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लोकतंत्र का मुखौटा पहने (अतुकांत)

लोग कहते हैं

ज़माना बदल गया

मै कहता हूँ-

फ़क़त चेहरे बदले हैं,

व्यक्ति परक समाज तब भी था

अब भी है,

रियासतों,

शाही आनो-शान के बीच,

इंसानों के लहू से लिखी गई,

इतिहास की इबारत,

जो आज भी सुर्ख़ है

 

नाम बदले

मगर हालात न बदले

हुक्मरान बदले

मगर

जनता पहले भी ग़ुलाम थी

अब भी ग़ुलाम है

अंग्रेज़ों के पहले भी

अंग्रेज़ों के बाद भी

बेबसी ने ग़ुलाम किया

निरंकुशता ने लाचार किया

 

आज भी

नियम की बंदिशों में

जकड़े हुये सिर्फ हम हैं

बेबस हैं

क्यूँकि

आज भी राजशाही है

फर्क सिर्फ इतना है

आज

लोकतंत्र का मुखौटा पहने है

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:50pm

आदरणीया डॉ प्राची जी रचना पर आपकी सार्थक उपस्थिति के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आप सभी का सहयोग सतत सुधार को प्रेरित करता है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:48pm

आदरणीय बृजेश जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:47pm

भाई जितेन्द्रजी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:47pm

आदरणीया अन्नपूर्णाजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 9:26pm

लोकतंत्र पर बहुत सुन्दर..यथार्थपरक अभिव्यक्ति.

अतुकांत में सपाटबयानी का भय रहता ही है, जिससे बचने की रेखा कई बार बहुत महीन होती है... महीन रेखा के बहुत करीब से गुज़रती सी लगी अभिव्यक्ति, पर कथ्य सबकी हामी लेता इसे नजरअंदाज करा ही गया :)

शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on January 20, 2014 at 12:04am

सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2014 at 9:41am

बहुत सही कहा आपने, सब ज्यों का त्यों है सिर्फ लोकतंत्र का मुखोटा पहन लिया है, बधाई आदरणीय शिज्जू जी

Comment by annapurna bajpai on January 17, 2014 at 10:08pm

सुंदर  रचना  , बधाई आपको आ0 शिजू जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 17, 2014 at 7:35pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 17, 2014 at 7:35pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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