For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ravi Prakash's Blog (43)

आओ सजनी // रवि प्रकाश

आओ इक दूजे से कह लें

दिन का हाल रात की बातें

सौगातें हर बीते पल की

याद करें फिर से सजनी

रजनी ये फिर क्यों लौटेगी

जो बीत गई तो बीत गई

कल रीत नई चल निकलेगी

जब आएगा सूरज नूतन

उपवन-उपवन क्या बात चले

गलियों में कैसी हलचल हो

कलकल हो कैसी सरिता में

अम्बर का विस्तार न जाने

अनजाने रंगों में ढल कर

सारे जग पर छा जायेगा

गा पाएगा फिर भी क्या मन

वही प्रीत का गीत पुराना

वही सुहाना मौसम फिर से

लौटेगा क्या मन के… Continue

Added by Ravi Prakash on January 26, 2017 at 7:43pm — 2 Comments

ओ री चंदनिया//रवि प्रकाश

ओ री चंदनिया!

ओ री चंदनिया तुझको सब तारे क्या कहते हैं

मैं तो धड़कन कहता हूँ ये सारे क्या कहते हैं।

क्या कहते हैं अम्बर के जागे जागे उजियारे

मीलों मीलों धरती के अँधियारे क्या कहते हैं।



कैसा लगता है तुझको बादल जब गाते हैं

कुछ तन को छू लेते हैं कुछ मन तक आते हैं।

सिहरन सी होती है क्या बिजली की अँगड़ाई से

हुलसा करता है हियरा मिलकर क्या पुरवाई से।

बूंदें जब छू लेती हैं तुझको सावन भादों में

अक्सर क्या खो जाती है तू भी मेरी यादों में।

परबत… Continue

Added by Ravi Prakash on January 16, 2017 at 8:33am — 7 Comments

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में) // रवि प्रकाश

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में)

बहर-SSSSSSSSSSS



जीवन का एकाकीपन मिट जावेगा

आन मिलेंगे पी तो मन इतरावेगा।

  आ जावेंगे बिछुड़े संगी-साथी भी

  कौन कहाँ लौं मन ऐसे तरसावेगा।

जब निरखेंगे नैन किसी के नेह भरे

झूलों का मौसम फिर से फिर आवेगा।

  परसेगा कब तक शून्य हमारी निद्रा

  अब तो कोई सपना दर खटकावेगा।

मन हुलसेगा सावन के पहले घन सा

झूमेगा,हर ओर सुधा बरसावेगा।

  खो देंगे हम भी उस पल सारी निजता

  रंग किसी का जब हस्ती पे छावेगा।

जी ही… Continue

Added by Ravi Prakash on November 24, 2016 at 1:42pm — 4 Comments

है यही पाथेय मेरा // रवि प्रकाश

है यही पाथेय मेरा

एक नन्हा सा अकेला

पल कि जिसमें एक मैं हूँ एक तुम हो

दूर तक कोई नहीं है

और भीतर झिलमिलाते कोटि दीपक

टिमटिमाते हैं सितारे और सूरज भी दमकते

फूटते निर्झर सहस्रों

अति सघन हिमरेख गल कर बह निकलती,

चाह कर भी छुप न पाती

हैं उमंगें दो दिलों की

देह आगे और आगे ही सरकती

चाहती अस्तित्व का अंतिम सिरा

छू कर पिघलना,

देखते हैं नैन ऐसे

आ गया हो ज्वार जैसे

और फिर यूँ बंद होते

लाज में लिपटे अचानक

दूर परबत के शिखर… Continue

Added by Ravi Prakash on November 19, 2016 at 2:24pm — 6 Comments

ओ मेरी जान! //रवि प्रकाश

ओ मेरी जान!

तुम्हें जान से कम कुछ कहूँ

तो कितना कम लगता है

वैसे तो हर संबोधन में तुम केवल

अंजुरी भर ही आते हो,

फिर भी जब कहती हूँ अपनी जान तुम्हें

मैं ख़ुद को ज़िंदा पाती हूँ,

मुझको यूँ लगता है

जैसे दूर कहीं क्षितिज पर

दो अलग अलग उड़ते बादल

अपना-अपना रंग-रूप,आकार भूल कर

एक दूजे में घुलमिल जाएँ

और अलग कर पाना अब उनको

नामुमकिन बात लगे प्यारे!

