For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विश्वास की ख़ामोशी (लघु कथा)

समुद्र में मिलती नदी ने समुद्र से कहा, "बहुत खुश हूँ आज, सीमित असीम में समा रही है, कोई सीमा का बंधन नहीं..."

समुद्र चुप रहा|

उस चुप्पी को देख तट और तलहटी दोनों मुस्कुरा उठे|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 8, 2015 at 7:33pm
बहुत सुंदर प्रस्तुति

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:43pm

बढिया..

हमारी कमज़ोरियाँ ही हमारी समाएँ हैं. यही हमारा सही आकलन करती हैं. एक अच्छी लघुकथा केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय चन्द्रेशजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 11:02am

महज दो पंक्तियों में सीमित और असीमित के भेद को परिभाषित के दिया आपने हर चीज की सीमा होती है असीमित कुछ भी नहीं मानव कल्पना भी नहीं .

इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:15am

बहुत बढ़िया लघुकथा.... बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी.

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:23pm

उस चुप्पी को देख तट और तलहटी दोनों मुस्कुरा उठे,,,,बेहद उम्दा |

Comment by kanta roy on July 2, 2015 at 10:14pm
वाह , इस नजरिए से कथा को देखने पर कथा और भी जीवंत हो उठी है । सच ही कहा आपने आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी तट और तलहटी का मुस्कुराना समंदर की सीमा के आकलन की वजह से ही है । सच है यह कि समंदर कितना भी विशाल हो अनंत नहीं हो सकता है कही तटबंध उसे बाँध ही देते है और तलहटी गहराई की सीमा जानती है । वाह !!! चंद्रेश जी बहुत खूब !!!!!
Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 9:35pm
चंद पंक्तियों में अच्छी लघु-कथा आदरणीय चंद्रेश जी. बधाई हो.
Comment by विनय कुमार on July 2, 2015 at 9:20pm

बहुत उम्दा कल्पना , बढ़िया लघुकथा | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2015 at 8:48pm

तट और तलहटी समुद्र की सीमाएं  जानते है वह कितना भी विशाल हो पर अनन्त नहीं है , इस लिहाज से शीर्षक फिर से गौर तलब है , सादर .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 7:46pm

वाह! ऐसी कल्पना भी हो सकती है! बहुत बहुत बधाई! आदरणीय चंद्रेश जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service