For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,926)

तुमनें पूछा ...

मैं कौन हूँ ?

ये ही पूछा हैं न ?

ये मेरी ही दस्तक है

जो फैलाती हैं सुगंध

बनती है मकरंद.

जो काफी है

भौरों को मतवाला बनाने को

और कर देती है लाचार

बंद होने को पंखुड़ियों में ही

तुम नहीं देख पाए मुझको

उन परवानों के दीवानेपन में

जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर

क्या मैं नहीं होता हूँ

उन ओस की बूंदों में

जो गुदगुदाती हैं

प्रेमियों को

रिमझिम फुहार में

बस…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments

नीयत साफ़ रखॊ,,,,,, -----------------------

नीयत साफ़ रखॊ,,,,,,

-----------------------



कुछ इस तरह सॆ,तबियत साफ़ रखॊ ।

नज़र साफ़ रखॊ, नीयत साफ़ रखॊ ॥१॥



यॆ सारा ज़माना,तुम्हारा हॊ जायॆगा,

मन साफ़ रखॊ,मॊहब्बत साफ़ रखॊ ॥२॥



हर बात की तासीर दिखाई दॆगी बस,

अदा साफ़ रखॊ,औआदत साफ़ रखॊ ॥३॥



मज़ाल क्या जॊ, बिगड़ जायॆं बच्चॆ,

अदब साफ़ रखॊ,नसीहत साफ़ रखॊ ॥४॥



तुम्हारा बॊया ही,औलाद कॊ मिलॆगा,

बीज साफ़ रखॊ, वशीयत साफ़ रखॊ ॥५॥…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:52am — 2 Comments

रिश्तॆ,,,,,, -----------------

रिश्तॆ,,,,,, -----------------

दूर जब सॆ दिलॊं कॆ मॆल हॊ गयॆ ।

रिश्तॆ जैसॆ राई का तॆल हॊ गयॆ ॥१॥

जिननॆ दी रिश्वत नौकरी मिली,

डिग्रियां लॆ खड़ॆ थॆ फ़ॆल हॊ गयॆ ॥२॥

इरादॆ बहुत नॆक मगर क्या करॆं,

मंहगाई मॆं दब कॆ गुलॆल हॊ गयॆ ॥३॥

बॆमानी भ्रष्टाचार न मरॆंगॆ कभी,

बढ़ रहॆ हैं जैसॆ अमरबॆल हॊ गयॆ ॥४॥

बात की बात मॆं बदल जातॆ लॊग,

वादॆ जैसॆ बच्चॊं, कॆ खॆल हॊ गयॆ ॥५॥

नर और नारी रचॆ थॆ नारायण…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:50am — 3 Comments

बड़ॆ खराब हॊ,,,,

बड़ॆ खराब हॊ,,,,

---------------------

कद से बढ़ कर हाज़िर जवाब हो!

अकेले गज़ल की पूरी किताब हॊ !!



तुम्हे खिज़ाब लगाने की क्या पड़ी,

रंग-रूप से तॊ पैदाइशी खिज़ाब हॊ !!



वक्त की आँधियों ने क्या बिगाड़ा है,

खिले गुलाब थे अब सूखे गुलाब हॊ !!



इस उम्र मे भी आ रहे हैं मिस काल,

मोहब्बत के मामले मॆं कामयाब हॊ !!



हमने तो महज़ सितारा समझा था,

मगर आप तो दहकते आफ़ताब हो !!…



Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 17, 2012 at 7:32pm — 3 Comments

खाली ज़मीन --- हास्य/ शुभ्रांशु पाण्डेय



सुबह-सुबह लाउडस्पीकर पर बजरंगबली के गोलगप्पा ले के कूद पडने वाले गाने को सुन कर मेरा मन भी बजरंगबली की तरह कूदने को होने लगा. यों मैं बताता चलूँ कि इस गाने या भजन (?) की कोई तुक समझ में नहीं आती है. लेकिन बजता है तो कुछ जरूर होगी. या तो ये गीत है या भजन है.

लेकिन सुबह-सुबह मेरे घर के बगल की खाली जमीन पर गोलगप्पा खिलाये बिना कुदाने वाले कौन लोग आ गये ? यही जानने समझने के लिये मैं हडबडा कर…

Continue

Added by Shubhranshu Pandey on January 17, 2012 at 5:30pm — 10 Comments

ये क्या किया तन्हाई !

ये  क्या  किया तन्हाई !

क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को

जो बन चुके हैं

घाव से नासूर

ढूंड पाओगी

कभी मेरा कसूर ?

