For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 112/22

दबी हर आह तेरा इश्क़ भी दबा ही सही
जुदा है तेरा ये अंदाज़ तो जुदा ही सही

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही

खयाल तेरी तमन्ना का है मेरे दिल में
सो रहनुमाई को अब तेरा मशविरा ही सही

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 7, 2015 at 6:35pm

सर्वप्रथम विलम्ब हेतु मैं आप सबसे हाथ जोड़कर क्षमा माँगता हूँ कि कुछ व्यस्तता कुछ नेट की समस्या के चलते मैं समय पर आ नहीं पाया। मेरी रचना को जो सम्मान आपने दिया वो मुझे भावविभोर कर गया आप सुधिजनों के स्नेह से लगातार अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है। मैं आप सभी का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ और अनुरोध करता हूँ इस खाकसार पर आप सब की नज़रे इनायत रहे, ऐसा ही स्नेह मिलता रहे।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 4:50pm

बहुत ही खूबसूरत गजल आदरणीय शिज्जू सर जी. कमाल के अशआर कहें है आपने

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही........यह शेर दिल को छो गया, तहे दिल से बधाई लीजियेगा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2015 at 1:04pm

बड़े ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं शिज्जू जी, ख़ासकर ये

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ढेर सारी दाद कुबूल कीजिए 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:00pm

आदरणीय शिज्जु साहब इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आपको , सादर !

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं

महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही........वाह 

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है

कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही.....बहुत सुन्दर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 11:47am

आदरणीय शिज्जु भाई , एक से बढ़ के एक शे र हुये हैं , क्या बात है ! हर एक शे र के लिये मुबारकबादें कुबूल करें ।

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है   ........ (  मिरा तो ख़्वाबे मसर्रत में दिन गुज़रता है  -- सोच के देखियेगा )
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही   ---  लाजवाब !!  हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 9:30am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी,
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी,
निवेदन है कि प्रायः ऐसी त्रुटि होती नहीं , पर हुयी ,जिसका खेद है, क्षमा चाहूंगा। आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी ने जिस प्रेम और आदर भाव से इसे लिया और ध्यान आकर्षित किया वह सराहनीय है, और याद भी रहेगा। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 9:22am
मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही ॥
बहुत ही सुन्दर आदरणीय शिज्जु शकूर जी, बधाई , बधाई, बधाई, सादर।
Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 8:57am

आदरणीय विजयशंकर सर ..मेरी ग़ज़ल में उतर आती .....शेर  काश मेरी ग़ज़ल से निकालता ,,कोई बात नहीं बड़े भाई की बधाई यह अनुज स्वीकार कर ही सकता है ...शिज्जु भाईसाहब की तरफ स आपका हार्दिक आभार |(ज़रूरी नहीं कि हर अच्छा शेर नाचीज़ का हो .....हा..हा.. हा..सादर )


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on March 2, 2015 at 8:53am

आदरणीय शिज्जू जी ,

शानदार गज़ल कही. हर अश'आर उम्दा ...

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही.....................वाह !!!!!!! खास दाद कबूल करें.............

Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 8:52am

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही

आदरणीय शिज्जु सर ,बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है |शेर दर शेर ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service