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Dr. Chandresh Kumar Chhatlani's Blog (86)

स्वप्न को समर्पित (लघुकथा)

लेखक उसके हर रूप पर मोहित था, इसलिये प्रतिदिन उसका पीछा कर उस पर एक पुस्तक लिख रहा था| आज वो पुस्तक पूरी करने जा रहा था, उसने पहला पन्ना खोला, जिस पर लिखा था, "आज मैनें उसे कछुए के रूप में देखा, वो अपने खोल में घुस कर सो रहा था"

फिर उसने अगला पन्ना खोला, उस पर लिखा था, "आज वो सियार के रूप में था, एक के पीछे एक सभी आँखें बंद कर चिल्ला रहे थे"

और तीसरे पन्ने पर लिखा था, "आज…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 13, 2016 at 5:46pm — 6 Comments

गाँधी जी का तीसरा बंदर (लघुकथा)

"क्या बात है?" घर पहुँचते ही उसकी माँ ने उसकी आँखों में आँसू और पिता की आँखों में चिंता को देखकर घबरा कर पूछा|

उसके पिता ने बताया, "सेठ जी के बेटे और सामने वाले भाईसाहब की बेटी के बीच कुछ चल रहा था, इसे सब बात पता थी| अब कल किसी बात पर उस लड़की ने आत्महत्या कर ली, तो आज ये पुलिस को सब बातें बताने लगी| वो तो ऐन वक्त पर मैनें भीड़ का फायदा उठा कर इसका मुंह बंद कर दिया नहीं तो....."

"नहीं तो क्या बाबूजी?" उसने पूछा

"किसी के फटे में हम टांग क्यों डालें? तू चुप नहीं रह सकती?"…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 27, 2015 at 4:00pm — 10 Comments

सच की कमज़ोर आवाज़ (लघुकथा)

एक दिन सच और झूठ एक दूसरे से मिले, दोनों ने सोचा हमें एक जैसा दिखना चाहिये, ताकि लोग खुद ही अपने विवेक से सच और झूठ को पहचान सकें|

और उन्होंने एक जैसे कपड़े पहने और एक जैसे मुखौटे चेहरे पर लगा दिये फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर वादा किया कि किसी को अपना चेहरा उजागर नहीं करेंगे|

उसके बाद आज तक झूठ की मधुर आवाज़ के कारण कई लोग झूठ को ही सच समझते हैं और सच अपने वादे के कारण खुद…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 19, 2015 at 7:05pm — 4 Comments

बिकाऊ प्रार्थना - लघुकथा

सब उसे पागल कहते थे, लेकिन एक बुद्धिजीवी का दिमाग उसे पागल नहीं मानता था|

आज उस बुद्धिजीवी ने देखा कि वो एक मंदिर में गया, वहां नमाज़ पढ़ी|

फिर एक गुरूद्वारे में गया और वहां कैरोल गाया|

और एक गिरजे में गया और आरती की|

फिर एक मस्जिद में गया और वहाँ अरदास की|

आखिर में अपनी जगह पर जाकर बहुत रोया,

बुद्धिजीवी ने कारण पूछा तो उसके उत्तर में भी एक प्रश्न था, "हर धार्मिक-स्थल पर दान दिया था| वो बिकता तो है, लेकिन मिलता कहाँ है?"

बुद्धिजीवी समझ गया वो पागल ही…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 12, 2015 at 11:04am — 3 Comments

निश्छल प्रेम - लघुकथा

वो अकेली बैठी रो रही थी, जंगली जानवरों से उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ, वो उसके पास जाकर उसका दुःख पूछने लगे|

उसने कहा, "मैं उससे बहुत प्रेम करती हूँ, लेकिन उसे केवल मेरी खूबसूरती से ही प्रेम है, और वो ही मेरी सुन्दरता नष्ट कर रहा है, पता नहीं कैसे-कैसे रासायनिक द्रव और विष समान कचरा युक्त जल मुझे पीना होता है, उसके फैलाये धुंए से मैं क्षीण और कुरूप होती जा रही हूँ| उसके मचाये शोर से बहुत घबरा जाती हूँ, क्या करूँ?"

फिर उसने तितली से कहा, "तुम जिन फूलों पर जाती…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 6, 2015 at 8:30pm — 8 Comments

लोकतंत्र (लघुकथा)

आम बजट के सत्र के बाद लोकतांत्रिक सरकार ने लोकतंत्र के एक नये तरीके इन्टरनेट से बजट पर एक सर्वे द्वारा जनता की राय मांगी|

 

कोई भी उसे खोलता तो सबसे पहले लिखा मिलता, "आपके अनुसार बजट कैसा है?" जिसके तीन विकल्प थे - सर्वमान्य, औसत-मान्य और अमान्य| जो कोई प्रथम दो विकल्प में से कोई एक चुनता, नाम, पता और टिप्पणी पूछी जाती, लेकिन यदि कोई अंतिम विकल्प को चुनता तो उससे पूछा जाता, "इसका उत्तरदायी कौन है?" इसके दो विकल्प थे - सरकार और जनता|