गहरी साँसों का मंजर

अधूरे ख्वाबों का खंजर

जो धंस गया है दिल में

चुभनें लगा है फिर से

तुम्हारे आते ही.

कर रहा है मंथन 

भावों में

अब रिस रहा है

धीरे धीरे चीस्ते से

घावों में .

हाए वो अनलिखे मजमून

जो ख़त नहीं बन पाए

क्यों रख दिए तुमनें

तह बना कर

दिल…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 17, 2012 at 3:25pm — 2 Comments

उत्तर ढूंढना है

काश !

कोई दिन मेरा घर में गुजरता

बेवजह बातें बनाते

हँसते – हँसाते

गीत कोई गुनगुनाते

पर नही मुमकिन

मैं दिन घर में बिताऊँ!

 

एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले

और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ

थक चुका पर चल रहा हूँ

ढूढता हूँ अंजुली भर जल

जिसे ले

शाम को घर लौट जाऊँ

प्यास को पानी पिला दूँ !

 

मेरे आँगन की बहारों पर

जवानी छा गई है

और मैं

धूप के बाज़ार में बैठा हुआ…

Continue

Added by Arun Sri on January 17, 2012 at 1:30pm — 2 Comments

मुस्काने की फितरत साथ दे अगर

मुश्किल में एजद की रहमत साथ दे अगर |

तो छू लें बुलंदी हम ,किस्मत साथ दे अगर ||



मिट  जाएगा  झूठ  हमारी  कायनात  से ,

बस हमको इक बार सदाकत साथ से अगर…

Continue

Added by Nazeel on January 17, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

गीत विरह के

गीत विरह के 


जिसनें जीवन के सुन्दर पल

साथ हमारे काटे थे
क्या खबर थी उनके जीवन में
बस  काँटे  ही काँटे  थे
 

हम बेबस थे,थे लाचार
कैसे जताते अपना प्यार
हमनें…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 17, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

आजमाइश

तुम्हारी हर आजमाइश के आगे हम सर झुकाते चले गए

सोचा यह आजमाइश ही सच्चे प्रेम की निशानी है

इक आजमाइश पर उतरकर खरे खुश होने से पहले ही

तुम एक और आजमाइश संग खड़े मुस्काते नज़र आये

हम फिर जुट गए उस पर खरा उतरने की जुगत में

जब होने लगा यकीन तुम्हे प्यार पे मेरे आजमयिशो से परे

तुम लगे सोचने ख़त्म करने को सिलसिला आवाजाही का

तब तक मन का जीव मुक्त हो चुका था हर आजमाइश से

और सिर्फ खुली हुई आंखें मेरी रह गई बैचैनी का मंज़र लिए

पूछती एक ही ही…

Continue

Added by Kiran Arya on January 17, 2012 at 10:59am — 5 Comments

सृष्टि का ऋत

अवश्य ही कट जाएगा,

एक दिन वह भी मुझसे,

जो शेष बचा रहा अब तक,

स्वार्थ में अपने...

नहीं इसलिए कि ,

उसका है ध्येय  अनुचित

वरन यही तो है

सृष्टि  का ऋत!

Added by Nutan Vyas on January 17, 2012 at 9:30am — 1 Comment

फुटकर ख्याल

कल्पना में बिखरे कुछ टुकड़े पेश हैं:

 

घर में छा जातीं खुशियाँ

अगर कोई लल्ला हो गया l

 

और अगर जन्मी बिटिया

तो भारी पल्ला हो गया l

 

जब कभी फसल हुई कम

तो मंहगा गल्ला हो गया l

 

कोई डिग्री लेकर घर बैठे

तो वो निठल्ला हो गया l

 

शादी क्या हुई जनाब की

बीबी का…

Continue

Added by Shanno Aggarwal on January 17, 2012 at 3:30am — 8 Comments

घनाक्षरी



हुए थे सूरमा कई, जो खेले थे जान पर ,

उनके ही प्रताप से , ये देश स्वतंत्र है |
न हो तानाशाह कोई, जनता का राज हो ,
दे संविधान बनाया , इसे गणतन्त्र है |…
Continue

Added by dilbag virk on January 16, 2012 at 10:17pm — 3 Comments

जीवन इक खुली किताब है . .

