For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- उछाल के बिजली के तार पर (मिथिलेश वामनकर)

221 2121 1221 212

 

अपनी ख़ुशी उछाल के बिजली के तार पर

रौशन किया है देखिये घर  जोरदार पर

 

आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां

तो जिंदगी ये आपकी समझो उतार पर

 

अब कुछ नहीं तो तज्रिबा हासिल हुआ हमें

जोखिम उठा के जो किया बोसा कटार पर

 

रंगों ने सादगी को जो रंगीन कर दिया

तो सादगी से रंग भी आये निखार पर

 

तुमको हुनर मिला है ये उसका ही है फज़ल

फनकारियां हुई है उसी के उधार पर

 

रखना जुबान पाक, ये मुमकिन है फिर कभी 

वापिस वही मिलेगी तेरी हर पुकार पर

 

इक बार में कुबूल न हो पाई जो  दुआ

अपने दिए को यार रखो फिर मज़ार पर

 

जो सुन रहा है आज तरन्नुम भी शोर में

होगी नई मिसाल उसी खाकसार पर

 

‘वादा लिया कि ख़्वाब, हकीक़त करोगे तुम’

यूं बोझ रख दिया है किसी होनहार पर

 

मज़हब अलग-अलग है इबादत अलग-अलग

सुन लो सभी का एक है परवरदिगार पर

 

हर एक शै जो आज अदीबों को दिख रही

कल ये जहां करेगा अमल उस्तुवार पर

 

परवाज़ है बुलंद मगर देखिये जरा 

आता है लौट कर वो परिन्दा दयार पर

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 841

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 6:31pm
आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 18, 2015 at 3:47pm

 

अब कुछ नहीं तो तज्रिबा हासिल हुआ हमें

जोखिम उठा के जो किया बोसा कटार पर

 

बहुत उम्दा बात


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 5:03pm

आदरणीय  सूबे सिंह सुजान जी, ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 16, 2015 at 4:02am
वाह वाह बहुत सुंदर गजल कही है बधाई बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 14, 2015 at 8:21pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ. मेरे विचारों के मुखर अनुमोदन से आश्वस्त हुआ.  ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by दिनेश कुमार on August 14, 2015 at 6:54pm
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद स्वीकार करें आदरणीय भाई मिथिलेश जी। आप की सोच व लेखनी को सलाम। वाह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 13, 2015 at 10:59pm

आदरणीय गुनीजनों के मार्गदर्शन अनुसार शीघ्र ही मिसरों में संशोधन करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 13, 2015 at 10:07pm

आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया ने मुग्ध कर दिया- //हर शेर अद्भुत सोच का परिणाम है.//

संभवतः यही प्रतिक्रिया है जो शायरी के कहन को दिशा देती है. 

//जो ज़ल्दबाज़ी वाली बात किसी ने बतायी है, सही है. पुरानी आदत और ग़हरे दाग़ धीरे-धीरे जाते हैं.// इस बार केवल 4 दिन ग़ज़ल को पोस्ट होने से रोके रख सका इसलिए ये बात आंशिक सही है कि अपेक्षकृत जल्दबाजी हुई है. उससे भी सही कहा कि पुरानी आदत....... लेकिन प्रयास जारी है.

मतले पर आपके मार्गदर्शन से आगे सोच नहीं पा रहा हूँ इसलिए यही अभी बेस्ट लग रहा है  - रौशन किया है देखिये घर जोरदार पर

बाकी मिसरों को सुधारता हूँ. आपके मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ... सादर नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 13, 2015 at 9:51pm

आदरणीय रवि जी, आपने जो कहा है निसंदेह विचारणीय है. मैं इस शेर पर पुनर्विचार करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 13, 2015 at 9:49pm

आदरणीय सुशील सरना सर, ग़ज़ल आपको पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ. आपके प्रोत्साहन से सदैव मेरा मनोबल बढ़ता है. ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service