 

जिस-जिसने जनता को चुना उन्हें…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 20, 2015 at 9:30pm — 5 Comments

खो रही पहचान (लघुकथा)

उस चित्रकार की प्रदर्शनी में यूं तो कई चित्र थे लेकिन एक अनोखा चित्र सभी के आकर्षण का केंद्र था| बिना किसी शीर्षक के उस चित्र में एक बड़ा सा सोने का हीरों जड़ित सुंदर दरवाज़ा था जिसके अंदर एक रत्नों का सिंहासन था जिस पर मखमल की गद्दी बिछी थी|उस सिंहासन पर एक बड़ी सुंदर महिला बैठी थी, जिसके वस्त्र और आभूषण किसी रानी से कम नहीं थे| दो दासियाँ उसे हवा कर रही थीं और उसके पीछे बहुत से व्यक्ति खड़े थे जो शायद उसके समर्थन में हाथ ऊपर किये हुए थे|

सिंहासन के नीचे एक दूसरी बड़ी सुंदर महिला…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 14, 2015 at 10:30pm — 9 Comments

गिरने की कीमत (लघुकथा)

दो गायक महीनों बाद सवेरे की सैर पर साथ निकले|

एक ने पूछा, "तुमने शास्त्रीय संगीत छोड़ कर ये घटिया राग अलापना क्यों शुरू किया?"

दूसरे ने कहा, "शास्त्रीय संगीत ने आत्मा को चैन और अमन की दौलत दी, लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे भूखे रहे| अब मेरे गानों को गली में घूमने वाले गाते हैं, पान की दुकानों और वाहनों में बजता है, बच्चे उन पर नृत्य करते हैं.... और अब देखो कल ही ये खरीदा है|"

उसने एक बड़े से मकान की ओर इशारा किया, जिसे देखते ही पहले के फटे कपड़ों में से शास्त्रीय संगीत की…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 2, 2015 at 8:00pm — 12 Comments

मेहनत की घड़ी का बुरा वक्त (लघुकथा)

चार लोग अलग-अलग देशों की यात्रा कर पानी के जहाज़ से अपने घर लौट रहे थे|

पहले ने कुछ दिखाते हुए कहा, "यह एक विशेष प्रकार की बन्दूक ली है, इसका निशाना कभी नहीं चूकता|"

दूसरे ने कहा, "मैं बारूद लेकर आया हूँ, यह देखो|"

तीसरे ने बताया, "और मैं बारूद से कारतूस बनाने का यह सामान|"

चौथे ने गर्व से कहा, "मैं सालों मेहनत कर अपने परिवार के लिये धन ले जा रहा हूँ, देखो मेरी हीरों से जड़ी घड़ी|"

यह सुनकर तीनों ने अपने साथ लाई चीज़ों को मिला दिया और चौथे का जीवन-काल समाप्त कर…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 26, 2015 at 2:30pm — 5 Comments

असुरक्षित गर्भ (लघुकथा)

वृक्ष ने बादलों से पूछा, "हर साल की तरह इस बार कोयल को साथ क्यों नहीं लाये, उसकी कूक के बिना बरसात अच्छी नहीं लगेगी?"

"तुम्हारी जिस डाली पर वो बैठती थी, उसके ऊपर के पत्ते झड़ गये हैं, वो भीग कर मर जाये, इससे अच्छा आये ही नहीं|"

पास ही घर में एक गर्भवती पलंग पर अधलेटी नम आँखों से अपने गर्भ परिक्षण के परिणाम का इंतजार कर रही थी|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 14, 2015 at 9:30pm — 5 Comments

कौन नहीं चोर (लघुकथा)

एक व्यक्ति का नौकर उसके रुपये चोरी करके चला गया|

दूसरे व्यक्ति ने कहा "जो बेईमानी और चोरी के रूपए से अपना घर बनाता है वो कभी सुखी नहीं रह सकता"

पहले ने चौंक कर दूसरे की तरफ देखा और व्याकुल होकर कहा, "नहीं, आजकल ऐसा तो नहीं होता"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 12, 2015 at 10:00pm — 6 Comments

अपना अपना धर्म (लघुकथा)

"अपने मज़हब पर मरने का हौसला है कि नहीं?"

"है, लेकिन मेरे अपने धर्म पर, तुम्हारे नहीं|"

"हमारा धर्म तो एक ही है..."

"तुम्हारे पास वहशत फ़ैलाने का हौसला है, मेरे पास न डरने का हौसला, तो फिर हमारे धर्म अलग हुए न?"

