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तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,

शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,

बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,

अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,

सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 11, 2013 at 11:41pm

देर से आया हूँ ग़ज़ पर .. सॉरी.

बधाई.. :-))

ये शुकूं क्या होता है ?

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 12:40pm

हार्दिक आभार आदरणीया वंदना बहन

Comment by Vindu Babu on December 8, 2013 at 6:03am

बहुत ही सुंदर गज़ल हुई है आदरणीय अरुण भाई।

कथ्य भी प्रभावी है।

सादर बधाई आपको।

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:20pm

हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव श्री आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:19pm

तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय गोपाल सर आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:19pm

शुक्रिया आदरणीया प्रवीन मलिक जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:18pm

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश माँ जी आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:17pm

हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:17pm

हार्दिक आभार आदरणीय संदीप भाई साहब

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2013 at 4:55pm

अनंत जी

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुयी i

शुभकामनाये i

कृपया ध्यान दे...

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