(देखो मैं भी कविता करने लगी हूँ...वाह! वाह!)

और बताऊँ?

क्यों बताऊँ?

छोड़ो,… Continue

Added by Ravi Prakash on November 3, 2016 at 12:52pm — 2 Comments

ग़ज़ल (एक प्रयास) // रवि प्रकाश

बहर-SISS SISS SISS SISS



पंथ का आलोक हो गंतव्य का आधार हो तुम।

श्वास का संगीत मधुमय चेतना का द्वार हो तुम।।

प्राण भरते हो हृदय की मौनधर्मी धड़कनों में,

मोहता जो मन अहर्निश स्वप्न वो साकार हो तुम।

भोर की मृदु लालिमा की ओसकण से भेंट जैसे,

कुमुदिनी पे रीझते भ्रमरों का मंत्रोच्चार हो तुम।

मत्त पावस की झड़ी में हो शिखी के नृत्य निश्छल,

कोकिला की रागिनी के उल्लसित उद्गार हो तुम।

सांध्य वेला में हठीली दीपमाला से प्रकाशित,

घन तमस में कौमुदी का विश्व… Continue

Added by Ravi Prakash on April 21, 2016 at 3:23pm — 2 Comments

लघु कविताएँ // रवि प्रकाश

विरह

मैं तो गाढ़े अँधियारे की

पत्थर जैसी छाती पर

उँगली से नाम तुम्हारा

लिख कर सो जाता हूँ,

क्या तुम भी यूँ ही जीती हो?

॰॰

दो नैन

कितनी सीधी है नैनों की बोली!

अनपढ़ होता तो भी पढ़ लेता

हर अक्षर हमजोली!

॰॰

उदासी

ये भीनी-भीनी,नर्म उदासी

किसी ताल सी ठहरी है

कँकर मत फेंको!

॰॰

चाह

मैं चाहता हूँ-

हम साथ चलें कोसों

फिर सहसा पूछें इक-दूजे से-

"तुम थक तो नहीं गए?"

॰॰

टूटन

ये टूटन ही सीधा… Continue

Added by Ravi Prakash on August 4, 2015 at 4:56pm — 13 Comments

मैंने जितना तुमको जाना

मैंने जितना तुमको जाना

अपने मन को पढ़ कर जाना।

॰॰॰

यूँ भी तुमने कब चाहा था

मेरा मन यूँ तुमको चाहे,

रूप तुम्हारा पूजे प्रतिपल

फिर उस पूजन पे इतराए।

लेकिन अपनी सीमाओं में

मन कब सीमित हो पाया है,

पथ के सारे पाषाणों में

तेरी प्रतिमा गढ़ कर माना।

॰॰॰

मुझको ऐसा भान कहाँ था

भाव-दशा यूँ भी होती है,

उन पहरों में मन जागेगा

जिनमें रातें भी सोती हैं।

जग कहता था खेल नहीं है

यूँ पीड़ा से क्रीड़ा करना,

लेकिन मैंने इस पीड़ा… Continue

Added by Ravi Prakash on June 19, 2015 at 2:18pm — 6 Comments

मेरा अस्तित्व कहाँ है // रवि प्रकाश

एक समन्दर भी है अन्दर

थोड़ा उथला,थोड़ा गहरा

और लहर पे लहर चढ़ी है

पहले भी मालूम था लेकिन-

जब से तेरा नाम लिखा है

धाराएँ कुछ और हो गईं

सभी किनारे छूट गए हैं।

कब सूरज ने दम तोड़ा था

तड़प-तड़प के हिमशिखरों पर

टूटे तारे कौन गली में

आस जगा कर रहे बिखरते

प्रोषितपतिका रात बनी कब

दरके थे तटबंध हृदय के

कब मैंने आलाप किया था

वेदमंत्र सा राग तुम्हारा

कब उतरा मेरे अधरों पे

कुछ भी तो अब याद नहीं है।

वो छोटा सा एक अकेला

पल,जब… Continue

Added by Ravi Prakash on May 8, 2015 at 7:01am — 14 Comments

कब सोचा था यूँ भी होगा // रवि प्रकाश

कब सोचा था यूँ भी होगा-

जिनको मैंने ये कह कर दुत्कारा था-

-"जाओ,तुम हो एक पराजित मन के हित निर्मित

केवल छलना और भुलावा,

कुछ भी तो तुम में सार नहीं है;

मेरा जीवन है अभियान सकल

दिग्विजयी स्वभाव से ही

अश्व नहीं रुकता मेरा छोटे-छोटे घाटों पर

विश्वविजय से पहले इसमें हार नहीं है..."