यह सुन तीसरा बोला:

"मेरे पास हर धर्म की लाशें सम्भालने का हौसला है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 8, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

निर्माताओं से मुलाक़ात (लघु कथा)

वो मुझे साथ लेकर गया, उसे चुपचाप इंसान ढूंढना था|

सबसे पहले उसने मिलाया एक नामी शिक्षक से, जो बात करने में तेज़ था, लेकिन खुद नकल कर के उत्तीर्ण होता था|

फिर उसने मिलाया एक बड़े चिकित्सक से, जो अपनी चिकित्सा की पद्धति को सबसे अच्छा कहता और बाकी को बुरा|

फिर मिलाया तीन भिखारीयों से, जो अपने धर्म…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 5, 2015 at 10:28pm — 8 Comments

गुमनाम कर्म (लघु कथा)

"साहब ये देखिये लहलहाता खेत, दो साल पहले यहाँ बंजर जमीन थी, हम लोग जब इसे उपजाऊ बना सकते हैं तो आसपास की सारी ज़मीन क्यों नहीं?"

"बिलकुल ठीक है, इस गाँव के लिये जितने भी रुपयों का आपने प्रस्ताव भेजा है, वो मंजूर किया जाता है|"

खेत के एक कोने में हरी चुपचाप खड़ा था, उस अकेले की दो साल की मेहनत के बाद कम से कम चौधरी जी तो गुमनामी के अँधेरे से बाहर आये, जिनका पूरा परिवार अब…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 1, 2015 at 11:22pm — 13 Comments

विश्वास की ख़ामोशी (लघु कथा)

समुद्र में मिलती नदी ने समुद्र से कहा, "बहुत खुश हूँ आज, सीमित असीम में समा रही है, कोई सीमा का बंधन नहीं..."

समुद्र चुप रहा|

उस चुप्पी को देख तट और तलहटी दोनों मुस्कुरा उठे|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 1, 2015 at 12:30pm — 12 Comments

अंधी आस्था का फायदा (लघुकथा)

"सर, हमारे अमरूदों के बाग़ में कुछ लोग रोज़ शाम को शराब पीते हैं साथ में जुआ भी..."
"एफ.आई.आर. करवा दो|"
"कोई फायदा नहीं सर, उसमें कुछ पुलिस वाले भी हैं..."
"तो फिर ये मूर्ती ले जाओ, शराब की बदबू अगरबत्ती और फूलों की खुश्बू में बदल जायेगी|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 28, 2015 at 12:37pm — 9 Comments

दर्द की पहुँच (लघुकथा)

"भैया, इनके पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, शराब मांग रहे हैं|"

"भाभी, पहले कितनी पीते थे, छुड़ा रहे हैं तो थोड़ा दर्द होगा ही|"

"आप सही कह रहे हैं...हम नहीं पीने देंगे, अरे माँ जी!" दरवाजे पर सासुमाँ को शराब की बोतल के साथ देखकर बहू आश्चर्यचकित रह गयी|
"माँ ये क्यों लाई? और पैसे कहाँ से लाई?"

"मेरी दवाई लौटा दी मैनें बेटा, उसका दर्द सहन नहीं हो रहा...."

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 10, 2015 at 1:30pm — 8 Comments

बंटवारे का कारण (लघुकथा)

"माननीय न्यायाधीश महोदय, मेरे बाहर जाने का फायदा उठा कर, मेरे छोटे भाई ने घर के बीच की दीवार बनाते समय मेरी तरफ छः इंच ज्यादा खींच ली, और मेरे भाग पर कब्ज़ा कर लिया|"

"नहीं आदरणीय महोदय, जो स्थान मैनें लिया, उस पर मेरा ही अधिकार है|"

"यह दीवार कब बनायी गयी?" न्यायाधीश महोदय ने पूछा

"एक माह पूर्व हमारे पिताजी की मृत्यु के कुछ दिनों के…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 1, 2015 at 9:30pm — 10 Comments

राहत कार्य (लघुकथा)

"सर, कुछ देर पहले उत्तर भारत में बड़ा भूकम्प आया है|"

"ओह, तुरंत कार्यवाही करो| संस्था के बीस बैनर और बनवा दो, पिछले भूकम्प वाले पत्र दिनांक और स्थान बदल कर सभी दानदाताओं को भिजवा दो| मैं भूकम्प प्रताड़ित क्षेत्र में चला जाता हूँ, गाड़ी तैयार करवा देना और राहत सामग्री के साथ उसमें दस-पन्द्रह खाली बैग रखना मत भूलना|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 26, 2015 at 12:00pm — 8 Comments

बेवकूफ कौन (लघुकथा)

"माँ, इस एफ.डी.आर. में भी नॉमिनी मुझे ही रखना, भैया सम्भाल नहीं सकता|"


"बेटे, मैं बराबर बांटना चाहती हूँ| उसको देख, तेरे पिताजी के देहांत के बाद उसने खुदके हक की सरकारी नौकरी तुझे दे दी और खुद प्राइवेट नौकरी में धक्के खा रहा है|"


"यही बात तो उसको बेवकूफ साबित करती है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 22, 2015 at 12:35pm — 13 Comments

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