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आम बजट के सत्र के बाद लोकतांत्रिक सरकार ने लोकतंत्र के एक नये तरीके इन्टरनेट से बजट पर एक सर्वे द्वारा जनता की राय मांगी|

 

कोई भी उसे खोलता तो सबसे पहले लिखा मिलता, "आपके अनुसार बजट कैसा है?" जिसके तीन विकल्प थे - सर्वमान्य, औसत-मान्य और अमान्य| जो कोई प्रथम दो विकल्प में से कोई एक चुनता, नाम, पता और टिप्पणी पूछी जाती, लेकिन यदि कोई अंतिम विकल्प को चुनता तो उससे पूछा जाता, "इसका उत्तरदायी कौन है?" इसके दो विकल्प थे - सरकार और जनता|

 

जिस-जिसने जनता को चुना उन्हें एक अमान्य बजट का दोषी मानकर दण्डित किया गया और जिन्होंने सरकार को चुना उन्हें झूठ बोलने के लिए|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2015 at 10:25am

बजट पर  या सरकार की किसी योजना पर आपका मत सरकार  सापेक्ष चाहती है, और अपने को लोकतंत्र की सरकार कहती है | अपरोक्ष रूप से नकारात्मक बोलने पर पाबंदी लगाने के सरकारी तरकीब है | रिपोर्ट जैसी लगने के बाद भी लघु कथा में सुंदर सन्देश यही है |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:35pm
'रिपोर्ट' जैसी लगने वाली यह कथा अपने हर पैराग्राफ से पाठक को सोचने को विवश करती है और अंत में बेहतरीन कटाक्ष करते हुए चिंतन मनन के लिए.... सो हुई न उत्तम लघु कथा !
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2015 at 8:51pm

आ० चंद्रेश जी  क्या सचमुच इसे कथा के तत्व हैं  मुझे लगा कौई  अपनी रिपोर्ट दे रहा है  मेरा ऐसा मत है  .सादर .

Comment by pratibha pande on September 21, 2015 at 8:46pm

बहुत सशक्त और प्रासंगिक लघुकथा बनी है बधाई आपको इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 21, 2015 at 11:41am

हार्दिक बधाई चन्द्रेश   जी !बेहद सशक्त और समयानुकूल प्रस्तुति!बहुत करारी चोट की है आज की अर्थ व्यवस्था पर!

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