वही नयन दो मतवाले

मन्वंतर के बाद सही लेकिन

ले कर वही पुरानी सज-धज,ठाठ वही

दसों दिशाओं से घेरे मुझको

दर्प-गर्व और अक्खड़पन से पूछ रही हैं-

"लेकर अपने… Continue

Added by Ravi Prakash on April 28, 2015 at 11:30am — 10 Comments

क्या अब भी // रवि प्रकाश

क्या अब भी पुलिनों तक आते हैं सब धारे,

क्या सूखी सिकता में मोती मिलते होंगे?

अँधियारी रातों में गाते हैं सब तारे,

क्या उथली नींदों में सपने खिलते होंगे?

.

हलचल बढ़ जाती है क्या कुछ पदचापों से,

अपना कोई कोना हाथों से गिरता है?

कटता एकाकीपन अस्फुट आलापों से,

सहसा अब भी कोई सुधियों में तिरता है?

.

रातों की निर्मितियाँ दिन में ढह जाती हैं,

लज्जा की लाली क्या अधरों को सिलती है?

क्या अब भी सीने में टीसें रह जाती हैं,

तृष्णा के छोरों पर… Continue

Added by Ravi Prakash on October 31, 2014 at 12:30pm — 16 Comments

एक नवजात के नाम - (रवि प्रकाश)

कौन है तू, मौन मेरा या मुखर संगीत है,

शब्द है कोई मधुर या भाव शब्दातीत है।

रंग है या रेख केवल,चित्र है या तूलिका,

शेर है मेरी ग़ज़ल का,नज़्म या नवगीत है॥

.

कुछ पुरानी भंगिमाएँ,कुछ नई मुस्कान है,

सिसकियों में सुर सजे हैं,आह में भी गान है।

खोजते हैं लोग मेरा अक्स तेरी आँख में,

तू जहां से और तुझ से ये जहां हैरान है॥

.

नर्म उजली धूप का उबटन लगे जब गुनगुना,

देवदारों में हवा का बज रहा हो झुनझुना।

मौसमों की करवटों में दास्तानें पढ़ सके,…

Continue

Added by Ravi Prakash on May 27, 2014 at 7:00pm — 16 Comments

हर बार - (रवि प्रकाश)

उस पार किनारा होगा,हर बार यही लगता है;

कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है।

मंज़िल पे जा निकलेंगे,ये ऊँचे-नीचे रस्ते;

फिर दौर हमारा होगा,हर बार यही लगता है॥

.

तपती राहों पे चल कर,

सूरज से आँख मिलाना;

रातों की बेचैनी को,शबनम के घूँट पिलाना।

बेकार न होंगे आँसू,नाकाम न होंगी आहें;

हर दर्द सहारा होगा,हर बार यही लगता है।

कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है॥

.

अक्सर कच्ची नींदों में,टूटे हैं बहुत से सपने;

उलझे हैं कहीं पे नाते,छूटे… Continue

Added by Ravi Prakash on March 11, 2014 at 2:33pm — 10 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

झील के पानी में गिर के चाँद मैला हो गया।

स्वाद मीठी नींद का कड़वा-कसैला हो गया॥

.

दो घड़ी भी चैन से मैं साँस ले पाता नहीं,

यूँ तुम्हारी याद का मौसम विषैला हो गया।

.

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,

आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।

.

आँख में मोती नहीं बस वासना की धूल है,

प्यार देखो किस क़दर मैला-कुचैला हो गया।

.

हर किसी को सादगी के नाम से नफ़रत हुई,

कल जिसे कहते थे मजनूँ,आज लैला हो गया।…

Continue

Added by Ravi Prakash on January 24, 2014 at 5:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बह्र-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ

..

