1212 1122 1212 112/22
वो मेरे सामने आने पे मुस्कुरा न सके
नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके
हज़ार कोशिशें की रश्क़ तो छुपा न सके
मगर हँसी में मेरी बात भी उड़ा न सके
उन्होंने जिक्र मेरा छेड़ तो दिया सरे बज़्म
वही बातें मेरे होते वो दोहरा न सके
हर एक सम्त से नज़रें उठीं हमारी तरफ
कि कहते कहते भी वो हालेदिल सुना न सके
बस एक रोज़ की थी ज़िन्दगानी फूलों की
वो बदनसीब रहे जो चमन सजा न…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2015 at 6:25pm — 16 Comments
2122 1212 112/22
सर्द है आज मेरी आह बहुत
फिर उठी दिल में तेरी चाह बहुत
खुदनुमाई से बाज़ आ नादाँ
तेज़ है दुनिया की निगाह बहुत
तोड़ना दिल किसी का क्या मुश्किल
हाँ कठिन इश्क़ की है राह बहुत
सोच उनकी है साइलों जैसी
पर बने फिरते हैं वो शाह बहुत
हश्र के रोज़ देख लेना तुम्हें
याद आयेगा हर गुनाह बहुत
मौलिक,अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on June 2, 2015 at 11:30am — 7 Comments
1222/ 1222/ 1222/ 1222
किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की *पेट
जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
न जाने नींद कैसे आती है ऐ बेरहम तुझको
तेरे कारे सितम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले
कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 26, 2015 at 8:00pm — 20 Comments
2122/ 2122/ 2122/212
है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ
शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ
मुब्तला खुदगर्ज़ियों में हो गये जज़्बात सब
क्या कहूँ अब आजकल की दोस्ती को क्या हुआ
रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं
रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ
अपनी हस्ती को मिटाता जा रहा है बेखिरद
किसको फुरसत सोचने की आदमी को क्या हुआ
सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं
हो गई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 11, 2015 at 4:30pm — 32 Comments
2122 2122 2122
शम्स तो है वो मगर डूबा हुआ है
रौशनी से बेख़बर डूबा हुआ है
अपने होने का उसे अहसास तो हो
क्यों ग़मों में इस कदर डूबा हुआ है
क्या अँधेरा मेरी नज़रों में है मौजूद
या अँधेरे में ये घर डूबा हुआ है
रौशनी के सिर्फ इक ज़र्रे के दम पर
ठण्ड से वो बेअसर डूबा हुआ है
इस जुनूने इश्क़ का होगा समर* क्या *नतीजा
सोच में कोई इधर डूबा हुआ है
फिर गुजश्ता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 6, 2015 at 5:00pm — 18 Comments
1222/1222/1222/1222
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2015 at 11:30pm — 48 Comments
मुफाइलतुन मुफाइलतुन मुफाइलतुन
हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी
सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी
निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें
कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी *कृपा
न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब *दिल को तसल्ली देनेवाला
ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी
उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे मर्ग *मौत के…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:00am — 14 Comments
221 2121 1221 212
अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले
मेरी ज़मीं न छीन मेरा आसमाँ न ले
है मुख़्तसर ज़मीन तमन्नाओं की फ़क़त
ऐ बेरहम नसीब यूँ मेरा जहाँ न ले
कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा
इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले
जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं
मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले
कायम है कायनात शजर के वुजूद से
खुद को ही बेवुजूद न कर अपनी जाँ न ले
मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 21, 2015 at 6:10pm — 17 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे
लड़ने वाले ही मगर सब बेसहारे से लगे
हार के बाहर हुये वो चैन की अब साँस लें
जीतने की जो कहें मुझको वो हारे से लगे
बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ
ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे
लुट गया सामां सफर में हर मुसाफिर का यहाँ
लोग भी बेआस बेबस गम के मारे से लगे
कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”
राख से कुछ हर्फ़ कुछ…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2015 at 10:16pm — 30 Comments
