For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत्तगयंद सवैये - (रवि प्रकाश)

प्रथम प्रयास
- - - - - - - - -
1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।
शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।
कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।
कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥

2.

सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।
तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।
यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।
प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥


3.

मौन अभीष्ट नहीं मुझको सुख-गीत प्रिये,पर गा न सकूँगा।
कल्पित नंदन-कानन में मधु-वासित कुंज सजा न सकूँगा।
गोपन इंगित में दृग के तन को,मन को उलझा न सकूँगा।
मैं दुख की नगरी रहता सुन,प्रेम-गली अब आ न सकूँगा॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 873

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 3:13pm
शुक्रिया सौरभ जी।।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 2:42pm

बहुत बहुत बधाई.. और अभी इतना ही.  :-)))

मन मुग्ध किया है आपने, भाई..!!!

हाँ, तीसरी छंद-रचना के लिए विशेष बधाई. 

Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 10:43am

आदरणीय रवि जी:

 

सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Ravi Prakash on August 5, 2013 at 10:50am
सराहना हेतु धन्यवाद।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 5, 2013 at 5:21am

बहुत ही ओजपूर्ण रचना!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2013 at 7:48pm

आदरणीय रवि प्रकाश जी अति सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारिये...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2013 at 7:36pm

बहुत सुन्दर मन मुग्ध करता मत्त्गंद सवैया | हार्दिक बधाई श्री रवि प्रकाश जी, वाह !

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 2:31pm

बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।
शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।
कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।
कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥.वाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय रवि प्रकाश जी ..बधाई आपको

Comment by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 9:11pm
आपकी टिप्पणी से मैं बहुत उत्साहित हुआ हूँ।मार्गदर्शन करते रहें।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 2, 2013 at 7:20pm
भाई रविप्रकाश जी!
मन हर्षातिरेक से आप्लावित है। आनन्द ही आनन्द। वाह
इसका कारण है-
हमारी पीढ़ी के अधिकतर कवि- भाई कविता को हृदय की अभिव्यक्ति मानकर छांदसिक रचनाओँ के गणना जाल से मुक्ति पाने हेतु इनसे कन्नी काटते हैं, ऐसी पीढ़ी में आपके हाथ छंद- रचना की प्रज्वलित मशाल देखकर हृदय में आनन्द उत्पन्न होना सहज, स्वाभाविक है।
इस सवैया के लिये आपको अतिरिक्त बधाई-
//मौन अभीष्ट नहीं मुझको सुख-गीत प्रिये,पर गा न
सकूँगा।
कल्पित नंदन-कानन में मधु-वासित कुंज सजा न सकूँगा।
गोपन इंगित में दृग के तन को,मन को उलझा न सकूँगा।
मैं दुख की नगरी रहता सुन,प्रेम-गली अब आ न सकूँगा॥//

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service