For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऑक्सीजन - (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

“अब परेशान होने से क्या होगा? मैंने पहले ही कहा था कि इतनी उधारी मत करो.”

“गज़ब बात करती हो सुधा. अगर उधार नहीं लेते तो अनु की पढ़ाई का क्या होता?”

“क्या अनु यहीं नहीं पढ़ सकती थी? कितना कहा, पर आपको तो.... जवान बेटी को विदेश भेज दिया ... बरमंगम में पढ़ाएंगे”

“बरमंगम नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम इन ग्रेट ब्रिटेन”

“जिस जगह का नाम तक याद नहीं रहता, वहां भेज दिया बेटी को और अब परेशान हो रहे है.”

“अरे मैं परेशान इसलिए हूँ कि संपत भाई इसी हप्ते चार लाख वापस मांग रहे है. अब इतना पैसा कहाँ से लाऊँ? जिनका अब तक लौटाया भी नहीं है उनसे फिर कैसे मांगू ? ”

“आपसे कितना तो कहा कि जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाना चाहिए. लेकिन आपके सिर पर तो अनु को विदेश में पढ़ाने की धुन सवार थी.”

“बस भी करो सुधा, फिर वही राग छेड़ दिया तुमने. वैसे ही परेशान हूँ और तुम..... मेरा दम घुटता है ऐसी बातों से.”

“ठीक है भई, नहीं कहती कुछ.... खैर अब जो होना था सो हो गया.... अच्छा मैं क्या कहती हूँ कि मेरे गहने बेचकर चार-पांच लाख से ज्यादा ही मिल जायेंगे. आप क्या कहते हैं?”

“तुम भी न सुधा...” आज पत्नी के बालों की भीनी-भीनी महक ने, उसकी साँसों में फिर से ऑक्सीजन से भर दी.

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 5:03pm

आदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा के मर्म पर आपका मुखर अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. आपकी आत्मीय प्रशंसा से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2015 at 1:26pm

स्त्री को गहने प्रिय होते हैं ये बात अपनी जगह सही है किन्तु वही स्त्री वक़्त पड़ने पर खुद उन गहनों को उतार कर हाथ पर रख देती है ऐसे उदाहरण जीवन में बहुत देखे भी हैं गहने एक तरफ जहाँ तन की शोभा हैं वहीँ जरूरत वक़्त के लिए एक तरह से सेविंग भी |इस लघु कथा का सन्देश भी इसी बात पर निर्भर है बहुत अच्छी लघु कथा लिखी मिथिलेश भैया हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 10:59am

आदरणीय जितेन्द्र जी आप जैसे लघुकथाकार से सकारात्मक टीप पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. लघुकथा के मुखर अनुमोदन से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 10:57am

आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने सर,गहने होते ही इसीलिये हैं.  लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2015 at 10:09am

आदरणीय मिथिलेश भाई , गहने होते ही इसीलिये हैं , जब तक कठिन स्थिति न आये शरीर की शोभा बढाये नहीं तो घर की इज़्ज़त बचाये । अच्छी लगी आपकी लघुकथा । बधाई आपको ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 25, 2015 at 3:36am

बहुत सुंदर , आदरणीय मिथिलेश जी. आपकी लघुकथा हर तरह से कसौटी पर कसी हुई है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 11:34pm

आदरणीय वीरेंदर जी, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. // कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है।// आपके मार्गदर्शन के सापेक्ष पुनर्विचार करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 11:33pm

आदरणीया कांता जी, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 23, 2015 at 11:25am
आदः मिथिलेश जी रचना पर प्रतिक्रिया आ ही चुकी है फिर भी इस मध्यम वर्ग की भावपूर्ण प्रस्तुति पर सादर बधाई। (आदः भाई जी मुझे इस कथा में कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है। एक विचार मात्र भाई जी, सादर।)
Comment by kanta roy on August 22, 2015 at 6:58pm
वाह !!!!बडी भीनी - भीनी सी लघुकथा बनी है आदरणीय मिथिलेश जी । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service