For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कबीरा, सूर, मीरा और तुलसीदास रखता हूँ। (ग़ज़ल)

1222---1222---1222-1222

 

मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ।

तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ।

 

कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को चलनी

मुझे अवसर नहीं ऐसे मगर उपवास रखता हूँ।

 

मैं शबनम देख लेता हूँ तुम्हारी याद आती है

यही ख्वाहिश लिए मै जेब में अब घास रखता हूँ।

 

किसी भी लक्ष्य को पाकर, ख़ुशी से झूमता लेकिन

सफलता में भी अंतिम सत्य का आभास रखता हूँ।

 

कभी मंदिर या मस्जिद के बुलावे पर नहीं जाता

परम सत्ता पे मैं लेकिन बहुत विश्वास रखता हूँ।

 

चलो माना कि दरिया हो, मगर तहजीब मत भूलों

सुनो मैं भी समंदर से जियादा प्यास रखता हूँ।

 

कभी मैंने नहीं चाही खुशामद या सिफत लेकिन

शगुफ्ता इक तबस्सुब की जरा सी आस रखता हूँ।

 

हथेली पर मेरे कल की तमन्ना रक्स करती है

मगर मैं भी हमेशा हाथ में इतिहास रखता हूँ

 

सुनो, सुन के बताओं क्या इसी को दर्द कहते है?

तुम्हारे सामने अपने सभी अहसास रखता हूँ।

 

मैं ग़ालिब मीर पढता हूँ, ग़ज़ल के साथ में लेकिन

कबीरा, सूर, मीरा और तुलसीदास रखता हूँ।

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 4:19am

आदरणीय मदन मोहन जी,  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 4:18am

आदरणीय अजय जी,  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 

Comment by Ajay Kumar Sharma on October 16, 2015 at 10:47am

जाने कब के धड़कन रुक गई होती,

पढ़ने को गजल तेरी मैं रोके सांस रखता हूँ।

Comment by Madan Mohan saxena on September 28, 2015 at 3:54pm

सुनो, सुन के बताओं क्या इसी को दर्द कहते है?

तुम्हारे सामने अपने सभी अहसास रखता हूँ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 13, 2015 at 1:53am

आदरणीय योगराज सर, इस ग़ज़ल फीचर करने के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 3:26pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, .ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 3:25pm

आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. आपके मार्गदर्शन अनुसार पुनः प्रयास करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 3:25pm

आदरणीय कृष्ण भाई जी, .ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:43pm

बहुत ख़ूब आदरणीय मिथिलेश जी, सभी शे’र ख़ूबसूरत हैं। दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 10:58am

आदरणीय मिथिलेश भाई , वाह क्या बात है ! क्या गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको , सभी अश आर लाजवाब हुये हैं ।

आदरणीय बस इस शे र के भाव कम से कम मुझे सही लग रहे है  हो सकता है ये मेरी नासमझी ही हो , लेकिन कहना भी ज़रूरी है -

मैं ग़ालिब मीर पढता हूँ, ग़ज़ल के साथ में लेकिन  

कबीरा, सूर, मीरा और तुलसीदास रखता हूँ।       ---    इस  शे र से क्या वो ही अर्थ निकल रहा है जो आप सच मे कहना चाहते हैं , एक बार और सोच लीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
1 minute ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service