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मुफाइलतुन मुफाइलतुन मुफाइलतुन

 

हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी

सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी

 

निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें

कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी                    *कृपा

 

न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब                  *दिल को तसल्ली देनेवाला

ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी

 

उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे मर्ग                     *मौत के पीछे

कुछ ऐसे ही काम आयेगी ये हयात मेरी

 

वो दार* पे चढ़ गया था ये कहते कहते “शकूर”            *सूली

ले आयेगी इन्किलाब नया वफ़ात* मेरी                      *मौत

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 3:55pm

आदरणीय वीनस जी हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया स्नेह बनाये रखें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 3:54pm

आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया हौसलाअफज़ाई के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 3:54pm

आदरणीय सौरभ सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 3:53pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपके अनुमोदन से रचनाकर्म सार्थक हुआ, 

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2015 at 3:43pm

बहुत खूब भाई जी
काबिले तारीफ़ ..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 28, 2015 at 1:58pm

क्या लाजव़ाब गजल कही है आ० शिज्जू सर! पढ़ने पर कहीं पता ही नही चल रहा कि कोई कठिन बहर है,पर वाकई बहुत ही कठिन बहर पर बेहतरीन प्रस्तुति हुयी है!दिली दाद और मुबारकबाद प्रेषित हैं!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2015 at 1:30pm

मुफ़ाइलतुन यानी १२११२ !

ग़ज़ल के शेर गंभीर हैं. आपकी प्रस्तुति में ऐसी कहन को साझा करने केलिए आवश्यक ठहराव भी दिखता है जो आश्वस्तकारी है.

दिल से बधाई स्वीकारिये शिज्जू भाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 28, 2015 at 12:00pm

आदरणीय शिज्जु भाई , इस दुर्लभ और दुः साध्य बहर में लाजवाब गज़ल कही है , मै तो पहली गज़ल पढ़रहा हूँ , इस बहर में ॥  आपको दिली मुबारक बाद इस गज़ल के लिये ॥ आपके प्रयास को नमन है !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 7:03am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 7:03am

आदरणीय मिथिलेश जी शेर दर शेर सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया। इस बह्र में मैंने ढूँढने की कोशिश की लेकिन कुछ मिला नहींं। इस बह्र को कहीं कहीं वाफ़र कहा गया है कहीं कहीं वाफ़िर

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