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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से
खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं
आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब
शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं
बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया
धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं
फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप
कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते हैं
Meanings:
अह्ले अदब – साहित्यकार, लाल – Ruby
बदख़्शाँ – अफ़गानिस्तान का एक प्रांत जो बेशकीमती लाल(Ruby) के लिए प्रसिद्ध है
आमाल – आचार व्यवहार, पशेमाँ – शर्मिंदा
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ल को मुहब्बतों से नवाज़ने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय शिज्जु भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
मुहतरम जनाब शकूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
बहुत खूब आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब .... खूबसूरत अहसासों से सजे अशआर ग़ज़ल को नया आयाम दे रहे हैं। इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।
आदरणीय शिज्जु भाई जी, आपने बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है, एक से बढ़कर एक अशआर कहे है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर
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