For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निर्माताओं से मुलाक़ात (लघु कथा)

वो मुझे साथ लेकर गया, उसे चुपचाप इंसान ढूंढना था|

सबसे पहले उसने मिलाया एक नामी शिक्षक से, जो बात करने में तेज़ था, लेकिन खुद नकल कर के उत्तीर्ण होता था|

फिर उसने मिलाया एक बड़े चिकित्सक से, जो अपनी चिकित्सा की पद्धति को सबसे अच्छा कहता और बाकी को बुरा|

फिर मिलाया तीन भिखारीयों से, जो अपने धर्म का हवाला देकर भीख मांगते थे और रोज़ रात को खुदके परिवार वालों को ही नशे में मारते | उनमें से एक का नाम भीखू था, दूसरे का प्रवचन और तीसरे का नेता|

आखिर में मिलाया एक लाश से, वो खुद तो चुप थी, लेकिन उसके घर के लोगों का क्रन्दन बहुत तीव्र था, हालाँकि उनके मन में धन का हिसाब चल रहा था|

उसने आखिरकार चुप्पी तोड़ी, "ऐसा लगता है कि इंसान को मैं तत्वों से नहीं दूसरों के शब्दों से बना रहा हूँ|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 9:51pm

इस लघुकथा में इंगितों के माध्यम से इंसान के मूल व्यवहार और व्यावहारिक व्यवहार के बीच का ढंग से अन्तर बताया गया है. सुगढ़ प्रयास केलिए हार्दिक बधाई, आदरणीय चंद्रेशभाई.

Comment by विनय कुमार on July 9, 2015 at 1:57pm

बहुत बेहतरीन लघुकथा आदरणीय चंद्रेश जी , गहरे अर्थों वाली इस लघुकथा के लिए बधाई कबूल कीजिये ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2015 at 11:28am

अति सुन्दर !! कथा के लिये हार्दिक बधाई

Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:16am
इंसान का जन्म भले ही पाँच तत्वों से ही होता है लेकिन जन्म के बाद धीरे - धीरे वो पँच तत्व कहीं जैसे विलीन हो नये इंसानी विकारों के नये तत्वों में समाहित हो जाते है । लोभ , मोह , इर्ष्या , द्वेष भाव की मिट्टी हमें विलीन कर लेते है और हम इसी के प्रतिरूप बन धरती पर जबतक रहते है विचरण करते है । इसलिए तत्व नहीं हम इंसान को शब्दों में ही तलाशने लगते है । बेहद गहरी चिंतन की ओर ले जाती है यह लघुकथा । इस सार्थक रचना के लिए बधाई आपको तहे दिल से चंद्रेश जी
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 6, 2015 at 8:43pm

"ऐसा लगता है कि इंसान को मैं तत्वों से नहीं दूसरों के शब्दों से बना रहा हूँ|"

बहुत ही सुन्दर कटाक्ष !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 4:07pm

आदरणीय चंद्रेश जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. 

इंसान बनता तो पांच तत्वों से ही है पर समाज नामक इकाई में सम्मिलित होते ही दूसरों के उसके विषय में क्या विचार है यह उसके कृतित्व  को निर्धारित करते है यद्यपि व्यक्तित्व का निर्धारण भी किया जाता है किन्तु वह वास्तविक न होकर उनकी धारणाओं और विचारों पर आधारित होता है. अपने लघुकथा में सन्दर्भ को बड़ी चतुराई से अभिव्यक्त किया है. 

बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 2:37pm
बहुत सुन्दर लघुकथा
Comment by Shyam Narain Verma on July 6, 2015 at 12:49pm

सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई ।

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
22 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service