कभी मंज़िलों से शिकायतें,कभी रास्तों से गिला करूँ,

कहीं बदहवास चला चलूँ,कहीं बेसबब ही रुका करूँ।

..

ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,

मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।

..

ये चिराग़ तेरी निगाह के यूँ ही रोशनी दें डगर-डगर,

ये सफ़र मेरा है तेरी नज़र यही नक़्शे-पा से लिखा करूँ।

..

तेरी आरज़ू मेरा हौंसला,तेरी जुस्तजू मेरी शायरी,

तू हो दूर या मेरे रूबरू तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा… Continue

Added by Ravi Prakash on January 13, 2014 at 8:43pm — 13 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बहर-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ (प्रथम प्रयास)

..

कभी चाँदनी सी खिला करे,

कभी धूप बन के सजा करे।

..

सभी चाहतों से हों देखते,

तू नज़र-नज़र में बसा करे।

..

कोई ख़्वाब में हो सँवारता,

कोई राहतों की हवा करे।

..

जहाँ लड़खड़ाएँ क़दम वहीं,

कोई हाथ बढ़ के वफ़ा करे।

..

रहें मंज़िलें तेरे सामने,

हो कठिन डगर तो हुआ करे।

..

जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,

वही शख़्स तुझमें मिला करे।

..

मेरा फ़न रहे,तेरी सादगी,

मेरी हर…

Continue

Added by Ravi Prakash on January 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ

.

कभी ख़ुद से रफ़ाक़त हो।

ज़रा शिकवा-शिकायत हो॥

.

ख़ुशी के साज़ खो जाएँ,

बड़ी बोझिल तबीयत हो।

.

अदाओं में हो बेअदबी,

निगाहों में हिक़ारत हो।

.

कसकती हों कहीं टीसें,

कहीं बेजा हरारत हो।

.

सरे-बाज़ार लुट जाएँ,

ज़रा ऐसी तिजारत हो।

.

दुआ के चार बोलों में,

अनुष्टुप हो न आयत हो।

.

डगर लंबी,सफ़र तन्हा,

यही अपनी विरासत हो।

.

ग़ज़ल में ढल सकें आँसू,

फ़क़त इतनी इनायत… Continue

Added by Ravi Prakash on December 27, 2013 at 2:19pm — 14 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ

...

कभी चाँदनी छूने आया करेगी।

सितारों की ज़ीनत बुलाया करेगी॥

...

बदन की मुलायम तहों में समेटे,

नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।

...

भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,

कहीं रोशनी गीत गाया करेगी।

...

परिंदों की परवाज़ क्या खूब होगी,

हवा जब उन्हें आज़माया करेगी।

...

नई चूड़ियों से खनकती कलाई,

सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।

...

ज़रा सी किसी बात पे रो पड़ूँगा,

कभी ज़िंदगानी हँसाया करेगी।

...

कहूँगा…

Continue

Added by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 1:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ

...

लिपट के आबशारों से तराने खो गए होंगे।

उतर के देवदारों से उजाले सो गए होंगे॥

...

जिन्हें मालूम है दुनिया मुहब्बत की इमारत है,

ग़ुज़र के मैकदे से भी वही घर को गए होंगे।

...

न परियों का फ़साना था न किस्से देवताओं के,

कहानी कौन सी सुन के सलोने सो गए होंगे।

...

उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,

किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।

...

ज़रा सी चाँदनी छू लें,सितारों की दमक देखें,…

Continue

Added by Ravi Prakash on December 16, 2013 at 4:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ (8 गुरु)

.

गलियों-गलियों गाना भी है।

रस्ते में मैख़ाना भी है॥

.

नफ़रत की मारामारी में,

चाहत का पैमाना भी है।

.

अपनी कुटिया के पीछे ही,

उनका दौलतख़ाना भी है।

.

लाखों हैं कनबतियाँ लेकिन,

नैनों का टकराना भी है।

.

दोपहरें अलसाएँ तो क्या,

भोरों का इठलाना भी है।

.

कितने बल हैं पेशानी पर,

परियों का शरमाना भी है।

.

झूठों की हाँडी के नीचे,

सच का आतिशख़ाना भी है।

.

आने वाले… Continue

Added by Ravi Prakash on December 9, 2013 at 2:27pm — 19 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service