For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बता क्या होगा?-- ग़ज़ल -- (मिथिलेश वामनकर)

2122—1122—1122—22

 

मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा?

इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा?

 

आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों  

इश्क का दरिया बहाने से बता क्या होगा?

 

जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे

इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा?

 

बद-खयालों से भरा आज तलक तेरा दिल

रोज गंगा में नहाने से बता क्या होगा?

 

याद करने से भला कौन मज़ा आता हैं?

अब उन्हें भूल भी जाने से बता क्या होगा?

 

बेवफ़ा की ये जफ़ा की ये खफा की बातें

ये पिटे राग सुनाने से बता क्या होगा?

 

जो गए, लौट के वापिस तो नहीं आ सकते

आँख से धार गिराने से बता क्या होगा?

 

एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक

इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा

 

कितने सच्चे हैं मियां खूब खबर दुनिया को

माँ कसम ढेर भी खाने से बता क्या होगा?

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

टीप- ये ग़ज़ल लगभग दस-बारह साल पहले लिखी थी लेकिन किसकी जमीन पर लिखी थी ये याद नहीं है. उसे आज बह्र अनुसार कुछ मिसरों को थोड़ा सा संशोधित कर प्रस्तुत कर रहा हूँ. आज आदरणीय जयनित जी की ग़ज़ल पढ़कर अचानक इसकी याद आई तो पुरानी डायरी खंगाली और ये मिल भी गई.

Views: 787

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:44pm

आदरणीय सुनील जी, आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया और मुखर अनुमोदन ने खुश कर दिया. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:43pm

आदरणीय गिरिराज सर, मंच पर जब से आया हूँ आपकी ऊँगली पकड़कर चल रहा हूँ. आपका अनुमोदन पाकर सदैव आश्वस्त होता हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:41pm

आदरणीय भुवन सर जी, बहुत दिनों बाद आपकी मंच पर सक्रियता और अपनी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति से दिल खुश हो गया है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:40pm

आदरणीय राहुल भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:40pm

आदरणीय रवि जी, आपका अनुमोदन पाकर ख़ुशी हुई  है.ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 

Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 1:09am
आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको. कई अशआर तो ख़ूब हुए हैं.
जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे
इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा?... क्या बात! बहुत बढ़िया. बहुत बढ़िया.
याद करने से भला कौन मज़ा आता हैं?
अब उन्हें भूल भी जाने से बता क्या होगा.. ये भी ख़ूब.
और ये शे'र भी कि...
एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक
इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा... सही बात आदरणीय.
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ आपको. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2015 at 9:16pm

जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे

इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा?

एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक

इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा

बहुत सुन्दर शे र लगे ये दोनो , आदरणीय मिथिलेश भाई , एक और अच्छी गज़ल के लिए आपको हार्दि बधाई ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 3:05pm
आदरणीय यही वे जज्बात है जिन्होने लिखना सिखाया। नमन इन भावनाओं को।
Comment by भुवन निस्तेज on September 7, 2015 at 3:02pm

एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक

इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा

वाह क्या खूब...

Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 2:52pm

आदरणीय मि‍थिलेश जी सुन्‍दर ग़ज़ल के लिये बधाई स्‍वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
7 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
9 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
9 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
9 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
9 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service