For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने जितना तुमको जाना

मैंने जितना तुमको जाना
अपने मन को पढ़ कर जाना।
॰॰॰
यूँ भी तुमने कब चाहा था
मेरा मन यूँ तुमको चाहे,
रूप तुम्हारा पूजे प्रतिपल
फिर उस पूजन पे इतराए।
लेकिन अपनी सीमाओं में
मन कब सीमित हो पाया है,
पथ के सारे पाषाणों में
तेरी प्रतिमा गढ़ कर माना।
॰॰॰
मुझको ऐसा भान कहाँ था
भाव-दशा यूँ भी होती है,
उन पहरों में मन जागेगा
जिनमें रातें भी सोती हैं।
जग कहता था खेल नहीं है
यूँ पीड़ा से क्रीड़ा करना,
लेकिन मैंने इस पीड़ा को
पीड़ाओं में पड़ कर जाना।
॰॰॰
मैं कितना तुम्हें पुकारूँगा
गीतों का सहगामी होकर,
तुम भी कितना मौन रहोगे
अपनी परछाई में खोकर।
कभी स्वयं का पता पूछते
जब तुम मुझ तक आ पहुँचोगे,
तब जानोगे मैंने सचमुच
तुमको तुमसे बढ़ कर जाना।
॰॰॰
-मौलिक एवं अप्रकाशित
-18.06.2015

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on July 6, 2015 at 7:23pm
स्नेह,आशीर्वाद तथा परामर्श के लिए धन्यवाद आदरणीय। कृपया मार्गदर्शन करते रहें।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 3:50am

भाई रवि प्रकाश जी, एक अरसे बाद आपको पुनः मंच पर इस आत्मीय रचना के साथ देखना आनन्ददायक है. आपका यह गीत कोमल भाव-निवेदन के साथ प्रस्तुत हुआ है. इन पंक्तियो का असर देर तक बना रहता है. बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.


एक बात:
भाईजी, आप ध्वन्यात्मक तुकान्तता से परहेज करें. यह शिल्पगत दोष की तरह लिया जाता है. जो इसके आग्रही हैं उनके प्रति यही कहा जा सकता है, कि तप का शॉर्टकट नहीं होता.
शुभेच्छाएँ.

Comment by Ravi Prakash on June 28, 2015 at 6:55pm
धन्यवाद आदरणीय।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:16am

आदरणीय रवि जी 

सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by Ravi Prakash on June 20, 2015 at 10:59pm
धन्यवाद आदरणीय।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:16pm

अच्छी रचना है . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस विधा पर आपका अभ्यास श्लाघनीय है. किंतु आपकी प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय मिथिलेश जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service