221 2121 1221 212
लोगों के दरमियान उड़ाई हुई तो है
हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है
हों तेरे दिल में रश्क़ो हसद तो हुआ करे
आखिर ये आग तेरी लगाई हुई तो है
सच ही कहा ये आपने आज़ार देखकर
इक चोट मेरे दिल ने भी खाई हुई तो है
गलियों में ये पड़े हुए खाशाक* देखिये *कूड़ा करकट
इस शह्र में कहीं पे सफाई हुई तो है
चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं
शामत किसी की “आप” में आई हुई तो…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 7, 2015 at 12:11pm — 28 Comments
221 2121 1221 212
उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों
इस तंगदिल जहाँ से करूँ अर्ज़े हाल क्यों
तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात
फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों
हैं अश्क़बार और भी इस बज़्म में कई
ऐ दोस्त ये बता कि मेरी ही मिसाल क्यों
आयेंगे और लम्हे अभी तो बहार के
आखिर तुम्हें है शाखे शजर ये मलाल क्यों
कैसे बताये कोई मुकद्दर किसी का क्या
कल जो खिला चमन में वो अब पायमाल…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 4, 2015 at 2:53pm — 34 Comments
1212 1122 1212 112/22
गई तो रंग बदलता ये शह्र छोड़ गई
घटा बहारों में ढलता ये शह्र छोड़ गई
सबा चमन से गुज़रते हुये महक लेकर
रविश-रविश* यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई *बाग़ के बीच की पगडण्डी
फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी
यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई
तमाम रात भटकती वो तीरगी* आखिर *अँधेरा
पिघलती शम्अ पिघलता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2015 at 5:30pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया
इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया
आफ़ाक़ के सफर में नहीं मिलती मंज़िलें
हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया
जलने लगे चराग सितारे चमक उठे
दीदारे ताबे हुस्न सरे शाम हो गया
बेदार शब तमाम जला चाँद अर्श पर
जाहिर जुनूने इश्क़ सरे बाम हो गया
तेरी मुहब्बतों से मुनव्वर किया दयार
आलम फ़रोज़ शम्स को आराम हो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 29, 2015 at 8:30am — 13 Comments
2122 1212 112/22
जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 3:32pm — 26 Comments
2122- 2122- 212
ख़्वाब से डरने लगा हूँ इन दिनों
नींद से मैं भागता हूँ इन दिनों
धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर
मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों
वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ
इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों
मुझपे भारी है हर इक लम्हा बहुत
फिक्र की तह में दबा हूँ इन दिनों
आइना हटकर परे मुझसे कहे
पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों
कोई बतलाये मुझे मैं कौन हूँ
पहले क्या था और क्या…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 12, 2015 at 9:54am — 21 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 4:52pm — 22 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on February 24, 2015 at 7:36pm — 14 Comments
मानव मन दुर्बल हुआ, जो पूजे इंसान ।
अंतर ईश मनुष्य का, ना समझे नादान।।
पंक घृणा के फेंककर, कहलाये भगवान।
इतनी सी इस बात को, समझे ना इंसान।।
अपनी अपनी है समझ, अपना अपना पंथ।
मन से दुर्बल के लिये, व्यर्थ सभी हैं ग्रंथ।।
रहे हृदय में आस्था, श्रृद्धा में हो ईश।
बस उसके ही नाम पर, नत रखना तू शीश।।
मानव को मानव समझ, ऐसा रख व्यवहार।
बने हँसी का पात्र तू, ऐसा क्या आचार।।
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on February 13, 2015 at 8:00am — 9 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on February 10, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
जो तेरी है कहानी वही मेरी दास्ताँ
मैं भी अकेला और तू भी तन्हा है वहाँ
हर गाम मुँह चिढ़ाती हुई ज़िन्दगी हमें
हैरान मेरा दिल है परेशान तेरी जाँ
जो तेरी रहगुज़र है नहीं रास्ता मेरा
कोई खिंचाव तो है मगर अपने दरमियाँ
कुछ ख्वाब नातमाम अधूरी सी हसरतें
हो बेकरार तुम भी वहाँ और मैं यहाँ
ग़मगीन तुम उदास मैं भी हूँ “शकूर” और
खामोश ये जहान है चुप-चुप सा आसमाँ
-मौलिक…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 12:23pm — 8 Comments
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