कुछ पन्ने इसके पलट गये

कुछ को न हाथ लगाया है

कुछ याद पुरानी बाकी है

कुछ में इतिहास समाया है



कुछ में वो बीता बचपन है

जिनकी इक अमिट निशानी है

कुछ में है लिखा हुआ छुटपन

कुछ में अनकही कहानी है



कुछ पन्ने बीती रातों से

कुछ ख्वाबों…

Continue

Added by Amit Pandey on January 16, 2012 at 9:30pm — 5 Comments

समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,

समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,

-------------------------

यॆ मत सॊच कि इतनॆ गिरॆ हैं हम ॥

फ़क्त तॆरॆ इक वायदॆ पॆ मरॆ हैं हम ॥१॥

हॊशियारी की हरियाली न दिखावॊ,

ऎसॆ तॊ तमाम सारॆ खॆत चरॆ हैं हम ॥२॥

दिल मॆं कैद कर लॆं तुम्हॆं क्यूं कर,

कानूनी अदालत कॆ कटघरॆ हैं हम ॥३॥

हमारी हस्ती कॊ तॊलतॆ हॊ तराजू पॆ,

क्या समझॆ बॆज़ान सॆ बटखरॆ हैं हम ॥४॥

नॆकियॊं का दामन नहीं छॊड़ा कभी,

चाहॆ ला्खॊं मु्सीबत मॆं घिरॆ हैं हम ॥।५॥

शैतान की परवाह नहीं है जी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 9:01pm — 3 Comments

दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,

दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,

---------------------------------

बात समझ मॆं आती है मगर,गुनॆ जानॆ कॆ बाद ।

शेर हल्का नहीं हॊता बारहां, सुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥१॥



नाम मिटाये नहीं मिटता चाहॆ आग मॆं जला दॊ,

चनॆ आखिर चनॆ ही रहतॆ हैं, भुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥२॥



मगरूरॊ तुम्हारा मिज़ाज, यकीनन बदल जायॆगा,

रुई भी बदल जाती है डंडॆ सॆ, धुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥३॥



इज्जत बचाना किसी की इतना आसान नहीं है,

कपड़ा भी बनता है चरखॆ पॆ बुनॆ जानॆ कॆ बाद… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 6:20pm — 2 Comments

नया साल, नयी उम्मीदें

करवट लेता है नया साल

आओ कुछ उम्मीदें कर लें   

अरमानों के कुछ बूटों को

दामन में हम अपने सी लें l

 

नेकी हो भरी दुआओं में

मायूस ना हो कोई चेहरा 

जीवन हो शांत तपोवन सा

खुशिओं का रंग भरे गहरा l

 

ना आग बने कोई चिंगारी

ना आस बने कोई लाचारी

जग में फैला हो अमन-चैन 

ना कहीं भी हो कोई बेगारी l

 

ओंठों पे खिली तबस्सुम हो

हर दिल में नूर हो इंसानी 

आँखों में रोशन हों…

Continue

Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 8:00pm — No Comments

''दुनिया गोल है''

ये दुनिया गोल है

यहाँ बड़ा ववाल है

हर चीज का मोल है

बड़ा गोलमाल है l

 

बातों में तो मिश्री

मन में कोई चाल है

है बहेलिया ताक में

बिछा के बैठा जाल है l

 

कहीं ताल लबालब 

कहीं पड़ा अकाल है

क्यों इतना अन्याय

उठता रहा सवाल है l

 

कर पायें आपत्ति

ऐसी कहाँ मजाल है

बात-बात में लोगों की

खिंच जाती खाल है l

 

-शन्नो अग्रवाल 

Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 7:37am — 4 Comments

''है समय की दरकार''

है समय की दरकार l

ये है संसार
कभी ना
किसी पर
करना एतबार l

झूठ के खार
कब जाने
किस पर
कर देंगे वार l

खिला हरसिंगार
कब कौन
लूट जाये
पेड़ की बहार l

आज है प्यार
कल को
नफरत के
होंगें अंगार l

है समय की दरकार l

-शन्नो अग्रवाल

Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 6:00am — 2 Comments

स्त्री और प्रकृति

स्त्री और प्रकृति

प्रकृति और स्त्री

कितना साम्य ?

दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन

दोनों ही जननी

नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,

अन्तःस्तल की गहराइयों तक,

दोनों को रखता एक धरातल पर

दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति

बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को

दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं

प्रेम लुटातीं उन…

Continue

Added by mohinichordia on January 14, 2012 at 10:30am — 9 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, अभिवादन।  गजल का प्रयास हुआ है सुधार के बाद यह बेहतर हो जायेगी।हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ ,बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और बेहतर सुझाव के लिए सुधार करती हूँ सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये है शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ ,गिरह भी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी आदाब, और प्रस्तुति तक पहुँचने के लिए आपका आपका आभारी हूँ। "बेवफ़ा है वो तो…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय मुसाफिर जी नमस्कार । भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु बधाई। इस्लाह भी गुणीजनों की ख़ूब हुई है। "
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा यादव जी नमस्कार । ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service