For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरुन 'अनन्त''s Blog (103)

ग़ज़ल : सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है

बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम

मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,

सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,



जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,

मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,



तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,

दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,



पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,

विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल: अरुन 'अनन्त'

दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,

आज कल इंसान पत्थर हो गए,



क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,

सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,



स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,

प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,



अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,

प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,



ढह गई दीवार आदर भाव की,

प्रेम के आवास खँडहर हो गए,



पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,

राह में वो आज ठोकर हो गए,



जो समय के साथ चलते हैं नहीं,

एक दिन वो बद से बदतर हो…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:00pm — 22 Comments

घनाक्षरी : अरुन 'अनन्त'

आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों घनाक्षरी पर यह मेरा प्रथम प्रयास है कृपया त्रुटियों से अवगत कराएँ.

मनहरण - घनाक्षरी

क्रूरता कठोरता अधर्म द्वेष क्रोध लोभ

निंदनीय कृत्य पापियों का प्रादुर्भाव है,



दूषित विचार बुद्धि और हीन भावना है,

आदर सम्मान न ह्रदय में प्रेम भाव है,



नम्रता सहृदयता विवेक न समाज में,

सभ्यता कगार पर धर्मं का आभाव है,…



Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on April 21, 2014 at 10:30am — 19 Comments

ग़ज़ल : अरुन 'अनन्त'

बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,

टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.



हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,

कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,



आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,

कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,



यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,

आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,



रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,

एक अरसे से…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:30pm — 40 Comments

बसंत के दोहे : अरुन अनन्त

बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।

शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।



अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।

ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।



धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।

इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।



डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।

आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।



पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।

मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।



गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on February 3, 2014 at 12:00pm — 29 Comments

दोहे : अरुन 'अनन्त'

बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।

बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।



बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।

हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।



दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।

होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।



रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।

दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।



आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।

धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।



व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on January 23, 2014 at 11:30am — 16 Comments

ग़ज़ल : अरुन 'अनन्त'

बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम


सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,

हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,

घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 11:00am — 33 Comments

ग़ज़ल : अरुन 'अनन्त'

बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,

नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 4:12pm — 36 Comments

मौत के साथ आशिकी होगी (अरुन 'अनन्त')

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,

उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,

आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,

नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,

आखिरी वक्त है अमावस का,
कल से हर रात चाँदनी होगी.

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:30pm — 25 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बहरे रमल मुसमन महजूफ

2122 2122 2122 212



फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,

राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,



इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,

आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,



लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,

मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,



एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,

काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,



जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,

मैं बली फिर से किसी…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on December 8, 2013 at 12:00pm — 26 Comments

श्याम जैसी वो साँवरी होगी : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून

2122  1212  22



खूबसूरत हँसी परी होगी,
सोचता हूँ जो जिंदगी होगी,



सादगी कूटकर भरी होगी,

श्याम जैसी वो साँवरी होगी,

 

ख्वाहिशें क्यूँ भला अधूरी हैं,
मांगने में कहीं कमी होगी,



ख़त्म कर लें विवाद आपस का,
मैं गलत हूँ कि तू सही होगी,

 

मौत ने खा लिया बता देना,

जिस्म में जान जब नही होगी,



शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,

सत्य बोलूँगा खलबली…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 1:00pm — 26 Comments

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,

शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,

बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,

अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,

सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 4:00pm — 38 Comments

बात क्या है जो रात भारी है : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

बात क्या है जो रात भारी है,
इश्क है या कोई बिमारी है,

जान लेती रही हमेशा पर,
याद तेरी बहुत दुलारी है,

मौत से डर के लोग जीते हैं, 
जिंदगी ये ही सबसे प्यारी है,

हुस्न कातिल सही सुनो लेकिन,
सादगी फूल सी तुम्हारी है,

हाथ खाली ही लेके जायेगा,
जग से राजा भले भिखारी है....

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 11:30am — 29 Comments

मेरा मन झूम राधा हो : अरुन शर्मा 'अनन्त'

भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,

मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,

लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,

यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,

ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,

खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,

बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....

मौलिक व अप्रकाशित ..

Added by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 3:30pm — 28 Comments

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।

प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।



सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।

कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।



अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।

प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।…



Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 12:58pm — 13 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम,



मदरसा बना या मदीना बना दे,

मुझे कीमती इक नगीना बना दे,



बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,

समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,



मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,

अगर हो सके वो महीना बना दे,



सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,

मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,

मरीना = मुलायम कपडा



लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,

ह्रदय की धरा को सफीना बना दे....

सफीना : किताब

(मौलिक एवं…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 4:30pm — 17 Comments

सत्य की अवहेलना है : अरुन शर्मा 'अनन्त'

न्याय के घर झूठ भारी
सत्य की अवहेलना है,

अब पतन निश्चित वतन का,
दण्ड सबको झेलना है,

पाप का पापड़ कहाँ तक,
मौन रहकर बेलना है.

दांव पे साँसे लगी हैं,
ये जुआ भी खेलना है,

मृत्यु की खाई में बाकी,
शेष जीवन ठेलना है....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 12:30pm — 19 Comments

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।

उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।

नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।

ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।

सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:00pm — 23 Comments

प्रिये तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,

तुम भविष्य हो वर्तमान हो,

मधुरिम प्रातः संध्या बेला,

प्रिये तुम तो प्राण समान हो....



अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,

खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,

तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,

सरस सहज आसान तुम्हीं हो.



तुम्हीं समस्या का निदान हो,

प्रिये तुम तो प्राण समान हो....



पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,

तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,

शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 12:30pm — 28 Comments

ग़ज़ल : सत्य मेरा बोलना ही ऐब है

बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ

2 1  2 2  2 1  2 2  2 1 2



तंग बेहद हाथ खाली जेब है,

सत्य मेरा बोलना ही एब है,



पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,

वक्त की कैसी अजब अवरेब है,

( अवरेब = चाल )



जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,

दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,

( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )



जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,

साँस भी लेने में अब आसेब है,

( आसेब = कष्ट )



भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"जिसको देखो वही अदावत मेंकौन खुश है भला सियासत में।१।*घिस गयी जूतियाँ थमीं साँसेंकेस जिसका गया…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"सादर अभिवादन आदरणीय।"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम साहिब को सादर अभिवादन "
5 hours ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"सबका स्वागत है ।"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटीसूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात । क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।मुफलिस…See More
11 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Wednesday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
Wednesday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service