बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम,
मदरसा बना या मदीना बना दे,
मुझे कीमती इक नगीना बना दे,
बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,
समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,
मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,
अगर हो सके वो महीना बना दे,
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,
मरीना = मुलायम कपडा
लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,
ह्रदय की धरा को सफीना बना दे....
सफीना : किताब
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,
अगर हो सके वो महीना बना दे,
वाह ! बहुत खूब !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय भाई जी हार्दिक बधाई आपको///सादर प्रयास
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,
वाह! बहुत प्यारा शेअर! :-)
बधाई!!
मदरसा बना या मदीना बना दे,
मुझे कीमती इक नगीना बना दे,
ये कौन कह रहा है ? वैसे मुझे ईंट या पत्थर की कही बात लग रही है.
बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,
समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,
दोनों मिसरों में बहुत बढिया राबिता नहीं बन रहा है. वैसे, भाईजी, समन्दर सा प्यासा हसीना ? .. जय हो..
मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,
अगर हो सके वो महीना बना दे,
बहुत खूब !
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,
:-))))... मुझसे भले चाँदी के बटन तेरे जो कुर्ते में तूने लगाये.. :-)))) .. मज़ा आगया.
लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,
ह्रदय की धरा को सफीना बना दे,
इसका क्या मतलब हुआ, भाईजी ? कहानी के हिसाब से तो लिखी हो होना चाहिये न. वैसे मुझे कुछ पता नहीं चला सो उलझन में हूँ.
कोशिशों के लिए बधाई और शुभकामनाएँ
शुभेच्छाएँ
इंशा-अल्लाह ...मुझे कीमती इक नगीना बना दे!.. बहुत खूब जनाब :)
बहुत ख़ूब ... बधाई
क्या बात है आदरणीय अरुण भाई
ग़ज़ब के अशआर कहे हैं आपने
लाजवाब
हर इक अशआर पर दिली दाद क़ुबूल करें जय हो
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे, ..kya najuk khayal hai
sunder/umda gazalअरुण जी ..
क्या रूमानियत भरा अंदाज सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,..भाई वह
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