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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल
बह्र-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ
..
कभी मंज़िलों से शिकायतें,कभी रास्तों से गिला करूँ,
कहीं बदहवास चला चलूँ,कहीं बेसबब ही रुका करूँ।
..
ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,
मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।
..
ये चिराग़ तेरी निगाह के यूँ ही रोशनी दें डगर-डगर,
ये सफ़र मेरा है तेरी नज़र यही नक़्शे-पा से लिखा करूँ।
..
तेरी आरज़ू मेरा हौंसला,तेरी जुस्तजू मेरी शायरी,
तू हो दूर या मेरे रूबरू तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा करूँ।
..
हैं रवायतें ये नईं-नईं न तुझे ख़बर,न मुझे पता,
तू क़दम-क़दम पे वफ़ा करे,मैं क़दम-क़दम पे ख़ता करूँ।
..
जहाँ एक डाली गुलाब की रहे पतझरों में तनी हुई,
मुझे उस गली तक ले चलो यही रहबरों से कहा करूँ।
..
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-10.01.2014

Views: 664

Comment

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Comment by Ravi Prakash on January 25, 2014 at 9:53am
कोई बात नहीं गुरुवर, ऐसी त्रुटियाँ हो जाया करती हैं। हाँलाकि इस स्पष्टता से मन को सुकून अवश्य मिला है।आशीर्वाद बनाए रखें॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2014 at 10:26pm

भाई रविप्रकाशजी, आपसे हार्दिक रूप से अपनी भावना ज़ाहिर करते हुए स्पष्ट करता हूँ कि प्रस्तुत ग़ज़ल का काफ़िया एकदम दुरुस्त है. वैसे यह कहना भी अब या कभी कोई अर्थ नहीं रखता है. लेकिन मेरी टिप्पणी ऐसा ही कुछ कहती दीख रही है.

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह टिप्पणी किसी और के पोस्ट के लिए थी. लेकिन शायद मेरे मोनीटर पर कई पेज के एक साथ खुले होने के कारण आपके पोस्ट पर चस्पां हो गयी.

अनजाने ही सही, आपकी शान में हुई इस गुस्ताख़ी के लिए मैं आपसे बिना शर्त क्षमाप्रार्थी हूँ.
यह अवश्य है, कि मेरी इस भूल पर ध्यान किसी ने न दिलाया, न ही आपने दिलाया.

इसके लिए दुख भी है.
शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on January 20, 2014 at 8:03pm
आ॰ वीनस जी, इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए कोटिश: धन्यवाद । कृपया मार्गदर्शन करते रहें।
Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:02am

शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरो मुबारकबार क़ुबूल करें

ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,
मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।
वाह क्या कहने

आख़िरी शेर में तक को ११ वजन पर बाँधा गया है इस पर फिर से गौर फरमाएं

Comment by Ravi Prakash on January 15, 2014 at 11:20pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ विजय मिश्र जी एवं रामशिरोमणि जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:11pm

सुन्दर ग़ज़ल भाई रवि जी। .... हार्दिक बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:37pm
"जहाँ एक डाली गुलाब की रहे पतझरों में तनी हुई,
मुझे उस गली तक ले चलो यही रहबरों से कहा करूँ। - उम्दा शे'र ,पूरी गजल में वही जानी-पहचानी नफासत है |खूबसूरत ,बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 1:23am

काफ़ियाबन्दी फिर से करें, रवि भाई. 

Comment by ajay sharma on January 14, 2014 at 11:07pm

हैं रवायतें ये नईं-नईं न तुझे ख़बर,न मुझे पता,
तू क़दम-क़दम पे वफ़ा करे,मैं क़दम-क़दम पे ख़ता करूँ।.............behatreen .....................bahut hi umda 

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 10:18pm

उम्दा गज़ल कही आ. रवि प्रकाश जी बधाई आपको .

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