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अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है

1222/ 1222/ 1222
मेरे दिल में अजब सी बेकरारी है
अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है

मैं मेरी हसरतों के साथ तन्हा हूँ
किसे परवाह मेरी चाहतों की है

वो बरसेगा कि मुझ पर टूट जायेगा
अभी बादल मेरे सर पर उठा ही है

अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है

हक़ीकत ही कही थी मैंने तो ऐ दोस्त
ये देखो जान पर मेरी बन आई है

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 23, 2015 at 3:52pm

विलम्ब के लिये क्षमा कीजियेगा रचना की सराहना के लिये आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय सौरभ सर इस्लाह के लिये शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 1:27am

शिज्जू भाई, वाह ! शेर अच्छे हुए हैं. दाद कुबूल कीजिये


एक बात :
मैं मेरी हसरतों के साथ तन्हा हूँ -   मैं का सम्बन्धकारी सर्वनाम ’अपना’ होता है, ’मेरा’ नहीं. ऐसे वाक्य अशुद्ध होते हैं,  जो बोलचाल की हिन्दी, विशेषकर महाराष्ट्र-गुजरात आदि में, घुस आये हैं. लेकिन ये व्याकरण सम्मत नहीं हैं.  मैं मेरा काम करता हूँ गलत वाक्य है. मैं अपना काम करता हूँ शुद्ध वाक्य है.

शुभेच्छाएँ

Comment by vijay nikore on July 6, 2015 at 2:50am

 बहुत ही अच्छी गज़ल लिखी है। हार्दिक बधाई।

Comment by maharshi tripathi on July 5, 2015 at 9:55pm

बढ़िया गजल हुई है ,,बधाई आ. शिज्जु "शकूर" जी |

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:32am

वो बरसेगा कि मुझ पर टूट जायेगा
अभी बादल मेरे सर पर उठा ही है

अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है

वाह जनाब क्या कहने ....

Comment by kanta roy on July 4, 2015 at 11:30pm
मेरे दिल में अजब सी बेकरारी है
अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है ........ वाह !!!! जीने की हसरत की क्या बात कही है आपने शिज्जु 'शकूर ' जी आपने । शानदार गजल के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 8:49pm
जी हाँ.... आदरणीय शिज्जु सर जी, ये अलिफ़ वस्ल का मामला था. क्षमा चाहूंगा.
पुनः बधाइयाँ आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 4, 2015 at 7:59pm
आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया। श्री सुनील जी गौर फरमायें
ये देखो जा/ न पर मेरी/ ब ना ई है

यहाँ अलिफ़ वस्ल है
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 4:46pm
अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है... ख़ूब... बढ़िया शे'र
आ० शिज्जु सर, ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं. बधाई आपको.
अंतिम शे'र के सानी में मात्रा शायद अधिक हो गई.
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 4, 2015 at 12:07pm

सुन्दर गज़ल हुयी है आ० शिज्जू सर!दाद प्रेषित है!

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