प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।
सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।
कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।
अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।
प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।
निश्छल यदि हो भावना, मर्यादित हो प्यार ।
नृत्य झूम कर मन करे, तन करता श्रृंगार ।।
लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।
सदा प्रेम से ही बने, सुन्दर घर परिवार ।।
प्रेम समस्या से करें, होगा दुख का अंत ।
प्रेम अमिट संसार में, कहें महात्मा संत ।।
पशु पक्षी जन जीव सब, सुन मुरली की तान ।
मन्त्र मुग्ध हैं प्रेम में, नहीं रहा कुछ ध्यान ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
इस अद्भुत कहन प्रयास के लिए हृदय से बधाई, अरुन भाई ! मन बार-बार मुग्ध हुआ जाता है !
किन्तु, तनिक.. बस तनिक सा धैर्य इस छंद प्रस्तुति को आपकी समस्त रचनाओं के बीच अति विशिष्ट का दर्ज़ा दिला देता.
आदरणीया प्राचीजी ने जो कुछ इंगित किया है उसे अवश्य मान दें और तदनुरूप काम करें
प्रेम पगा हर बंद है, प्रेमपरक हर बात
तथ्य सिंधु में डूबिये, शिल्प न खाए मात !
शुभ-शुभ
प्रेम की सुन्दरता को सुकोमलता और सात्विकता से परिभाषित करते बहुत सुन्दर दोहे प्रिय संदीप जी
बहुत बहुत बधाई
प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम । .................मात्रा पुनः देख लें
अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।..........गेयता बाधित हो रही है
लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।.........कथ्य स्पष्टता के लिए थोड़ा सा और प्रयास मांगता है
प्रेम समस्या से करें, होगा दुख का अंत । ......इसका अर्थ मुझे स्पष्ट नहीं हुआ ...समस्याओं से प्रेम करें तब तो समस्याएँ पीछा नहीं छोड़ेंगी ...:)))
अपनी समझ भर यही कुछ कहना है..शायद सहमत हों
सस्नेह शुभकामनाएं
आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी वाह अनुपम दोहावली। हार्दिक बधाई आपको।
बेहतरीन दोहावली भाई अरुण जी बधाई स्वीकार करें
वाह आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी वाह अनुपम दोहावली। …हर्दिक बधाई आपको। । सादर
निश्छल यदि हो भावना, मर्यादित हो प्यार ।
नृत्य झूम कर मन करे, तन करता श्रृंगार ।।.............सच! बहुत अच्छा सन्देश, प्रेम निश्छल भावनाओं से ही
होता है
प्रेम को परिभाषित कर, सटीक संदेशप्रद दोहावली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण अनंत जी
वाह!! अरुन जी प्रेम से पगी दोहावली के लिए बधाई आप को
प्रेम की बहुत खूबसूरत व्याख्या की आपने आ० अरुण जी!
लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।
सदा प्रेम से ही बने, सुन्दर घर परिवार ।। यह परिभाषा तो गदगद कर गयी हृदय को!
प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।। अद्भुत!!
बहुत बहुत बधाई!
वाह वाह अरुण प्रेम ही प्रेम
प्रेमपूर्ण दोहावली के लिए बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपाल सर दोहे आपको पसंद आये सुनकर प्रसन्नता हुई.
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