

कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . . .

जीना  है  तो  सीख  ले ,विष  पीने  का  ढंग ।
बड़े  कसैले   प्रीति  के,अब  लगते   हैं   रंग ।।
अब  लगते  हैं  रंग , जगत् में  छलिया  सारे ।
पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।
बड़ा कठिन  है  सोम, भरोसे  का  यों  पीना ।
विष को जीवन  मान , पड़ेगा  यों  ही  जीना ।।

सुशील सरना / 27-2-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 27, 2025 at 8:52pm — 6 Comments

दोहा दसक- गाँठ





ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।

जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।

*

मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर

इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।

*

दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम

लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।

*

छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ

सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।

*

रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल

उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।

*

बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन

मन की…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 4 Comments

दोहा सप्तक

दोहा सप्तक

----------------

चिड़िया सोने से मढ़ी, कहता सकल जहान।

होड़ मची थी लूट लो, फिर भी रहा महान।1। 

कृष्ण पक्ष की दशम तिथि, फाल्गुन पावन मास।

दयानंद अवतार से, अंधकार का नास।2। 

टंकारा गुजरात में, जन्में शंकर मूल।

दयानंद बन बांटते, आर्य समाज उसूल।3।

जोत जगाकर वेद की, दिया विश्व को ज्ञान।

त्याग योग संस्कार ही, भारत की पहचान।4। 

कहा वेद की भाष में, श्रेष्ठ गुणों को धार।

लक्ष्य…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 23, 2025 at 3:30pm — 3 Comments

दोहा पंचक. . . . .नवयुग

दोहा पंचक. . . . नवयुग

प्रीति दुर्ग में वासना, फैलाती दुर्गन्ध ।

चूनर उतरी लाज की, बंध हुए निर्बंध ।।

पानी सूखा आँख का, न्यून हुए परिधान ।

बेशर्मी हावी हुई, भूले देना मान ।।

सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।

पश्चिम की यह सभ्यता, लील रही संस्कार ।।

पश्चिम के परिधान का, फैला ऐसा रोग ।

नवयुग  ने बस प्यार को, समझा केवल भोग ।।

अवनत जीवन के हुए, पावन सब प्रतिमान ।

भोग पिपासा आज के, नवयुग की पहचान ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on February 21, 2025 at 8:29pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . . अभिसार

दोहा सप्तक. . . . . .  अभिसार

पलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।

करनी थी उनसे अभी, पागल दिल की बात ।।

विभावरी ढलने लगी, बढ़े मिलन के ज्वार ।

मौन चाँद तकने लगा, लाज भरे अभिसार ।।

लगा लीलने मौन को, दो साँसों का शोर ।

रही तिमिर में रेंगती, हौले-हौले भोर ।।

अद्भुत होता प्यार का, अनबोला संवाद ।

अभिसारों में करवटें, लेता फिर  उन्माद ।।

प्रतिबंधों की तोड़ता, साँकल मौन प्रभात ।

रुखसारों पर लाज की, रह जाती सौगात ।।

कुसुमित मन…

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Added by Sushil Sarna on February 17, 2025 at 3:58pm — No Comments

दोहा दशम. . . . उल्फत

दोहा दशम - ..... उल्फत

अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।

तारीकी में जल  उठे, बुझते हुए चिराग ।।

ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।

अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।

आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के  ईनाम ।

नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।

माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।

आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।

यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।

उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।

मिला इश्क को हुस्न से,…

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Added by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 1:04pm — 3 Comments

दोहा दसक- झूठ



अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार

सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।

*

रहा झूठ से  कौन  है, वंचित कहो अबोध

भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।

*

होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर

जीवन पाता  अल्प  ही, पर  जीता भरपूर।३।

*

जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ

हरा पेड़ तो  छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।

*

होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम

भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।

*

भोला  देता  ताव  है,  करके  ऊँची  मूँछ

धूर्त…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments

दोहा दसक -वाणी

दोहा दसक -वाणी

**************

वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात

वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।

*

वाणी  में  संयम  नहीं, अब  तो संत कुसंत

जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।

*

वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव

वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।

*

वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान

वो तो करती नित्य  ही, रिश्तों पर संधान।४।

*

सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह

देह न मन में नित बसे, वाणी करती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 2 Comments

दोहा दसक - सपने

यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास

सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।

*

देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न

वह उनको  साकार  कर, पा  लेता है रत्न।२।

*

जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य

टूटा करता  वह  नहीं, बन  जाता है भव्य।३।

*

स्वप्न बने उद्देश्य  जब, करना  पड़ता कर्म

जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।

*

निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग

मान उसे  सबसे  अधिक, सपनों से अनुराग।५।

*

सपने …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 2 Comments

दोहा पंचक. . . शृंगार

रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।

नैन ढूँढते नैन में, तृषित हृदय मधुमास ।।

 

वातायन की ओट से, हुए नैन संवाद ।

अरुणिम नजरों में हुए, लक्षित फिर उन्माद ।

 

मृग शावक सी चाल है,  अरुणोदय से गाल ।

सर्वोत्तम यह सृष्टि की, रचना बड़ी कमाल ।।

 

गौर वर्ण झीने वसन, मादकता भरपूर ।

जैसे हो यह सृष्टि का, अलबेला दस्तूर ।।

 

जब-जब दमके दामिनी, उठे मिलन की प्यास।

अन्तस में व्याकुल रहा, बांहों का मधुमास…

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Added by Sushil Sarna on February 4, 2025 at 9:30pm — No Comments

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

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देवलोक भी जोहता,

चकवे की ज्यों बाट।

संत सनातन संग कब,

सजता संगम घाट।1।

तीर्थराज के घाट पर,

आ पहुँचे वो संत।…

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Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 4, 2025 at 11:00am — 1 Comment

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