1222---1222---1222-1222 |
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मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ। |
तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ। |
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कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:03pm — 28 Comments
1222---1222---1222-1222 |
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सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
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पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 8:30pm — 32 Comments
121-22---121-22---121-22---121-22 |
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नसीब को जो कभी न रोया, उसी को किस्मत फली-फली है |
जो काम आये तुरंत कर लो, गलीज़ आदत टला-टली है |
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कुछ इस तरह से मुहब्बतों के… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 27, 2015 at 3:30am — 16 Comments
22---22---22---2 |
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फूलों में सरगोशी है |
सच की खुशबू फैली है |
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मुमकिन को भी मायूसी |
नामुमकिन कर देती… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
221—2121—1221—212 |
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जुगनू से मांगने को चला है कि ताब दो |
बेचैन हो गया है बशर फिर नकाब दो |
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इस तिश्नगी से हम न कभी मुतमईन थे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 9:30am — 20 Comments
“अब परेशान होने से क्या होगा? मैंने पहले ही कहा था कि इतनी उधारी मत करो.”
“गज़ब बात करती हो सुधा. अगर उधार नहीं लेते तो अनु की पढ़ाई का क्या होता?”
“क्या अनु यहीं नहीं पढ़ सकती थी? कितना कहा, पर आपको तो.... जवान बेटी को विदेश भेज दिया ... बरमंगम में पढ़ाएंगे”
“बरमंगम नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम इन ग्रेट ब्रिटेन”
“जिस जगह का नाम तक याद नहीं रहता, वहां भेज दिया बेटी को और अब परेशान हो रहे है.”
“अरे मैं परेशान इसलिए हूँ कि संपत भाई इसी हप्ते चार लाख वापस मांग रहे…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 21, 2015 at 3:41am — 20 Comments
212—212—212----212—212—212 |
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वो बदलते नहीं है अगर, तो फ़क़त इतना चल जाएगा |
आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा |
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बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:30am — 15 Comments
1222 — 1222 — 1222 — 1222 |
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प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा? |
हमारा और उनका जब मिलन होगा तो क्या होगा? |
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उन्हें इस बात का आभास हो जाए तो अच्छा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 9:30am — 24 Comments
221 2121 1221 212 |
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अपनी ख़ुशी उछाल के बिजली के तार पर |
रौशन किया है देखिये घर जोरदार पर |
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आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 11:00pm — 26 Comments
1222—1222—1222—1222 |
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घरौंदें, आस में अक्सर यही जुमलें सुनाते हैं |
‘परिन्दें, शाम होती है तो घर को लौट आते हैं’ |
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वों तपते जेठ सा तन्हां हमेशा छोड़ जाते… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00pm — 28 Comments
दोनों लगभग एक ही साथ चित्रगुप्त के समक्ष पहुंचे क्योकिं आश्रम में हृदयघात से जब बाबा दुनिया से सिधारे तो अगाध श्रद्धा रखने वाले भूपेश भाई ने भी सदमे में तत्काल प्राण त्याग दिए.
चित्रगुप्त ने बाबा को स्वर्ग में भेज दिया और भूपेश भाई को नर्क जाने का आदेश दिया.
सुनकर भूपेश भाई सन्न रह गए, लेकिन बाबा के आश्वासन की याद आते ही खुद को सँभालते हुए बोले-
“मुझे नरक क्यों भगवन?”
“क्योकि तुमने कोई पुण्य कार्य नहीं किया वत्स!”
“नहीं भगवन!....जीवन भर आश्रम में दान किया,…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00am — 10 Comments
“आप सरकारी नौकरी के साथ समाज सेवा कैसे कर लेते है?”
“जब नौकरी से फ्री होता हूँ तो खाली समय का उपयोग कर लेता हूँ.”
“आपको झुग्गी-बस्ती में शिक्षा के प्रसार की प्रेरणा कहाँ से मिली?”
“हा हा हा... प्रेरणा व्रेरणा कुछ नहीं भाई.... स्लम एरिया के पास वाले सिग्नल पर बच्चों को सामान बेचते और भीख मांगते देखा, तो स्लम में चला गया... लोगों से बात की तो लगा कुछ करना होगा और असली काम तो वालेंटियर ही कर रहे है.”
“आपको सब पर्यावरण-मित्र कहते है क्योकिं आप इतने बड़े ओहदे पर है फिर…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:00pm — 22 Comments
उसने कामवाली को जरा-सा जोर से क्या डांट दिया, पति और बेटे दोनों ने ये कहकर अयोग्य घोषित कर दिया कि उसकी नाहक ही परेशान होने उम्र नहीं है। परिवार के दबाव में स्टोर की चाबी बहू को सौपते हुए उसे लगा था जैसे उसके किचन नाम के किले पर किसी ने सेंधमारी कर ली हो। वह सोच में डूबी थी कि अचानक बहू के चिल्लाने की आवाज सुनकर बोली-
“अरे बहू सुबह सुबह क्यों डांट रही है बच्चे को, अब एक दिन स्कूल नहीं जाएगा तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।” दादी की शह पाकर बच्चा दादी के साथ ही लग लिया। पूरा दिन दादी के…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 2:30am — 26 Comments
2122--2122--2122--212
इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही |
माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही |
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धूप बारिश सर्दियों को मुख़्तसर करती रही |
बीज की कुछ कोशिशें मिलकर शज़र करती रही… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 1:00am — 16 Comments
212—212—1222 |
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पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
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आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 9:30am — 42 Comments
“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”
“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”
“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”
“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”
“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”
“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments
1222--1222—1222--1222 |
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लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या? |
निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या? |
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अगर दो वक़्त की… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments
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